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यूट्यूब देखकर खुद की डिलीवरी की कोशिश में एक लड़की की मौत बड़ा सवाल है

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले से एक खबर आई कि वहां एक लड़की ने यूट्यूब देखकर खुद की डिलीवरी करनी चाही और इस कोशिश में उसकी जान चली गयी। यह खबर एक ओर जहां बेहद चौंकाने वाली है, वहीं दूसरी ओर हमें यह सोचने के लिए भी बाध्य करती है कि आखिर उस लड़की को ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ी कि उसने इतना बड़ा रिस्क लेने की हिम्मत कर डाली?

अबॉर्शन करना या करवाना कोई बच्चों का खेल तो है नहीं? पुलिस को खून से लथपथ लाश उसकी कमरे में पड़ी मिली। उसका बच्चा भी मर चुका था। लड़की की लाश के पास एक मोबाइल पड़ा था, जिसपर बच्चा पैदा करने का यानी डिलीवरी का वीडियो था। पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि लड़की यूट्यूब पर वीडियो देखकर बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रही थी, पर आखिर क्यों?

फोटो सोर्स- Getty

पुलिस ने जब लड़की के घरवालों से संपर्क किया, तो पता चला लड़की अविवाहित थी। उसने एम.ए. किया हुआ था। एक लड़के के प्रेम जाल में फंस कर वह प्रेग्नेंट हो गयी। लड़के ने ज़िम्मेदारी लेना स्वीकार नहीं किया। मां-बाप ने जब लड़की को अबॉर्शन करवाने कहा, तो वह तैयार नहीं हुई। ऐसे में बदनामी के डर से मां-बाप ने साथ रखने से मना कर दिया। इसी वजह से वह लड़की गोरखपुर में अकेले किराये का मकान लेकर रह रही थी और शायद इसी वजह से उसने इतना खतरनाक कदम उठाने का साहस किया।

इज्ज़त के नाम पर जान की बलि

कभी सोचा है आपने कि आखिर यह स्थिति आती ही क्यों है कि पढ़ी-लिखी और समझदार होने के बावजूद किसी लड़की को इस तरह का खतरनाक कदम उठाना पड़ता है? क्या ऐसे मामलों में दोष अकेले सिर्फ लड़की का होता है, नहीं ना? फिर अकेले लड़की को ही सज़ा क्यों भुगतनी पड़ती है?

यहां ऊपर जिस केस का ज़िक्र किया गया है, उस मामले में लड़की अविवाहित थी और हमारे ‘सभ्य’ भारतीय समाज में किसी अविवाहित लड़की का प्रेग्नेंट होना मतलब पूरे परिवार के माथे पर कलंक का टीका लग जाना, पूरा घर बर्बाद हो जाना, उस घर की बाकी बेटियों की शादियां रुक जाना जाना।

हमारे यहां लड़की की योनि और कोख में ही तो परिवार की इज्ज़त घुसी होती है। फिर आखिर कैसे कहती वह लड़की अपने पेरेंट्स को कि वो किसी लड़के से प्यार करती है और उसने उसके साथ सेक्स किया है? क्योंकि समाज तो बाद में उसके चरित्र पर ऊंगलियां उठाता, पहले तो उसका परिवार ही ‘इज्ज़त’ के नाम पर उसके कोख की बलि चढ़ा देता। इसी डर से शायद वह अपने मां-बाप तक को अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में बताने की हिम्मत नहीं सकी और वक्त पड़ने पर अपनी जान से खेल गयी।

‘सेक्स’ आज भी भारतीयों के ‘चरित्र’ को डिफाइन करता है

पुरुष हो या स्त्री, एक उम्र के बाद ‘सेक्स’ की ख्वाहिश हर किसी को होती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैस्लो के अनुसार, “भूख, प्यास और नींद के अलावा सेक्स भी इंसान की प्रमुख शारीरिक ज़रूरतों में से एक है।”

लेकिन विडंबना यह है कि बहुत कम ही लोग इसे ज़ाहिर करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। कारण यह कि ऐसा करते ही भारत के तथाकथित ‘सभ्य समाज’ द्वारा उनका कैरेक्टर सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है। उसके बाद किसी लड़की की शादी तो छोड़िए, लड़कों का शादी-ब्याह भी मुश्किल हो जाता है। अब इसे भारतीय जनमानस की बुद्धि की बलिहारी कहें या फिर उनकी संकुचित सोच। हम अंजता, ऐलोरा, खजुराहो, कोणार्क, हंपी जैसे अपनी धरोहरों पर तो गर्व करते हैं लेकिन उनपर उकेरे गए भित्तिचित्र हमें जो संदेश देना चाहते हैं, उसके बारे में बात करने से भी कतराते हैं।

गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति में प्रेम तथा यौन क्रिया हमेशा से ही हमारी ऐतिहासिक कला का भाग रहे हैं। हमारी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों, इमारतों, साहित्य आदि में इससे संबंधित कलात्मक अभिव्यक्तियों का वृहद वर्णन एवं चित्रण देखने को मिलता है। महान भारतीय ऋषि वात्सायन ने तो तीसरी सदी ईसा पूर्व में ही कामसूत्र लिख डाला था और इसमें उन्होंने केवल पुरुषों के लिए नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए यौन सुख को भी समान रूप से महत्वपूर्ण माना है। यौन शिक्षा के दृष्टिकोण से ‘कामसूत्र’ प्राचीन उन्नत सेक्स-मैनुअल कहा जा सकता है।

भारत में सेक्स शिक्षा की ज़रूरत

भारत में ‘सेक्स’ आज भी एक बहुत बड़ा टैबू है। इसको लेकर इस हिचकिचाहट की वजह हमारा सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचा है। भारतीय परिवारों में हमेशा से ही बच्चों को असेक्सुअल मान कर बड़ा किया जाता है। माता-पिता ऐसा बर्ताव करते हैं, जैसे उनके बच्चों में कोई सेक्सुअल फीलिंग है ही नहीं। सेक्स तो छोड़िए, हम तो अपने घरों में पीरियड्स, ब्रा और पैंटी तक के बारे खुलकर बात नहीं कर पाते। उससे भी मज़ेदार बात यह है कि एक दिन वही मां-बाप अपने बेटे-बेटियों की शादी किसी अजनबी से कर देते हैं और फिर उनसे उम्मीद करते हैं कि साल पूरे होते-होते वे उन्हें नाती-पोतों को खेलाने का मौका दे दें, मानो सेक्स ज्ञान में तो उनके बच्चे मां के कोख से ही पीएचडी करके पैदा हुए है। ओह ! सच में कितना हास्याप्रद है यह सब।

सेक्स पूर्णत: एक जैविक प्रक्रिया है

सेक्स को लेकर हमारी सोच तब तक नहीं बदलेगी, जबतक हम यह स्वीकार नहीं करेंगे कि सेक्स कोई ‘पाप’ या ‘शर्मिंदगी’ नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से एक जैविक प्रक्रिया है। अभिभावकों को क्या लगता है कि अगर वे नहीं बतायेंगे, तो उनके बच्चों को सेक्स के बारे में पता नहीं चलेगा? अरे जनाब, हम आज 5-जी स्पीड वाले इंटरनेट के ज़माने में जी रहे हैं, जहां हर तरह की जानकारी ऊंगली की एक क्लिक पर मौजूद है। अगर आप नहीं बतायेंगे, तो भी वे कहीं-ना-कहीं से तो यह ज्ञान प्राप्त कर ही लेंगे, भले ही अधकचरा ज्ञान सही। फिर उनका हश्र भी संभवत: ऐसा ही होगा जैसा कि इस लड़की का हुआ।

गलत जानकारी और भावनात्मक सपोर्ट के अभाव में बच्चे और किशोर अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। नतीजा वे डिप्रेशन, अपराधबोध जैसी तमाम नकारात्मक भावनाओं से घिर जाते हैं। उनमें अनचाही प्रेगनेंसी, यौन शोषण और यौन संक्रामक बीमारियों का खतरा हमेशा बना रहता है। अत: बेहद ज़रूरी है कि हम इस बारे में अपने बच्चों से खुलकर बात करें। उन्हें यह भी बताएं कि सेक्स सिर्फ पुरुष और महिला के बीच ही नहीं होता। उन्हें अलग-अलग सेक्सुअलिटी और जेंडर डाइवर्सिटी के बारे में भी जानकारी दें। साथ ही, सेक्स एजुकेशन सुरक्षा, सहमति, सुरक्षित यौन संबंध, इमर्जेंसी पिल्स और उनके साइड इफेक्ट्स आदि के बारे में भी बताएं, ताकि वे यौन संक्रामक बीमारियों से भी बचें।

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