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“क्या बीजेपी की जीत मुद्दों की राजनीति का परिणाम है?”

मोदी और अमित शाह

मोदी और अमित शाह

तमाम कयासों और अटकलों के बीच एक बार फिर केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की नेत्रृत्व वाली सरकार बनने जा रही है। आज मतगणना के दौरान शुरुआती रूझान देखकर लग रहा था कि मोदी अब पांच साल और बतौर पीएम रहने वाले हैं।

खैर, हमारे देश का आम चुनाव कहा जाए तो एक ऐसा त्यौहार है जिसे देश का हर नागरिक मनाता है। यह किसी धर्म या समुदाय का नहीं, देश का त्यौहार होता है। यह एक खेल है, जो हर पांच साल में होता है जिसमें देश की जनता महामहिम के रूप में नज़र आती है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में चुनाव का महत्वपूर्ण होना तो लाज़मी है ।

चुनाव के वक्त नेताओं को आती है मुद्दों की याद

इस बात से तो हम सभी वाकिफ हैं कि चुनाव की नींव देश के महत्वपूर्ण मुद्दे होते हैं। हर चुनाव से पहले कुछ मुद्दे, कुछ कार्य और योजना-परियोजनाएं होती हैं, जिनके आधार पर हमारे मतदाता अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं। यह बात भी सच है कि हमारे देश के नेताओं को मुद्दों की याद तब आती है, जब चुनाव नज़दीक दिखाई पड़ते हैं।

2018 से 2019 की बात करें तो तमाम मुद्दे उठाए गए। राम मंदिर विवाद, 10% सवर्ण आरक्षण बिल, पुलवामा हमला, बालाकोट एयर स्ट्राइक या विपक्ष का राफेल सौदा। इन मुद्दों के बीच राम मंदिर एक ऐसा मुद्दा है, जो शायद 1949 से अब तक हर चुनाव में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा है। अब इस विवाद से किसको कितना फायदा हुआ यह तो हम सब भलीभांति जानते हैं।

एससी-एसटी एक्ट का असर भी भूला नहीं जा सकता है। 2019 लोकसभा चुनाव के नज़दीक आते-आते राम मंदिर का मुद्दा दब सा गया है। खैर, इस बात पर भी कोई संदेह नहीं कि मुद्दा दबेगा नहीं तो 2024 में उभरेगा कैसे। देखा जाए तो जनता के समक्ष कितने मुद्दे आते हैं और कितने जाते हैं।

क्या हमारे देश की जनता इन सारे मुद्दों का मूल्यांकन करके अपना कीमती मत देती है? कहीं वह इन मुद्दों के बीच खुद को भटका तो महसूस नहीं करती है?

बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद लगा कि यह चुनाव का अहम मुद्दा रहने वाला है लेकिन समय के बदलते ही मुद्दे भी बदल गए। सातवें चरण के मतदान से पहले तो विपक्ष ने राफेल की जगह इश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को मुद्दे के रूप में इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश की लेकिन चुनाव परिणाम से यह साबित होता है कि तमाम मुद्दों पर राष्टवाद हावी गया।

पीएम मोदी। फोटो साभार: Getty Images

ऐसे ही तमाम मुद्दे सामने आते रहते हैं लेकिन क्या कभी हमारे देश के उस वर्ग से किसी ने पूछा कि वह क्या चाहते हैं, जो सड़क किनारे रात गुज़ारने को मजबूर हैं। क्या उन्हें मंदिर या प्रतिमा चाहिए या बारिश में सर ढकने के लिए छत।

क्या देश में बेरोज़गारों की संख्या ऐसे ही बढ़ेगी? चुनाव तो एक लंबी प्रक्रिया के बाद संपन्न हो गए और चुनाव परिणाम भी सामने आ ही गए लेकिन क्या हमारे देश की जनता ने मुख्य मुद्दों के आधार पर अपना मत दिया है?

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