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राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन, एक्सपर्ट कमेटी के अनुसार किस राज्य का कितना होगा

आज आपको हमारे इस पोस्ट को पढ़ने के बाद न्यूनतम वेतन नहीं नेशनल न्यूनतम वेतन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी. ऐसे तो 2017 में अपने एक प्रेस रिलीज दिनांक 05.09.2017 के जरिये खुद सरकार ने नेशनल न्यूनतम वेतन के बारे में नकार दिया था. मगर दूसरी तरफ 2019 में इसके बारे में के बिज़नेस स्टैण्डर्ड के रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार के द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने मजदूरों के लिए 9750 रुपया मासिक नेशनल न्यूनतम वेतन का सुझाव दिया हैं. इसके बारे में हम पुरे सबूत के साथ विस्तार से जानकारी लेंगे.

ऐसे तो इसके बारे में काफी पहले ही खबर छपी थी. उसके बाद से ही इसके बारे में काफी खोजबीन किया. अब हमारे पास इस खबर के तथ्य को साबित करने के लिए सरकारी दस्तावेज भी है और एक्सपर्ट कमेटी का रिपोर्ट भी. जिसके आधार पर हम आपको एक-एक तथ्य से संक्षेप और सरल भाषा में जानकारी देने की कोशिश करेंगे.
 
इसके बारे में द क्विंट ने लिखा कि इस फार्मूला से न्यूनतम वेतन डबल हो जायेगा.  उनके अनुसार भारत में लाखों अनौपचारिक श्रमिकों को उनकी न्यूनतम मजदूरी जो कि अभी 173 है, जो कि बढ़कर 375 रुपया रोज और 9750 रुपया मासिक यानी की डबल हो जायेगी.
 
मिनिस्ट्री ऑफ़ लेबर एंड एम्प्लॉयमेंन्ट के प्रेस रिलीज दिनांक 14 फरवरी 2019 के अनुसार, “श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 17 जनवरी 2017 को चेयरमैनशिप डॉ अनूप सत्पथी, फेलो, वी. वी. गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान (वीवीजीएनएलआई) के तहत एक विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) का गठन किया था, जिसने राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन (एनएमडब्ल्यू) के निर्धारण की कार्यप्रणाली की समीक्षा और सिफारिश की थी. विशेषज्ञ समिति ने 14-02-2019 को सचिव, श्रम और रोजगार मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार को “न्यूनतम राष्ट्रीय वेतन के निर्धारण के लिए कार्यप्रणाली का निर्धारण” पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है. इस रिपोर्ट को अब मंत्रालय की वेबसाइट www.labour.gov.in पर रखा गया है, ताकि सामाजिक साझेदारों और हितधारकों के बीच परामर्श और संवाद की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए और त्रिपक्षीय निकायों से कार्यप्रणाली की आवश्यक स्वीकृति प्राप्त की जा सके.बेहद अफ़सोस के साथ बताना पड़ रहा है कि सुझाव व आपत्ति के लिए 14 फरवरी से 28 फरवरी तक का समय दिया गया था. जो कि अब समाप्त हो चुका हैं. अगर हमें पहले जानकारी होती तो हम आपको इसके बारे में जरूर बताते.
 
ऐसे आपको याद दिला दूँ कि आज से दो वर्ष पूर्व जब मिडिया में पुरे देश में एक समान मजदूरी 18 हजार की न्यूज गई थी तो खुद केंद्र सरकार ने इसकी खारिज किया था. जिसके बारे में वर्कर वॉयस के अनुसार सरकार ने कहा था कि वेजेज कोड बिल में नेशनल मजदूरी जैसा कुछ नहीं हैं और न ही हम 18 हजार न्यूनतम वेतन करने जा रहे हैं. आप इसकी जानकारी के लिए हमारे पहले के पोस्ट को नीचे क्लिक कर खुद ही पढ़ सकते हैं.

विशेषज्ञ समिति का रिपोर्ट

यह विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) का रिपोर्ट 124 पेज का हैं, जिसको पूरा तो नहीं मगर कुछ मुख्य बातों का हमने अध्ययन किया हैं. अगर आप चाहे तो इसको खुद से भी पढ़ सकते हैं. इसके लिए हमने ऊपर लिंक दिया हैं. इस रिपोर्ट का मुख्य रूप से निचोड़ प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ. जिससे आप खुद ही तय कर पायें कि केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाने वाला नेशनल न्यूनतम मजदूरी आपके जीवन यापन के लिए पर्याप्त हैं या कम हैं. 
 
विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) की इस रिपोर्ट के अनुसार 1957 में 15वें आईएलसी द्वारा न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के मानदंडों के बाद से कई विकास हुए हैं और जिसके बाद 1992 में वर्कमेन वी रेप्टाकोस ब्रेट एंड कंपनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मजबूत हुआ. जिसके आधार पर कैलकुलेशन किया गया हैं.
 
केंद्रीय सरकार ने न्यूनतम मजदूरी पर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड (CAB) की सिफारिशों के अनुसार एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया. इसलिए, विशेषज्ञ समिति को राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के लिए मानदंडों और कार्यप्रणाली की जांच और समीक्षा करने का आदेश था; और साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से आधार स्तर राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी / मजदूरी निर्धारित करें.
 
केंद्र सरकार के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उपयोग करने वाली रिपोर्ट ने ILC 1957 के समग्र दिशानिर्देशों और 1992 में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट ऑफ वर्कमैन बनाम रेप्टाकोस ब्रेट एंड कंपनी के आधार पर न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण की पद्धति को अद्यतन किया है. 
 
उनके अनुसार रिपोर्ट में एक कठोर और सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया है और वास्तविकताओं को संबोधित करने के लिए जनसांख्यिकीय संरचना, खपत पैटर्न और पोषण संबंधी इंटेक, खाद्य टोकरी की संरचना और गैर-खाद्य उपभोग वस्तुओं के सापेक्ष महत्व में परिवर्तन से संबंधित सबूतों की एक बड़ी मात्रा उत्पन्न की है. भारतीय संदर्भ में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों का उपयोग करके किया गया है.

भारतीय आबादी के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा अनुशंसित पोषण संबंधी मानदंडों का उपयोग करते हुए, रिपोर्ट में संतुलित आहार दृष्टिकोण की सिफारिश की गई है जो राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के लिए सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त है. तदनुसार, इसने प्रस्तावित किया है कि राष्ट्रीय स्तर संतुलित भोजन की टोकरी बनाने के लिए प्रोटीन के साथ Amount 50 ग्राम और वसा G 30 ग्राम प्रति दिन के हिसाब से 2,400 कैलोरी के स्तर के साथ खाद्य पदार्थों की मात्रा होती है. इसके अलावा, इस रिपोर्ट में न्यूनतम वेतन का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें ‘आवश्यक गैर-खाद्य पदार्थों’ पर उचित व्यय शामिल होना चाहिए, जैसे कि कपड़े, ईंधन और प्रकाश, घर का किराया, शिक्षा, चिकित्सा व्यय, जूते और परिवहन, जो मध्यवर्ग और व्यय के बराबर होना चाहिए किसी भी ‘अन्य गैर-खाद्य पदार्थों’ पर एनएसएसओ-सीईएस 2011/12 सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार घरेलू व्यय वितरण के छठे फ्रैक्चर (25-30 प्रतिशत) के बराबर होना चाहिए.

पूर्वोक्त दृष्टिकोण के आधार पर, रिपोर्ट ने जुलाई 2018 के अनुसार, प्रति दिन INR 375 (या INR 9,750 प्रति माह) पर भारत के लिए राष्ट्रीय आधारित न्यूनतम मजदूरी की आवश्यकता को ठीक करने की सिफारिश की है, चाहे जो भी क्षेत्र, कौशल, व्यवसाय और ग्रामीण-शहरी 3.6 खपत इकाई वाले परिवार के लिए स्थान, इसने एनएमडब्ल्यू के ऊपर और ऊपर शहरी श्रमिकों के लिए प्रति दिन INR 55 तक औसत, यानी INR 1,430 प्रति माह, एक अतिरिक्त मकान किराया भत्ता (शहर प्रतिपूरक भत्ता) शुरू करने की भी सिफारिश की है.

अखिल भारतीय स्तर पर एकल National Minimum Wages के स्तर को प्रस्तावित करने के अलावा, रिपोर्ट में देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए स्थानीय वास्तविकताओं और सामाजिक-आर्थिक और श्रम बाजार के अनुसार विभिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी का अनुमान लगाया गया है. संदर्भों, क्षेत्रीय स्तरों पर National Minimum Wages का आकलन करने के उद्देश्य से इसने राज्यों को एक समग्र सूचकांक के आधार पर पांच क्षेत्रों में बांटा है और क्षेत्र विशेष की न्यूनतम राष्ट्रीय मजदूरी की सिफारिश की है.
 
समग्र सूचकांक और क्षेत्र विशिष्ट National Minimum Wages के आधार पर राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी क्षेत्र (minimum में)
 
इसके बाद समिति ने एनएसएसओ-सीईएस डेटा की उपलब्धता के अधीन, और हर पांच साल में खपत की टोकरी की समीक्षा करने की भी सिफारिश की है, और – 5 साल की अवधि के भीतर – उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुरूप मूल न्यूनतम मजदूरी को संशोधित और अद्यतन करना) हर छह महीने में, रहने की लागत में परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने के लिए. आवश्यक परामर्श और कार्यप्रणाली के अनुमोदन के लिए रिपोर्ट को केंद्रीय सलाहकार बोर्ड / त्रिपक्षीय निकायों के समक्ष रखा जाएगा.

दोस्तों इसकी पूरा पढ़ने के बाद अब आप खुद से आंकलन कर सकते हैं कि इस एक्सपर्ट कमिटी ने मजदूरों हितों का कितना ध्यान रखा हैं. हमारी मानिये तो इसमें दिए गए कैलकुलेशन वास्तविकता से परे हैं. एक तरफ सेन्ट्रल गवर्नमेंट का श्रम विभाग Center Sphere का न्यूनतम वेतन A एरिया के शहर जैसे Ahmadabad, Bangluru, Delhi, Greater Mumbai, Kolkata, Navi Mumbai, Hydrabad, Kanpur, Chennai, Nagpur, Lucknow, Pune, Faridabad, Gaziabad, Noida, Securandrabad, Gurugram का न्यूनतम वेतन खुद ही 15,184 का नोटिफिकेशन निकालता हैं, दूसरी तरफ उन्ही का एक्सपर्ट कमेटी पता नहीं कहां जानकर सर्वे करता और उनको उपरोक्त बाकि शहर का तो छोड़ दीजिये बल्कि दिल्ली के मजदुर का 11,622 मासिक रुपया पर्याप्त लगता हैं. इसके उलट अभी दिल्ली राज्य का 14,000 न्यूनतम वेतन हैं.

हमारी समझ से न्यूनतम वेतन मतलब मजदुर परिवार को जिन्दा रहने के लिए सबसे कम मजदूरी, यही लोग सरकारी कर्मचारियों के लिए सांतवा वेतन के तहत 18000 न्यूनतम वेतन निर्धारित करते हैं और उन्ही के तरह काम करने वाले कॉन्ट्रैक्ट, आउटसोर्स, दिहाड़ी मजदुर के लिए उनको 9880 रुपया मासिक भी अधिक लगता हैं.

National Minimum Wages कितना होना चाहिए?

हमारा तो कहना है कि अगर नेशनल न्यूनतम वेतन ही निर्धारित करना हैं तो Central Sphere के द्वारा निर्धारित Minimum Wage को  एरिया वाइज लागु किया जाए. ऐसे यह पर्याप्त तो नहीं मगर फिर भी इससे कुछ राहत तो वर्करों को जरूर मिलेगा. इसके साथ ही जिस विभाग में न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा उसपर अविलम्ब करवाई की जाए. भाई हम भी इंसान, किसी का भी 3 से 5 आदमी का परिवार 9000/- रुपया महीना यानी पार्टी व्यक्ति प्रति दिन 100-60 रुपया पर कैसे जी सकता हैं, जबकि इसमें रोटी, कपड़ा, मकान से लेकर तामाम जरुरत की चीज पैसे ही खरीदना पड़े.

खैर, इसके बाद पता नहीं की दिल्ली सरकार का न्यूनतम वेतन या Central Sphere का न्यूनतम वेतन कम कर दे इसकी कोई गारंटी नहीं हैं. हमने दिल्ली सरकार से भी न्यूनतम वेतन में आश्रित माता पिता का यूनिट शामिल करने की मांग की थी. अभी भी हम सरकार से यही मांग करेंगे. इसके बाद अगर सरकार नहीं माने तो विरोध के लिए तैयार रहिये. हम विरोध करेंगे. इसको अधिक से अधिक साथियों तक पहुचायें.

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