Site icon Youth Ki Awaaz

महरौली के मदरसे में किस स्थिति में रहती हैं छात्राएं?

मदरसा

मदरसा

एडिटर्स नोट: [यह स्टोरी जामिया मिलिया इस्लामिया के स्टूडेंट्स हसन अकरम और इला काज़मी द्वारा ग्राउंड रिपोर्टिंग के आधार पर लिखी गई है।]


एक रूम, दो हॉल और एक किचन, महरौली में स्थित मदरसा ‘जामिया तुस-सालिहात’ में कुल इतनी ही जगह है, जहां लगभग 60 छात्राएं पढ़ती और रहती हैं। सुबह सात बजे से साढ़े बारह बजे तक इसी रूम और हॉल में क्लास चलती है।

उसके बाद छात्राएं यहीं सोती हैं, नमाज़ पढ़ती हैं और यहीं बैठकर अपना क्लास वर्क भी पूरा करती हैं। इस मदरसे में कुरान और हदीस के अलावा अंग्रेज़ी, हिन्दी, गणित और साइंस भी पढ़ाया  जाता है।

मदरसे में शामिल हैं कई पाठ्यक्रम

“यहां की छात्राओं को नेश्नल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपेन स्कूल से दसवीं और बारहवीं की परीक्षा भी दिलाई जाती है, जिसकी तैयारी कराने के लिए मदरसे के पाठ्यक्रम में हिन्दी, इंग्लिश, सांइस, सोशल साइंस और गणित को शामिल किया गया है।” उक्त बातें मदरसे की प्रिंसिपल नजमून नेसा ने बताई। 

फोटो  साभार: इला काज़मी

यहां पढ़ने वाली छात्राओं से 2000 रू मासिक फीस लिया जाता है, जिससे उनके रहने, खाने और पढ़ाई का खर्च पूरा किया जाता है। यहां 8 से 18 साल की आयु की लड़कियां हैं।

उनमें से अधिकतर का कहना है कि वह ‘आलिमा’ अर्थात  इस्लाम धर्म की विद्वान बनना चाहती हैं लेकिन यह पूछे जाने पर कि वह ‘आलिमा’ बनने के बाद क्या करेंगी? इस सवाल पर वह एक दूसरे का मुंह देखने लग जाती हैं क्योंकि इसका उनके पास कोई जवाब नहीं होता है।

बिना किसी के साथ मदरसे से बाहर जाना मना है 

शमा नाम की एक छात्रा वकील बनना चाहती है लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि मदरसे में पढ़कर वह वकील कैसे बनेंगीं? इस सवाल पर वह कहती हैं, “मदरसे से ही बारहवीं की परीक्षा दूंगी और उसके बाद वकील के कोर्स की तैयारी करूंगी।”

जब तक उनके परिवार का कोई सदस्य साथ ना हो इन छात्राओं को मदरसे से बाहर जाना मना है। छात्राओं को बाहर से कोई ज़रूरत का सामान मंगवाना हो तो  प्रिंसिपल  नजमुन नेसा ला देती हैं। इसके अलावा मदरसे में पढ़ने आने वाली स्थानीय छात्राओं से भी वह अपने ज़रूरत का सामान मंगा लेती हैं।

इस मदरसे में नैतिक शिक्षा पर काफी ज़ोर दिया जाता है। छात्राओं को बताया जाता है कि बड़ों का आदर करना है, नज़र नीची झुकाकर रहना है और टाइम पर नमाज़ पढ़ना है लेकिन इसके बावजूद, यह छात्राएं मदरसे में एक दूसरे के साथ मस्त-मगन और खुश नज़र आती हैं।

फोटो साभार- इला काज़मी

वह खेलने-कूदने या गपशप करने के लिए कभी छत पर चली जाती हैं, तो कभी सीढ़ी पर बैठकर हंसी मज़ाक़ करती हैं। छत पर उन्हें एक खुलेपन का अनुभव होता है और इसी अनुभव बारे में एक छात्रा अलीशा कहती है, “यहां आकर बहुत अच्छा लगता है। सब खुला-खूला सा रहता है और फिर दोस्तों के साथ बातचीत भी हो जाती है।” 

Exit mobile version