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“जात-पात अब नहीं है, कहने वाले दिन में मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहे हैं”

उसे ओपीडी में जाने की अनुमति नहीं थी, मरीज को छू नहीं सकती थी, “अरे तुम आरक्षण से आई हो ना” ऐसी टिप्पणियां की जाती थी, फिर क्या करती वह?

कुछ दकियानूसी लोग कहते हैं, जो भी हुआ पर उसे आत्महत्या नहीं करनी चाहिए थी, वह कायर थी। वही दकियानूसी लोग यह कभी नहीं कहेंगे कि आत्महत्या के लिए उकसाने वाले को सज़ा मिले। ऐसे दकियानूसी लोग किंग कोबरा सांप के समान होते हैं, खैर।

डॉक्टर पायल। फोटो सोर्स- फेसबुक

मैं पूरी तरह सहमत हूं, उसे आत्महत्या नहीं करनी चाहिए थी। किसी को आत्महत्या के लिए मजबूर करना भी हत्या है।

आप कुछ चैनल पर बहस, डिबेट देख सकते हैं, जिसमें कार्यवाही की बात ना कर आरक्षण पर बहस हो रही है। क्या विडंबना है? एक चैनल पर बहस यह चल रही थी कि आरक्षण के तहत प्रवेश पाने वाले कैंडिडेट की गोपनीयता रखी जाए, मतलब सूची में यह ना दिखाया जाए कि उसका एडमिशन आरक्षित कोटे के तहत हुआ है, मतलब मर्ज़ का इलाज ना करे बस आंख मूंद लें।

कैसे डॉक्टर होंगे, जो ऐसी मानसिकता के रोगी हैं, जो आरक्षित कोटे से आने वाले अपने सहपाठियों के प्रति ऐसे विचार रखते हैं, कितने कुंठित हैं। ज़रा कल्पना करें, ऐसे डॉक्टर के पास कोई अनुसूचित जाति जनजाति का मरीज चला जाए इलाज कराने, तब यह कैसे इलाज करेंगे? क्या इनकी मानसिकता वहीं नहीं रहेगी?

दरअसल, इनकी परवरिश ही ऐसे हुई है, इनके ज़हन में ही यह डाला गया है कि देखो यह आरक्षण तुम्हारे हक को छीनकर उन्हें देने के लिए बनाया गया है, यह नहीं बताया गया है कि हम ही लोग इनका 5000 साल से शोषण करते आए हैं और अभी भी कर रहे हैं।

आप सोच रहे होंगे कि आज की युवा पीढ़ी जात पात, ऊंच नीच से ऊपर उठ गई है, तो जनाब आप दिन में मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहे हैं। बाकी सब फर्स्ट क्लास है।

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