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कविता: “डंडा लेकर घूम रहे हैं देश के पालनहार”

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अंकुश तिवारी

क्या आपको विद्यालयों और अस्पतालों से ज़्यादा मंदिर/मस्जिद बनाने में दिलचस्पी है? क्या आप हिंदू-मुस्लिम पहले और इंसान बाद में हैं? क्या आपके लिए हिंदुस्तान का मतलब वह जगह है, जहां सिर्फ हिंदू लोग रहते हैं और दूसरी जातियों और धर्मों का अपमान करके उन्हें देश से निकाल देना चाहिए?

जिन नेताओं को आप वोट दे रहे हैं, क्या उन्हें डेमोक्रेसी की सही परिभाषा पता है? क्या कोई भी राजनीतिक दल देश और मानवता से बड़ा
है? इन सारे सवालों का जवाब आपको अपने आस पास ही मिल जाएगा, बस आंखें खुली रखिए।

यह कोई कविता नहीं है और ना ही किसी राजनीतिक दल के खिलाफ या पक्ष में है, बल्कि एक दबी कुचली आवाज है, नफरत और हिप्पोक्रेसी के खिलाफ, शांति, एकता और विकास को तलाशते हुए, दर-ब-दर भटकती फिरती आवाज़।

यह खिलाफ है उन साज़िशों के जो आवाम को गुमराह करने में लगी हुई हैं और देश में बंटवारा करके शासन करने की फिराक में नकाब पहन कर गली-गली घूम रही हैं।

डेमोक्रेसी या हिप्पोक्रेसी?

अगर आप मुझसे सहमत हैं, अगर आपको ऊपर दिए सारे सवालों का जवाब स्पष्ट तरीके से *NO* मिलता है, तो इस आवाज़ को देश के कोने- कोने तक पहुंचाने में मेरा साथ दीजिये, इस वीडियो को शेयर कीजिये।

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