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तेलंगाना के शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण 21 स्टूडेंट्स ने की आत्महत्या

आजकल इंटरनेट पर एक मीम चल रहा है, जिसमें लिखा होता है कि भारतीय माँ-बाप अपने बच्चों से कहते हैं कि बस दसवीं पास कर लो, फिर ऐश ही ऐश। फिर बारहवीं में वही माँ-बाप कहते हैं कि बस अब बारहवीं पास कर लो फिर ऐश ही ऐश। फिर वही माँ-बाप कहते हैं कि बस अब अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले लो फिर ऐश ही ऐश और यह चक्र चलते ही रहता है। आप भी देखिए यह मीम:

साभार: फेसबुक

मीम देख लिया हो तो आजकल एक और खबर चल रही है, वह भी पढ़ें-

भारत यानी जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश। हमारे देश की साक्षरता दर है, करीब 74%। हर साल हमारे देश में करोड़ों स्टूडेंट्स बारहवीं की परीक्षा देते हैं। कुछ सफल हो जाते हैं तो कुछ असफल हो जाते हैं। जो सफल होते हैं, उन्हें नज़र आता है अपना सुनहरा भविष्य और जो असफल होते हैं उन्हें सिर्फ अंधेरे के अलावा कुछ नज़र नहीं आता। इसी अंधेरे में कुछ स्टूडेंट्स राह भटक जाते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।

तेलंगाना के 21 स्टूडेंट्स ने की आत्महत्या-

अभी हाल ही में भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना में कुछ इसी तरह की घटना सामने आई है, जिसमें 21 स्टूडेंट्स ने बारहवीं की परीक्षा में फेल होने के कारण मौत को गले लगा लिया। इन आत्महत्याओं के बाद पूरे तेलंगाना में दुख और रोष का माहौल है। स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों का कहना है कि तेलंगाना राज्य इंटरमीडिएट परीक्षा समिति की लापरवाही के चलते इन बच्चों की जान गई है। इनका सीधा-सीधा आरोप है कि इंटरमीडिएट की कॉपियां सही से नहीं जांची गई।

गौरतलब है कि तेलंगाना में इस साल लगभग 9 लाख 74 हज़ार स्टूडेंट्स इंटरमीडिएट की परीक्षा में शामिल हुए थे, जिनमें से करीब 3 लाख 28 हज़ार स्टूडेंट्स फेल हो गए। शुरुआत में तेलंगाना राज्य सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने तेलंगाना राज्य इंटरमीडिएट परीक्षा समिति पर लगे आरोपों को सिरे से नकार दिया पर जब स्टूडेंट्स के अभिभावकों ने उच्च न्यायालय का रुख किया तो शायद राज्य सरकार की भी नींद टूटी।

मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट-

ये सब इतने पर ही नहीं रुका, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस घटना की जांच रिपोर्ट तेलंगाना राज्य सरकार को चार हफ्ते के अंदर जमा करने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि तेलंगाना बोर्ड के ओएमआर शीट बनाने का ज़िम्मा इस बार ग्लोबएरेना नाम की एक निजी कम्पनी को दिया गया था। इसके पहले यह ज़िम्मेदारी सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस नाम के एक सरकारी संस्थान को दी जाती थी। कयास लगाए जा रहे हैं कि कॉपी जांचने में हुई गड़बड़ी में इस कपंनी का बड़ा हाथ है।

गड़बड़ी का आलम यह है कि जो स्टूडेंट आए और परीक्षा में बैठे, उन्हें भी इस कम्पनी का सॉफ्टवेयर एब्सेंट और फेल बता रहा है। इतने सबके बाद अब तेलंगाना सरकार भी हरकत में आई है। मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने स्वयं इस मामले का संज्ञान लेते हुए सारी कॉपियां फिर से जांचने का आदेश जारी कर दिया है। इसके लिए स्टूडेंट्स से कोई फीस या शुल्क नहीं लिया जाएगा पर इससे राज्य सरकार पर करीब 15 करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा। तो वहीं, विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल कॉंग्रेस ने इसे राज्य आधारित हत्याओं का मामला बताया है।

बहरहाल, मामला चाहे जो हो पर जिन 21 स्टूडेंट्स ने यह कदम उठाया है, उन्होंने वाकई हमारी शिक्षा व्यवस्था पर एक सवालिया निशान छोड़ दिया है। ऐसा लगता है कि हम रोज़ आगे बढ़कर भी दो कदम पीछे खिसकते जा रहे हैं। शायद इन 21 बच्चों को भी यही लगा कि एक बार पीछे खिसककर ये कभी जीवन में आगे नहीं जा पाएंगे।

हर साल हज़ारों स्टूडेंट्स पढ़ाई के बोझ से या फेल होने की वजह से आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। यह संख्या साल दर साल बढ़ रही है। भारत का यह महान “परीक्षा परिणाम गड़बड़ करो परियोजना” कभी हमें रूबी राय जैसे टॉपर्स देता है, तो कभी 21 युवाओं की मौतें। हमें इस समाज में ना रूबी राय जैसे टॉपर्स चाहिए और ना आत्मघाती फेलिएर्स। हमें चाहिए एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो पढ़ाए ना सही, कम-से-कम कॉपियां तो ढंग से जांच ले लेकिन शायद कभी विश्वगुरु रहे इस देश में यह भी नसीब नहीं।

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