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बिहार की ये दलित लड़कियांं फुटबॉल खेलकर तोड़ रही हैं स्टीरियोटाइप्स

Bihar Football girl's team

Bihar Football girl's team
फोटो सोर्स- गौरव ग्रामीण विकास मंच बिहार फेसबुक पेज

1) पूजा

पूजा एक दलित परिवार की 10वीं कक्षा की छात्रा है और अपने ग्राम पंचायत के किशोरी मंच की फुटबॉल कोच भी। अब पूजा के कठिन सफर के बारे में बताती हूं और बताती हूं कि पूजा ने अपनी पहचान कैसे बनाई?

उस वक्त पूजा छठी क्लास में पढ़ती थी और 11 साल की थी। एक दिन पूजा को उसके चाचा ने लड़कों के साथ खेलते देख लिया, जो उन्हें पसंद नहीं आया। उसके चाचा पूजा को पकड़कर घर ले गए और उसे खूब डांट लगाई।

पूजा बहुत ही खुश दिल लड़की है और उसे खेलना, पढ़ना, घूमना बहुत पसंद है। उस दिन डांट लगने की वजह से पूजा बहुत दुखी हुई और पूजा के मन में बहुत प्रश्न घर कर गए। इन प्रश्नों का जवाब उसे ढूंढने पर भी नहीं मिलता था।

एक दिन “गौरव ग्रामीण महिला विकास मंच” (स्वंयसेवी संस्था) के एक सदस्य ने पूजा के स्कूल में एक कार्यक्रम किया, जिसमें पूजा ने उनसे कुछ प्रश्न पूछा और उनके जवाब से संतुष्ट भी हुई। उस दिन से पूजा उनसे अपने मन की बातें करने लगी।

पूजा उनकी सहायता से अपने गॉंव में एक किशोरी मंच बनाती है, जहां से उसकी एक नई सफर की शुरुआत होती है। किशोरी मंच में फुटबॉल के माध्यम से किशोरियों को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार, जीवन कौशल तथा नेतृत्व क्षमता का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें पूजा टीम लीडर और फुटबॉल की कोच भी बन गई।

हालांकि इस बीच पूजा को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। घर से डांट सुनने के साथ-साथ गाँव के लोगों की गालियां भी खानी पड़ी लेकिन गाँव के बदलाव को देखकर पूजा बहुत खुश है। हाल ही में पूजा अपने काम के लिए 2 पुरस्कार भी जीत चुकी है।

2) खुशबू कुमारी

खुशबू

खुशबू खाड़ियां गॉंव गुलाब किशोरी समूह की लीडर है। खुशबू बताती है कि शुरुआत में जब वह फुटबॉल खेलने के लिए लड़कियों को घर-घर जाकर बुलाने जाती थी, तब उसे सबसे बहुत कुछ सुनना पड़ता था। लड़कियों की माँ बहुत गुस्से से बोलती थी कि तुम खुद तो बिगड़ी हुई हो, बाकि सभी लड़कियों को भी बिगाड़ दोगी।

खुशबू बताती है कि इस उम्र में कई बार लड़कियां गलत लड़कों के चक्कर में पड़कर अपना भविष्य बर्बाद कर लेती हैं और अपना आगे का लक्ष्य भूल जाती हैं। वे जो सपने देखती हैं उसे पूरा नहीं कर पाती हैं, इसलिए यह ज़रूरी है कि वे लड़कियां किशोरावस्था के बारे में जाने।

खुशबू ने लड़कियों के बीच यह पहल की, अब लड़कियां पीरियड्स के बारे में बात करने में शर्माती नहीं हैं। इसके लिए ना सिर्फ लड़कियों की बल्कि उनकी मॉं की भी ट्रेनिंग होती है। माता मीटिंग से माताओं पर भी प्रभाव पड़ा है। अब माँ भी साथ देती हैं और बोलती हैं कि जाओ दीदी आ गई है, जाकर खेलो। माँ भी हमारे खेल के मैदान में हमें खेलते हुए देखती हैं और खुश भी हो जाती हैं। बिना समाज की परवाह किए अब हम सभी बेझिझक खेलते हैं।

3) रितू कुमारी

रितु बताती है, “मेरा मन बहुत पहले से ही फुटबॉल खेलने को करता था पर फुटबॉल खरीदने को पैसे नहीं होते थे और लड़कियों की टीम भी नहीं थी, क्योंकि समाज में सिर्फ लड़के ही बाहर जाकर खेल सकते थे। जब स्नेहा खुशबू दीदी खेलाने आईं तो मैं बहुत खुश हो गई और दिल्ली के शक्ति भईया और स्नेहा दीदी से बहुत बढ़िया से खेलना सिख गये हम सब”।

रितु आगे बताती है कि इसके पहले हमारे गाँव के लोग तो लड़कियों को बाहर नहीं निकलने देते थे पर खुशी होती है कि संस्था (गौरव ग्रामीण महिला विकास मंच) के प्रयास से आज गाँव वाले अपनी लड़कियों को खेलने और पढ़ने की इजाज़त देते हैं। साथ ही कपड़े पहनने की रोक-टोक भी कम हुई है। शुरू-शुरू में हम सब दुपट्टा ओढ़कर खेलते थे पर आज हाफ पैंट और टीशर्ट पहनकर खेलते हैं। हमारे गाँव के लोग ही हमें देखते हैं। इस कार्यक्रम ने (माई बॉडी कार्यक्रम) हम लड़कियों की ज़िन्दगी बदल दी है”।

4) खुशबू कुमारी

खुशबू कुमारी

खुशबू की माँ आंगनबाड़ी की सेविका हैं। खुशबू अपनी माँ से यौन एवं प्रजनन अधिकार के बारे में बात करने से शर्माती थी। खुशबू की माँ माधुरी जी खुद से खुशबू को फुटबॉल खेलने के लिए भेजने लगी, ताकि खुशबू अपनी झिझक तोड़कर बातें करे और जानकारी ले सके।

खुशबू को खेलने के लिए उसकी माँ कहती हैं कि हम साथ हैं, तुम खेलो समाज से डरना नहीं, क्योंकि कल तुमसे ही समाज बदलेगा।

इस कार्यक्रम से खुशबू अपने अधिकारों के बारे में जानकर अपनी माँ को भी प्रेरित करती है कि लड़कियों की क्या ज़रूरते हैं? माधुरी जी खुद से भी लड़कियों को आयरन की गोलियों के बारे में बताती हैं और PHC से लाकर देती हैं।

खुशबू से कई लड़कियां अपनी कई निजी बातें शेयर करती हैं, जैसे-एक लड़की को 3 महीने से माहवारी नहीं आई थी, तो उसने डरकर खुशबू को बताया और उसकी माँ से जांच किट मंगवाकर जांच भी कराया। दो लड़कियों ने जो इस समूह से नहीं भी जुड़ी थी, उसने भी अपनी बहुत निजी बातें बताई, खुशबू ने सभी का विश्वास जीत लिया है।

 

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