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भाषा, धर्म और जाति के नाम पर बंटता हिन्दुस्तान

जातिवाद

जातिवाद

हाल के दिनों में अपने देश का माज़रा ही कुछ अलग है। किसी को वोट की चिंता सता रही है तो किसी को कोर्ट की। सभी अपने आपको सच्चा एवं ईमानदार साबित करने में लगे हुए है। पुराणों में पढ़ा था संत शाप दे तो मृत्यु हो जाती थी। अब कलियुग में भी यह समाचार सुनने को मिल गया।

राम को भुलाकर सब चौकीदार-चौकीदार चिल्ला रहे

मुझे तो लगा राम राज आ गया। अरे हां, राम राज से याद आया हम सब ने तो राम जी को भुला ही दिया। अब तो राम मंदिर और अयोध्या का ज़िक्र करना सभी ने छोड़ दिया।

अभी तो सब चौकीदार-चौकीदार चिल्ला रहे हैं, जिस तरह जियो आने के बाद मोबाइल में सबका टाइटल चेंज हो गया। ठीक उसी तरह अभी तो बस सब अपने नाम के आगे चौकीदार जोड़ने में लगे हुए हैं।

राफेल का भूत निकला नहीं?

कुछ को डिग्री की रट लगी है तो कुछ अभी तक राफेल के भूत से निकल ही नहीं पाए हैं। कुछ हमारे बड़े-बोले नेताजी सभा में क्या कहें? इसका अंदाज़ा तक नहीं रहा। चुनाव आयोग ने हिम्मत दिखाई तो प्रचार पर कुछ घंटों के लिए पाबंदी लगा दी। कम-से-कम 72 घंटे ही सही लेकिन संदेश तो अच्छा गया।

इसके बाद जो हुआ वह और भी दिलचस्प था‌। सभी को भगवान की पूजा-पाठ याद आई। चलिए इसी बहाने हमारे बड़े-बोले नेता जी ने कुछ धर्म-कर्म तो किए। चाहे जो भी हो इस लोकतंत्र के पर्व में गरिमा इतनी गिरेगी इसका अंदाज़ा नहीं था।

सोच-विचार कर मतदान करें

भारत के इतिहास पर नज़र डालें तो हम पहले से ही टुकड़े-टुकड़े होकर सिमट गए हैं मगर अभी भी यह मसला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। आज जाति, धर्म, भाषा और संप्रदाय आदि के नाम पर हम बंटने लगे हैं।

चुनाव के बारात में सब ऐसे डांस कर रहे हैं, जैसे सब की लुगाई फुल-माला लिए खड़ी है। अरे भाई, नागिन डांस का मज़ा लीजिए। चुनाव की दुल्हन तो किसी एक का ही इंतज़ार कर रही है।

चलिए जो भी हो सोच, समझ और विचार करें फिर मतदान करें और हां बटन अच्छे से दबाएं नहीं तो उंगली भी जा सकती है। कहावत तो सुने ही हैं, “अब पछताए होत क्या? जब चिड़ियां चुग गई खेत।”

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