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खेल के ज़रिए पीरियड्स के मिथकों को तोड़ रही हैं बिहार की ये दलित लड़कियां

Bihar Girl's Football Team

1) जूली कुमारी

8वीं में पढ़ने वाली जूली बताती है कि उसके साथ पढ़ने वाली लड़कियों की जब माहवारी शुरू होती थी, तब वे सभी डर जाती थीं। उस वक्त उन्हें गाँव के रीति रिवाज़ झेलने पड़ते थे, जैसे-बन्धनों को काटना, ढाई मग से नहाना, घर में ही रहना, बाल धोकर स्नान ना करना आदि।

मुझे भी डर लगता था कि मेरे साथ भी ऐसा ही होगा लेकिन “गौरव ग्रामीण महिला विकास मंच” एवं “क्रिया” की ओर से इट्स माई बॉडी कार्यक्रम से मैं जुड़ी, तब बहुत जानकारी हुई कि पीरियड्स क्यों और कैसे होता है? इसका असर यह हुआ कि मुझे पीरियड्स आने पर मैंने खुश होकर माँ को बताया। माँ ने मुझे पैड दिया। मुझे सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानना पड़ा क्योंकि माँ को भी सबकुछ बताया गया था। मैं बिलकुल नहीं डरी यह देखकर माँ भी खुश हो गई और माँ मुझे फुटबॉल खेलने से भी नहीं रोकती हैं।

2) नूतन कुमारी

लड़कियों को स्कूल जाते देखकर मेरा मन भी करता था कि मैं भी स्कूल जाऊं पर घर में काम करने के कारण मझे स्कूल नहीं भेजा जाता था।

मैं 12 साल की हो गई थी, तब स्नेहा और प्रतिमा दीदी हमारे गाँव की लड़कियों का माई बॉडी कार्यक्रम के लिए फॉर्म भर रही थीं। उस समय मैंने अपना नाम ज़िद करके लिखवाया और सेशन में जाने लगी। उस कार्यक्रम के तहत आयोजित माता मीटिंग में मेरी माँ भी गईं और उन्हें स्कूल की महत्ता का पता चला, तब जाकर मेरा स्कूल में नाम लिखवाया गया। फिर तो मुझे बहुत मज़ा आने लगा।

मैं फुटबॉल खेलने और पढ़ने में मन लगाती हूं। उस कार्यक्रम में हमें मासिक धर्म के बारे में ट्रेंड किया गया। मेरा मासिक धर्म शुरू हुआ तो मैं बिलकुल नहीं डरी, खुश होकर घर में माँ और चाची को बताया।

3) सरिता कुमारी

सरिता के माता-पिता उसे फुटबॉल खेलने नहीं जाने देते थे, बोलते थे,

खेल कर क्या होगा? हम अपनी बेटी को नहीं जाने देंगे, लड़कियों को खेलने में अगर चोट लग जाएगी तब उसकी शादी में दिक्कत होगी और लोग भी कहेंगे, जी लड़की आवारा है।

लेकिन फिर धीरे-धीरे अभिभावकों को भी समझाया गया और सरिता को समूह में आने की इजाज़त मिली गई। सरिता की सभी बड़ी बहन की शादी 14-15 साल में हो गई थी। किसी बहन की पढ़ाई नहीं हो सकी थी। सरिता अपने घर की पहली लड़की है, जो 12वीं में पढ़ रही है और यह पढ़ाई पूरी करके शिक्षक बनना चाहती है, ताकि समाज के सभी बच्चों को पढ़ा सके।

सरिता मुसहर टोली की लड़कियों को पढ़ाती है और उन्हें खेल-खेल में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार के बारे में बताती है।

सरिता का मानना है कि अगर वह इट्स माई बॉडी कार्यक्रम से नहीं जुड़ती, तो उसकी शादी भी कर दी जाती। मगर उसने हिम्मत दिखाई और अपनी शादी के विरोध में खुद खड़ी हुई कि उसे पढ़ना है और शिक्षक बनना है।

 

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