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अलवर गैंग रेप प्रशासन की निर्दयता दिखाता है

पति के सामने बलात्कार

पति के सामने बलात्कार

एक अपराध जिसने पूरे राजस्थान को हिलाकर रख दिया और बात सरकार के इस्तीफे तक आ पहुंची है। 26 अप्रैल को 5 आरोपियों ने अलवर के पास एक सुनसान सड़क पर एक दंपति के साथ मारपीट की। पति को बंधक बनाकर उसके सामने पत्नी का गैंगरेप किया और उसका वीडियो बनाया।

ऐसा दर्दनाक हादसा किसी के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से झकझोर देने वाला है। ऐसे अपराध समाज के लिए कलंक हैं और महिलाओं के लिए चिंताजनक है। इस मामले में उससे भी ज़्यादा चिंता करने वाली बात है पुलिस और प्रशासन का रवैया।

जनता पर हुए ज़ुर्म

दंपति जब इस अपराध की शिकायत लेकर पुलिस के पास पहुंचे तब पुलिस इसे टालती रही और उन्हें और टार्चर किया गया। दंपति द्वारा अखबारों में दिए बयानों से ऐसा लग रहा है कि पुलिस ऐसे खतरनाक अपराध के प्रति  असंवेदनशील थी। जनता के रक्षकों को जनता पर हुए ज़ुल्मो से फर्क नहीं पड़ता।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: pixabay

पुलिस टालती रही और थोड़े दिन में आरोपियों ने उस महिला का वह वीडियो भी वायरल कर दिया और ब्लैकमेल करने लगे। वीडियो वायरल होने की शिकायत करने जब दंपति पुलिस स्टेशन पहुंचे तो पुलिस अधिकारी ने कहा, “कोई बात नहीं। एक और धारा FIR में जोड़ देंगे।”

अपराध की टाइमिंग और चुनावी समय

इसके अलावा अपराध की टाइमिंग के कारण इसका राजनीतिकरण होना भी एक मसला है। पुलिस ने मामले को टालने कि एक और वजह बताई, “चुनाव का समय।” चुनाव के समय अगर ऐसे अपराधों की जांच करते हैैं तो सत्ता धारी पार्टी को वोटों का नुकसान होता है और इसीलिए इसे कई दिनों तक छुपाया गया।

नेता चुनाव में व्यस्त थे और किसी को परिवार की चिंता नहीं थी। कोई नेता परिवार को पैसे लेकर मामले को शांत करने का दबाव बना रहे थे। किसी को दुःख और समाज में बढ़ते अपराधों की चिंता नहीं है। सभी को बस वोट चाहिए मगर ज़िम्मेदारी निभाने से कतराते हैं।

सरकार की असक्रियता और बेखौफ अपराधी

पुलिस और राजनेताओं की मिली भगत ने ऐसे अपराध को मज़ाक बना कर रख दिया। आरोपी खुले आम घूमते हैं। सरकार की ऐसे असक्रियता देखकर क्या अपराधी अपराध करने से डरेगा? यह मामला दिखाता है कि कैसे जनता की रखवाली करने वाली मशीनरी पर धुल जमी है? कैसे जनता अपने आप को सुरक्षित महसूस करे? कैसे जनता को विश्वास हो कि वह अकेली नहीं है?

अपराधियों को सज़ा हो भी हो जाए लेकिन उस मानसिक तनाव का क्या जो उस परिवार ने हादसे के बाद सहा। यहां तो ऐसा लग रहा है कि वह परिवार खुद अपराधी की सज़ा भुगत रहा था। कोई नहीं समझ सकता कि ऐसे हादसों के बाद किसी की क्या हालत होती है?

उसके बाद भी ऐसा व्यवहार शर्मनाक है। हर महिला को सबसे ज़्यादा डर पुलिस स्टेशन में जाने और वहां के टार्चर से लगता है। सिर्फ पुलिसकर्मियों और राजनेता के इस्तीफे से व्यवस्था नहीं सुधरेगी। इसके लिए पुलिस सिस्टम में सुधारों की आवश्यकता है जो सिर्फ सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है।

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