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माँ

मेरी माँ,
माँ…..माँ तुम कहाँ हो माँ, तुम कहाँ चली गई हो माँ? तुम जब से गई हो मैं भटकता रहता हूँ, ढूँढता रहता हूँ तुम्हे अपनी यादों में ,तलाशता रहता हूँ तुम्हे अपने सपनो में।
माँ तुम एक पल के लिये आती हो और फिर दूर कही अंधेरे सी भयानक काल मे चली जाती हो जहाँ एक दिन सभी को जाना है। कई बार तो मै उस भयानक काल मे झाँकने की कोशिश भी करता हूँ तम्हे देखने की कोशिश करता हूँ, घंटो बैठ कर देखता रहता हूं कि तुम कही से तो आओगी पर तुम नही आती हो माँ। कई बार तो सोचता हूँ कि छोड़ दूँ इस मतलबी दुनिया को और चला जाऊं उस भयानक काल मे,पर नही माँ…. तुमने ही तो बचपन मे सिखाया था ” ज़िन्दगी एक रेगिस्तान की सुबह की चिड़चिड़ाती धूप की तरह होती है जहाँ से भाग जाना ही बेहतर है पर साहसी लोग अगर उस धूप को सहन कर लेते है तो वही रेगिस्तान सूरज ढलने के बाद रात होने पर असीम सुकून और चैन देता है। “
माँ, मुझे याद है जब मेरे बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे तो तुम मुझे सुबह के 4 बजे उठाती थी और एक प्यारी सी चाय बना के देती थी जिससे मेरी नींद खुल जाती थी लेकिन अब मुझे सुबह जल्दी कोई नही उठाता है माँ…., खाते-खाते अगर हिचकियां आने लगे तो अब कोई मेरी पीठ नही सहलाता माँ…., अब जब भी कोई मुश्किल आती है तो कोई मेरे माथे पर हाथ रख कर नही बोलता की ” भगवान सब अच्छा करेगा। “
माँ…. मुझे याद है बचपन मे तुम मुझे किस तरह पापा के डांट से बचाती थी, मुझे याद है माँ जब मेरे 8वीं में मार्क्स कम आगये थे तो किस तरह तुमने पापा को 7वीं का मार्क्सशीट दिखा दिया था और पापा ने खुश हो कर मुझे स्मार्ट सा साईकल ला के दिया था। उस दिन में कितना खुश था और कैसे मैंने तुम्हे जोर से गले लगाकर खुशी से उछल रहा था माँ…., पर आज मैंने अपनी कार खरीदी तो खुशी से गले लगाने के लिए कोई नही था माँ….,कोई नही है माँ जो बोले कि भगवान तम्हे इससे बड़ी गाड़ी दे।
माँ मुझे याद है जब मैं स्कूल से शाम को थक कर घर आता था तो कैसे तुम मेरे जूते उतारती थी, खाना गर्म कर के अपने हाथों से खिलाती थी, पर आज मै जब ऑफिस से थक कर घर आता हूँ तो जूते पहने ही सो जाता हूँ , कोई नही है जो खाना गर्म कर के खिला सके माँ….. माँ तुम्हारी बहुत याद आती है। जब भी मेस वाले मुझे करेले की सब्जी देते है तो तुम याद आती हो माँ…. मुझे याद आता है कि कैसे पापा के बार-बार बोलने पर भी मैं करेले की सब्जी नही खाता था तो तुम मुझे मेरे पसन्द की आलू की भुज्जी बना देती थी। माँ….तुम मेरा कितना ख्याल रखती थी। मेरे हर समस्या का हल था तुम्हरे पास माँ…..।
माँ….मुझे तुम बहुत याद आती हो और शायद ही कोई ऐसा बेटा होगा जिसको अपनी माँ की याद नही आती हो। माँ आज भी जब में रोता हूँ तो सबसे पहला नाम तेरा ही आता है “माँ…” कभी भी जब में डर जाता हूं तो तुम्ही याद आती है और आये भी क्यों नही माँ आखिर में तुम्हारा ही तो अंश हूँ तो फिर भला मैं तुम्हे कैसे भूल सकता हूँ । मैं जानता हूँ माँ तुम चाहे कहीं भी हो पर तुम हमेशा मेरे साथ हो।
माँ,तुम मुझे हमेशा याद आओगी।माँ… मैंने तुम्हारे लिए दो लाइन लिखी है जब भी तुम याद आती हो मैं इसे ही पढ़ लेता हूँ।

” गुजरी जो आँचल में तेरी….
वही पल थी ज़िन्दगी….. “

Pranjal Mish

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