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व्रिद्धाश्रम की बढ़ती भीड़ देख आपका प्रेम मुझे झलावा लगता है ।

#MothersDay
व्रिद्धाश्रम की बढ़ती भीड़ देख आपका प्रेम मुझे झलावा लगता है ।
माँ शब्द को अधिक समझने की जरूरत नही है और न ही इसपे अधिक विचार करने की जरूरत है । अपनी सृजनकर्ता के पूर्णता के बारे में हमें शब्दों की तलाश क्यों पर रही है आज ? क्यों आज हमें माँ के प्रति अपने प्रेम को साबित करने के लिए चिल्ला-चिल्लाकर बोलना पर रह है ।
अगर हम ख़ुद में झांके तो कारणों की कमी नही होगी , हम समझ सकते हैं माँ के सहनशक्ति , प्रेम , आस्था और विश्वास के बदले में हमने कितना कुछ किया ।
ख़ैर मैं यह भी नही कहता की मुझे उसका ऋण चुकाना है , माँ ने तो बस अपना कर्तव्य पूरा किया , अगर हम संतान होने की जिम्मेदारी समझ जाएं तो काफी होगा ।
जिसके गर्व में हमने सुकून से 9 महीने निकाल दिए , किसी बात का फ़िकर नही था , स्वांस , भोजन , प्रेम , उसने बिना कहे सब दिया और भरपूर दिया । फिर हम आज माँ की वयाकुलता क्यों नही समझ पाते ? क्यों नही समझ पाते उसकी पीड़ा को , उसके अरमानों को ।
और अगर समझते हैं तो मुझे जवाब चाहिए कि उन व्रिद्धाश्रमों में किसकी माँ है जिनकी आंखे कुछ ढूंढती रहती हैं , तुम्हे देखने के लिए वयाकुल रहती है । जब तुम काबिल बन गए तो उसके सारे उपकार भूल गए , उसकी वेदना तुम्हे कष्ट नही दे पाती । लेकिन माँ तो उस परिस्थिति में भी तुम्हे खुश ही देखना चाहती है ।
तुमसे माँ के लिए और कुछ नही हो पाया तो तुमने इस पवित्र नाम को गाली बना दिया । दिनभर में न जाने कितनी ‘माँ ‘ को तुम अपने कटु शब्दों से रोज शर्मशार करते हो ।
अगर माँ के लिए सही में प्रेम और आदर है न तो चिल्लाने की जरूरत नही है । उस प्रेम को अपने भाव में उतारो , सुकून मिलेगा ।
माँ

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