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“माँ से सेक्स के विषय में खुलकर बात करने का मेरा अनुभव”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

निधी राघवन द्वारा लिखित एवं समिधा गुंजल द्वारा चित्रित

ईरानी लेखिका मार्जेन सत्रापी की खूबसूरत चित्रों से भरी किताब ‘एम्ब्रॉइडरीज़’ मुझे मिली। मैं इस किताब को पहले पढ़ चुकी थी लेकिन फिर से पढ़ने के लिए उत्साहित थी। कुछ ही घंटों में मैंने इसे पढ़ डाला। पहली बार जब मैंने यह किताब पढ़ी तब मैं इसे अम्मा को पढ़ने के लिए देने की हिम्मत भी नहीं कर सकती थी।

ईरानी औरतों के सेक्स और ज़िंदगी की बात

पिछले कुछ सालों में हालात बदल गए हैं। मैंने किताब उन्हें देकर कहा, “यह बहुत ही खूबसूरत किताब है। इसमें बहुत सी ईरानी औरतों ने सेक्स और अपनी ज़िंदगियों के बारे मैं बात की है। पढ़कर बताना कैसी लगी।”

कुछ दिनों बाद मैंने किताब को उस जगह पड़े हुए देखा जहां अम्मा अक्सर मेरी किताबों को पढ़ने के बाद रख देती थी। ज़्यादातर वह किताब खत्म करके उसपर अपनी राय देती हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। मैंने जब उनसे पूछा कि उन्हें यह किताब कैसी लगी, तब उन्होंने कहा, “ठीक थी, इन औरतों को इतना खुलकर बात करते हुए देखना दिलचस्प है।”

असहज मुद्दों तक पहुंचाने का काम

अम्मा और मैंने अपने लिए एक नया पैटर्न विकसित किया था। मैं ऐसी किताबें ढूंढती हूं जिनका वह आनंद ले सकें और इस उम्मीद से देती कि हम बाद में उन मुद्दों पर चर्चा कर सकेंगे। नारीवाद, सेक्स, मिथकों में सेक्स, समलैंगिक औरतें और प्यार के वैकल्पिक रूप और सिंगल रहना।

यह व्यवस्था हमारे लिए काम कर रही थी। यह किताबें असहज मुद्दों को पहुंचाने का काम कर देती थी और वह मुझसे और किताबों पर मेरी सलाह लेती थीं।

कॉंडम खुला था

यह पहली बार नहीं था कि हमें सेक्स के बारे में ज़रूरी चर्चा करने का मौका मिला था। लगभग 5 साल पहले, अम्मा को मेरे बैग की जेब से एक कॉंडम मिला जो खुला था। मुझे यूं लग रहा था जैसे कोई दुर्घटना धीमी गति में घट रही हो। जब उन्होंने मुझसे कहा कि वह मेरे बैग में कुछ ढूंढ रही थीं तो पूरे दो दिन तक मुझसे नज़रें चुराती रहीं।

मेरा शक यकीन में बदलने लगा कि उन्हें काँडम मिल गया था। वह भी इस बात को छेड़ने से हिचकिचाती रहीं। शायद यह जानने के डर से कि उनकी सबसे छोटी बेटी लैंगिक रूप से सक्रिय थी।

बातकर अंतरंग विषयों से पर्दा हटाना

मैं उनसे इस बारे में बात करना चाहती थी ताकि हम अंतरंग जीवन के परदे को हटा सकें। इस उलझन को सुलझाने के लिए मैंने अपनी बहनों से फोन पर बात की लेकिन हंसी के ठहाकों के बीच उनके शब्द कहीं खो गए। जब अम्मा बिना जाने रह नहीं पाई तो उन्होंने आखिरकार बात को छेड़ ही दिया।

उन्होंने कहा, “मुझे तुम्हारी कोने वाली जेब से खुला हुआ काँडम मिला।” शब्दों को खोजते हुए मेरे चेहरे से रंग उतर गया और मैंने कोशिश कि मेरा मुख मंडल एकदम अभिव्यक्ति शून्य हो। मुझसे झूठ बोला नहीं जाता लेकिन ऐसी स्थिति में मेरे पास कोई उपाय नहीं था। मैंने कहा, “अरे, यह तो मेरे पानी के गुब्बारे वाले प्रयोग में इस्तेमाल हुआ था।”

सेक्स पर पाबंदी नहीं थी

अम्मा ने आंखों को छोटा करते हुए मेरी ओर देखा। किस्मत से उन्होंने और सवाल नहीं पूछे लेकिन उस दिन के बाद काफी समय तक हमारे बीच एक आराम माहौल बना रहा। एक हद तक परंपरागत घर में बड़े होते हुए सेक्स पर पाबंदी नहीं थी लेकिन कोई इस विषय को छेड़ता भी नहीं था। कभी-कभी बातचीत में कहीं से यह बात निकल आती लेकिन खुद से जुड़ी सेक्स की बातों से हम अपने आप को किसी तरह बचा लेते।

कभी-कभी हम रेप के संदर्भ में बात करते। हमेशा हमारे घर की चार दीवारों के अंदर फुसफुसाते हुए मैं गायनेकोलॉजिस्ट के पास जा रही थी, तो वह भी मेरे साथ चल पड़ीं। उन्होंने इस बात का मज़ाक उड़ाया कि उनकी पीढ़ी की औरतें प्रेग्नेंट होने के पहले कभी गायनेकॉलेजिस्ट के पास नहीं जाती थीं। मैंने जवाब दिया कि अब समय बदल गया है।

उन्होंने मेरे साथ रुकने की और डॉक्टर से सभी किए गए टेस्ट्स को लेकर बात करने की ज़िद की। दूसरी ओर मैंने वेटिंग रूम से डरते हुए अपने फ्रेंड को एक मैसेज भेजा।

लैंगिक रूप से सक्रिय होने की बात नहीं बता सकती

मैं इस बात को लेकर चिंतित थी कि अम्मा को अनजान रखकर मैं किस तरह से डॉक्टर को अपने लैंगिक रूप से सक्रिय होने के बारे में बता सकती थी। डॉक्टर के क्लिनिक से बाहर निकलकर मैं सोचने लगी कि आखिर अम्मा से मैंने अब तक यह बात क्यों छिपाई थी। वह क्या बात थी जो मुझे ऐसा करने से रोक रही थी? जैसे हम दूसरे मुद्दों पर बातचीत करते थे। वैसे ही इस बात को लेकर क्यों नहीं?

सेक्स पर बात करना आवश्यक लेकिन किस तरह?

हां, मुझे लगता है कि अपने बच्चों से सेक्स के बार में बात करना आवश्यक है लेकिन वयस्क होने पर यह बात अपने माता-पिता से कैसे की जाए? इस सवाल को अपनी अम्मा के सामने पेश करने की कोशिश कर रही हूं और हर बार सही शब्दों की तलाश में पीछे रह जाती हूं लेकिन मैं समझती हूं कि मेरी शादी होने पर बातचीत का रुख और रंग दोनों बदल जाएगा और मैं बिना डरे उनसे बात कर पाऊंगी।

अम्मा को भी मेरी बहनों से इस बारे में बात करना ज़्यादा आसान लगता है। मैं उनके साथ ईमानदारी का रिश्ता चाहती थी इसलिए उनसे बात करने के नए तरीके ढूंढती रही।

सेक्स और कामुकता से जुड़ी फिल्म

करीब एक साल पहले हैदराबाद में एक फेमिनिस्ट संस्था के साथ काम करते हुए हमने एक दो-दिन का फिल्म फेस्टिवल आयोजित किया था। हम फिल्मों की विस्तृत श्रृंखला दिखाने वाले थे और मैं इस बात से काफी उत्साहित ही। मेरी बड़ी बहन उस समय शहर में थी और उसे ‘एक्सेक्स’ नामक डाक्यूमेंट्री देखनी की इच्छा थी। वह लैंगिकता और विकलांगता पर बनी फिल्म थी।

इस फिल्म में औरतें, प्यार, सेक्स और ज़िंदगी के बारे में बात करती हैं। मेरा और मेरी बहन का यह मानना था कि अम्मा को यह फिल्म देखनी चाहिए। वह 52 मिनट तक औरतों को अपने अनुभवों के बारे में खुलकर बात करते हुए देखती रहीं।

यह फिल्म स्पष्ट रूप से सेक्स और कामुकता से जुड़ी औरतों के अनुभवों से संबंधित है। इन औरतों की कहानियों में बसी तस्वीरें और कवि‍ताएं हमें अपने पूर्वाग्रहों और ‘नॉर्मल’ के विचारों पर सवाल उठाने के लिए मजबूर कर देती हैं।

फिल्म के बाद दर्शकों का गुट व्यक्तिओं की लैंगिकता पर चर्चा करने के लिए इकठ्ठा हुआ लेकिन अम्मा ने बात नहीं की। ऐसा लग रहा था कि वह फिल्म को लेकर विचार कर रही थीं।

समलैंगिक औरतें सेक्स कैसे करती हैं?

अम्मा अंतर्मुखी स्वभाव की हैं। फिल्म को समझने के लिए अम्मा ने कुछ वक्त लिया और फिर हमसे पूछा, “समलैंगिक औरतें सेक्स कैसे करती हैं?” मेरी बहन ने उन्हें समझाने की कोशिश की। एक दिन मैंने लैपटॉप अम्मा को थमा दिया और हंसते हुए बोली, “इंटरनेट के पास तुम्हारे सवाल का जवाब है।”

मैं जानती हूं कि लोग अक्सर इस सवाल को गलत ढंग से पूछते हैं लेकिन उनके इस सवाल से हमें एक मौका मिला था। जहां हम उनसे लिंग-योनि प्रवेश के सीमित फ्रेम से परे सेक्स के बारे में बात कर सकते थे। अम्मा ने ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रॉ’ देखने की ज़िद की। मैंने उन्हें बताया कि फिल्म में काफी सेक्स सीन थे। इस बात का उन्होंने चिढ़ के जवाब दिया था। हमने फिल्म आखिर नहीं देखी।

लैंगिक रूप से सक्रिय होने की बात

कभी-कभी हमारी बातचीत से मुझे लगता है कि शायद उन्हें मेरे लैंगिक रूप से सक्रिय होने के बारे में मालूम है लेकिन इस बात को वह मानना नहीं चाहतीं। शायद सच्चाई से जूझने का यह उनका अपना तरीका है। मैं मज़ाक में कहती रहती हूं कि दुनिया को मेरी सच्चाई जानने की ज़रूरत नहीं लेकिन मैं यह चाहूंगी कि मेरी अम्मा मेरा सच जाने।

अम्मा को हमें समझने में दिलचस्पी और हमसे जुड़ने की क्षमता ने हमारे रिश्ते को मज़बूत बनाया है। इसने हमें भरोसे के आधार पर बने एक खुले और प्यारे रिश्ते को और बेहतर बनाने का मौका दिया है। यही वजह है कि मैं आसानी से उनसे बात कर पाती हूं और अपने विचारों को व्यक्त कर सकती हूं। बिना इस बात की परवाह किए कि वह किस तरह की धारणा बनाएंगी।

आज अम्मा, मेरी बहनें और मैं अक्सर सेक्स, अन्तरंग रिश्तों में सत्तागिरी, और काँडम और दूसरे गर्भ निरोधकों के बारे में खुल के बात करते हैं। बातचीत को हम अब फुसफुसाते हुए नहीं करते।

मुझे उम्मीद है कि एक दिन मुझे डॉक्टर के सामने अपनी बात करने के लिए किसी गुप्त कोड की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और अम्मा को राज़ पहले से ही सब मालूम होगा।

नोट: निधि राघवन एक फेमिनिस्ट हैं जिन्हें किताबें पढ़ने का शौक है। वह एक अंतर्मुखी इंसान हैं, जो लोगों के हक की वकालत करती हैं और औरतों एवं लड़कियों के हक, समानता और लैंगिकता के बारे में लिखती हैं। वह कविताओं में सुख ढूंढती हैं।

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