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Exit Poll: क्या सच में कॉंग्रेस की इतनी बुरी हार होने वाली है?

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में शामिल होकर आखिरकार करोड़ों लोगों ने अपना मतदान किया। रविवार शाम के 6 बजे तक देश के नए प्रधानमंत्री और सांसद की खोज में लोगों ने इस पर्व में खुद को शामिल किया।

अब सब उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला EVM मशीन में कैद हो गई है, जिसका पता तो 23 मई को चल पायेगा। अब चुनाव खत्म होते ही सबकी नज़रें न्यूज़ चैनलों पर टिकी हुई थीं, जो एग्ज़िट पोल के ज़रिये इस देश की नई सरकार का अनुमान लगाने वाले थे।

एग्ज़िट पोल कभी भी पूरी तरीके से सच नहीं होते और उसके लिए किसी को दोष दिया भी नहीं जा सकता है लेकिन एग्ज़िट पोल एक संदेश ज़रूर दे जाते हैं कि आखिर रुख किस ओर है? इस बार अलग-अलग एग्ज़िट पोल देखकर लगता है कि लोगों ने मौजूदा सरकार के खिलाफ या सीधा कहें तो मोदी के खिलाफ मतदान नहीं किया है।

आंकड़ों में उलझे बिना सीधी तस्वीर एक सन्देश साफ-साफ दे रही है कि यह देश राहुल गाँधी को उनके खानदान के नाम पर नेता नहीं मानेगा और अगर उनको सत्ता तक पहुंचना है तो फिर लोगों से जुड़ना होगा और एक नेता के तौर पर खुद को उभारना होगा।

राहुल गाँधी की स्पीच और उनकी रैलियों से कॉंग्रेस के वोट बढ़े नहीं हैं बल्कि आंकड़ों से ऐसा लगता है जैसे जो लोग कॉंग्रेस को वोट देने वाले थे, वे भी कॉंग्रेस से खुद को दूर करते गए हैं।

एग्ज़िट पोल की माने तो देश ने मोदी के आगे राहुल गॉंधी को नकारा है

फोटो सोर्स- Getty

जब इस देश के लोगों को मोदी और राहुल गाँधी के बीच एक फैसला लेना था, वहां लोगों ने राहुल गाँधी को सीधा नकार दिया है और शायद इसलिए कॉंग्रेस वहाँ भी अच्छा करती हुई नज़र नहीं आ रही है, जहां हाल ही में कॉंग्रेस ने अपनी सरकार बनाई है।

जहां भी भाजपा की टक्कर क्षेत्रीय दलों के साथ हुई है, केवल वहीं चुनाव में मुकाबला होता हुआ नज़र आ रहा है। वहीं दूसरी ओर जहां भी कॉंग्रेस और भाजपा आमने-सामने थी, वहां एकतरफा मुकाबला रहा है, जिसको आंकड़ों में हम देख सकते हैं।

अगर मोदी नहीं तो कौन का जवाब राहुल गाँधी पिछले 5 सालों में एक बार भी नहीं बन पाए, जिसका नतीजा यह हुआ कि मुद्दों से गायब चुनाव विपक्ष के नेता के बिना लड़ा गया, जहां केवल और केवल मोदी नज़र आएं और उनके सामने कोई विकल्प खड़ा ही नहीं हो पाया।

कॉंग्रेस को सोचना होगा कि क्या मौजूदा दौर में केवल बोलने से काम चल पायेगा या फिर इस बात को भी सोचना पड़ेगा कि आप क्या बोल रहे हैं और किस तरह बोल रहे हैं।

कॉंग्रेस राहुल गाँधी से कुछ ज़्यादा उम्मीद कर रही है और राहुल गाँधी इस देश को समझने की केवल कोशिश ही करते हुए नज़र आ रहे हैं।

किस बात से इस देश की मिट्टी से जुड़ा जा सकता है और मतदाता के मन को छूने वाले मुद्दे उनकी भाषा में उनको कैसे समझाया जाए इस बात को मोदी ने शायद बहुत पहले समझ लिया। वहीं राहुल गाँधी ने इस किताब को शायद ढंग से पढ़ा नहीं है और अगर 2024 तक कॉंग्रेस को विकल्प बनना है, तो फिर शायद मेहनत ज़्यादा करनी पड़ेगी, क्योंकि रास्ता इतना आसान नहीं है, जितना राहुल गाँधी समझ बैठे हैं।

आंकड़ों में इतना पीछे होने की वजह केवल और केवल राहुल गाँधी हैं और कॉंग्रेस को इसकी ज़िम्मेदारी लेकर अपनी गलती सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। कॉंग्रेस को यह भी मान लेना चाहिए कि राहुल गाँधी, राजीव गाँधी या इंदिरा गाँधी या नेहरू नहीं हैं, वह राहुल गाँधी हैं।

सरकार किसी भी बने लेकिन आंकड़ें बता रहें हैं कि कॉंग्रेस अपना अस्तिव बचाने में नाकामयाब हुई है और राहुल गाँधी खुद को एक नेता के रूप में खड़ा करने में विफल रहे हैं।

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