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विकास की रफ्तार में 15 साल पीछे चल रहा है मेरा उन्नाव

गाँव की तस्वीर

गाँव की तस्वीर

वीडियो कॉलिंग के दौर में चिट्ठी लिखना आपको अटपटा सा लग सकता है। आप यह भी सोच रहे होंगे कि मेरी चिट्ठी से आपका क्या लेना-क्या देना है? आज के दौर में जब हम सभी अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हैं, रिश्तों का मतलब समझना भी वक्त ज़ाया करने जैसा लगने लगा है।

अब फोन पर बात करने की जगह भी व्हाट्सएप मैसेज ने कब्ज़ा जमा लिया है। ऐसे में मैंने सोचा कि जब सब व्यस्त हैं, तो आप भी खाली नहीं होंगे लेकिन थोड़ा सा वक्त तो आप भी निकाल लेंगे मेरे लिए।

अगर नहीं निकाल पाएंगे तो आप पर मेरा इतना हक तो है कि अपनी चिट्ठी मैं आपसे पढ़वा लूंगा। उसी अधिकार ने मेरे मन को मज़बूत किया कि आपसे शब्दों के ज़रिये संवाद कर सकूं।

चिठ्ठी कभी भी एकतरफा नहीं होती। जवाब में आप भी एक चिट्ठी मुझे लिख भेजिए। इसके लिए आपको कागज़- कलम की ज़रूरत नहीं है। सोशल मीडिया के किसी भी माध्यम से भेज दीजिए।

आज की मेरी पहली चिट्ठी हर उस इंसान के लिए है जो उन्नाव का है और उन्नाव से जिसकी आत्मा का जुड़ाव है। बाकी लोग इसे इसलिए पढ़ें क्योंकि इस शहर से आपका मिलना ज़रूरी है।

अखबार की सुर्खियों में रहा है उन्नाव

ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आपने उन्नाव का नाम कभी नहीं सुना होगा क्योंकि बीते कुछ वक्त में अखबारों की सुर्खियों और न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन्स में उन्नाव का नाम बना रहा। वजह कई रहीं, कभी सपने की वजह से, कभी सोने की वजह से, कभी नर-कंकाल की वजह से तो कभी सियासी लोगों के कारनामों की वजह से।

इससे पहले कि आप चिट्ठी आगे पढ़ें, मैं एक बात कहना चाहता हूं। आज मैं चन्द्रकान्त, गौरव या पत्रकार बनकर बात नहीं कर रहा हूं। आज मैं सिर्फ उन्नाव के एक अंश के तौर पर अपनी बात लिख रहा हूं।

भूला दिया गया गौरवशाली इतिहास

अगर मैं यह कहूं कि उन्नाव में सियासी लोगों ने कोई काम नहीं किया तो यह कहना गलत होगा। थोड़े बहुत काम तो हुए हैं लेकिन कष्ट इस बात का है कि मेरे ज़िले का जो गौरवशाली इतिहास है, उसे भूला दिया गया। हमारी सभ्यता, संस्कृति का जो सम्मान होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। बचपन से लेकर आज तक हम सुनते आ रहे हैं कि यह “कलम, कमंडल और कृपाण” की धरती है।

मैं जब कभी किसी कवि सम्मेलन या मुशायरे में गया तो देश के बड़े-बड़े शायरों और कवियों ने यह कहा कि अगर उन्नाव की जनता को आपकी कविता या शेर पसंद आ गई तो आप दुनिया के किसी भी मंच से वह सुना सकते हैं। यह उन्नाव की धरती का प्रताप है।

महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला। फोटो साभार: Twitter

जब बात प्रताप की हो रही है तो मैं गर्व के साथ आपको बताना चाहता हूं कि महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, प्रताप नारायण मिश्र, शिवमंगल सिंह परिहार ‘सुमन’, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, रमई काका और हसरत मोहानी इसी माटी के लाल हैं।

आज भी उन्नाव की कलम में धार है। मौजूदा दौर में सुरेश फक्कड़, नसीर अहमद, अखिलेश अवस्थी, विश्वनाथ विश्व और स्वयं श्रीवास्तव जैसे कवि उन्नाव के साथ-साथ पूरे प्रदेश और पूरे देश में अपनी कविताओं के ज़रिये जनपद का नाम बुलंद कर रहे हैं।

जब वीरता का ज़िक्र होता है तो चंद्रशेखर आज़ाद के लिए लोगों का सिर सम्मान से झुक जाता है। देश के लिए शहादत देने में भी उन्नाव पीछे नहीं हैशहीद अरविन्द, शहीद अजीत कुमार आज़ाद और शहीद शशिकान्त तिवारी ये वो नाम हैं, जिन्होंने भारत माँ के लिए अपना बलिदान दिया है। इनसे पहले भी उन्नाव के कई बेटे देश पर कुर्बान हुए हैं।

जब बात कमंडल की होती है तो उसका ज़िक्र करते हुए उन्नाव के हर नागरिक का सीना चौड़ा हो जाता है। महर्षि वाल्मीकि इसी धरती के हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अश्वमेघ घोड़े को इस धरती पर जन्मे उन्हीं के दोनों पुत्रों लव और कुश ने रोका। लव और कुश ने परम शक्तिशाली बजरंग बली को पेड़ से बांध दिया। लक्ष्मण, भरत सब उनसे पराजित हो गए। यहां तक कि खुद प्रभु राम को भी अपने पुत्रों से इसी धरती पर युद्ध करना पड़ा और बेटों ने अपने पिता चक्रवर्ती राजा को हरा दिया क्योंकि यह धरती अन्याय नहीं सहती है।

सियासत की धुरी ‘उन्नाव’

इसी उन्नाव के लिए कहा गया कि भाषा तो कटु हो सकती है मगर उसमें असत्य का भाव नहीं हो सकता। अपने हास्य व्यंग्य से पूरे देश को हंसाने वाले रमई काका ने कहा, “ऊपर चढ़ता तो लिख देता अंबर में ध्वंस कहानी ये, नीचे बहता तो भू ऊर्वर उन्नाव ज़िले का पानी ये।”

यह वही उन्नाव है जो सियासत की धुरी रहा है। उन्नाव के पुराने नेता, सियासी जानकार और हमारे घरों के बुज़ुर्ग बताते हैं कि एक वक्त था जब काँग्रेस के हर फैसले में उन्नाव के ही तीन दिग्गज नेताओं का दखल होता था। ये नाम थे विश्वंभर दयाल त्रिपाठी, द्वारिका प्रसाद मिश्रा और उमा शंकर दीक्षित

यह वही उन्नाव है जिसने देश को कई मुख्यमंत्री दिए हैं। मध्य प्रदेश को इसी उन्नाव ने तीन मुख्यमंत्री दिए हैं जिनमेंवि शंकर शुक्ल, द्वारिका प्रसाद मिश्र और श्यामा चरण शुक्ल शामिल हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित इसी उन्नाव की बहू हैं। एक वक्त उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री ‘गोपीनाथ दीक्षित’ और देश के गृह मंत्री ‘उमा शंकर दीक्षित’ इसी उन्नाव के थे।

विश्वंभर दयाल त्रिपाठी। फोटो साभार: Twitter

एक नाम ऐसा है जिसका ज़िक्र किए बिना उन्नाव के बारे में चल रही यह बात पूरी नहीं हो सकती। वह नाम है विश्वंभर दयाल त्रिपाठी, जो उन्नाव के पहले सांसद थे। उनकी एक आवाज़ पर एक लाख के करीब लोग ज़मींदारी उन्मूलन के खिलाफ पैदल राजधानी लखनऊ कूच कर गए थे।

यह वो जनपद है जिसने महिपाल शास्त्री और उमाशंकर दीक्षित के तौर पर देश को राज्यपाल भी दिए। बॉलीवुड में इन दिनों धूम मचा रहे सिंगर, म्यूज़िक कंपोज़र विशाल मिश्रा भी इसी शहर के हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में भैयाजी कहिन फेम प्रतीक त्रिवेदी, अरुण चौहान, पंकज शुक्ला जैसे पत्रकारों का नाम पूरे देश में सम्मान के साथ लिया जाता है।

डौड़ियाखेड़ा इलाके में मिलती है सुकून

उन्नाव में रहने वाले और उन्नाव से जुड़े हुए लोग जब भी बैसवारा की तरफ जाते हैं तो बैसवारा द्वार को देखते ही उन्हें गर्व महसूस होने लगता है क्योंकि यह उन्नाव का वह हिस्सा है, जो शौर्य का प्रतीक है। जब कभी आपको लगे कि आपकी ज़िंदगी में थोड़ी उदासी आ गई है तो इसी क्षेत्र में डौड़ियाखेड़ा इलाके में राजा राव राम बक्स सिंह पार्क में महज़ 10 मिनट बैठकर देख लीजिएगा। मेरा दावा है कि आप चिन्तामुक्त होकर निकलेंगे।

विकास की रफ्तार से 15 साल पीछे हैं हम

उन्नाव के इतिहास और विरासत की तो बात हो गई लेकिन जब आज आप अपने शहर की तरफ देखते हैं तो महसूस होता है कि हम विकाकी रफ्तार से 15 साल पीछे चल रहे हैं। हम आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए सियासी आकाओं की तरफ आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं।

इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी है कि हम अपने इतिहास पर तो गर्व करते हैं लेकिन चुनाव के वक्त जातियों में बंट जाते हैं। भौकाल वाली सियासत को पसंद करने वाला यह उन्नाव ज़िला कई बार जनप्रतिनिधियों को चुनने में गलतियां कर चुका है। बाद में पछताता रहा है, कोसता रहा है लेकिन हालात नहीं बदले।

यह चिट्ठी मैंने सिर्फ इसलिए लिख डाली ताकि अपने इतिहास पर बात हो सके। ऐसा हो सकता है कि कुछ लोगों के नाम इसमें छूट गए हो जिन्होंने उन्नाव का नाम रौशन किया है। अगर आपको ऐसे कोई नाम याद आए तो मुझे माफ करते हुए याद ज़रूर दिलाइएगा। चुनाव को लेकर आपसे अगली चिट्ठी में बात करूंगा। तब तक के लिए सभी को प्रणाम।

जय उन्नाव !

आपका चन्द्रकान्त शुक्ला

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