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क्या EVM को हैक करना संभव है?

ईवीएम

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ईवीएम में गड़बड़ी और वीवीपैट को गिनने के मसले को लेकर हाल ही में हो रहे हो हल्ले से परे जाकर जब आप इसकी गहराई से जांच करते हैं, तो पाते हैं कि दुनिया के लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों ने सिर्फ ईवीएम के आधार पर चुनाव प्रक्रिया को नकारा हुआ है।

दुनियाभर में लगभग 120 ऐसे देश हैं, जिन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनी राजनीतिक व्यवस्था के रूप में अपना रखा है। उनमें से मात्र 25 देश ऐसे हैं जिन्होंने ईवीएम के साथ कभी ना कभी, किसी ना किसी तरह का प्रयोग किया है। उनमें से भी कई विकसित देशों ने ईवीएम तकनीक को सिरे से नकार दिया है। यहां तक कि जर्मनी ने चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम के प्रयोग को असंवैधानिक घोषित कर दिया है।

2014 में वीवीपैट की शुरुआत

भारत में बूथ कैपचरिंग और मतपेटी चोरी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए ईवीएम प्रक्रिया लागू की गई थी, जिसपर 2009 में सबसे पहले बीजेपी ने गंभीर सवाल खड़े किए थे और एक व्यापक आंदोलन चलाया था।

 इसमें चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाया गया और अदालतों में केस भी लड़े गए। बहुत सारे जनवादी और लोकतंत्र पसंद संगठन भी इस लड़ाई को पहले से लड़ते आ रहे थे। इसी वजह से 2014 में वीवीपैट मशीन का इस्तेमाल शुरू किया गया।

ईवीएम के नतीजे मोबाइल से बदले जा सकते हैं

2010 में बीबीसी न्यूज़ के साइंस रिपोर्टर जूलियन सिडेल ने “US Scientists Hack Indian EVMs” शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोग से यह साफ कर दिया कि ईवीएम से निकलने वाले नतीजों को मोबाइल से संदेश भेजकर बदला जा सकता है।

इस प्रोजेक्ट को लीड करने वाले प्रोफेसर जे एलेक्स हाल्डरमेन ने स्पष्ट रूप से अपने प्रयोग का वीडियो बनाया और साफ किया कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है और नतीजे बदले जा सकते हैं।

ईवीएम तकनीकी मानकों पर खरी नहीं उतरती

2 सितंबर 2010 को सुब्रमण्यम  स्वामी ने “द हिंदू” में अपने लेख ‘The Problem With The EVM’ में स्पष्ट रूप से लिखा है कि ईवीएम तकनीक ‘Information Technology Act of 2000‘ के कानूनी मानकों पर खरी नहीं उतरती है।

इसी लेख में स्वामी ने लिखा कि 3 सितंबर 2009 को उन्होंने निर्वाचन भवन में हैदराबाद के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर श्री हरि वेमुरू ने ईवीएम मशीन को हैक कर दिखाया था।

नागालैंड के नोक्सेन विधानसभा में हुआ वीवीपैट का प्रयोग

एक ऐसा ही प्रयोग चुनाव आयोग के सामने बी.जे.पी. और शिवसेना ने 2009 में किया था। जब विवाद गहराने लगा तो भाजपा नेता सुब्रमणियन स्वामी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गए। जिसके बाद सितंबर 2013 में पहली बार नागालैंड के नोक्सेन विधानसभा के उप चुनाव में पहली बार पूरी तरह वीवीपैट का प्रयोग किया गया था।

जिसकी आवश्यकता और सफल प्रयोग के चलते 2016 तक इसे पूरी तरह लागू कर दिया गया। तब भी उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग की सहूलियत के हिसाब से इसे लागू होने दिया और अब भी चुनाव आयोग की सहूलियत के हिसाब से हर विधानसभा से रैंडमली पांच बूथ को वीवीपैट से गिनने के आदेश दिए हैं।

ईवीएम हैकिंग का प्रयोग करके दिखाया गया

7 अगस्त 2009 को तत्कालीन निर्वाचन आयोग के मुख्य आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के माध्यम से बताया था कि बीजेपी और शिवसेना का एक प्रतिनिधि मंडल 8 तारीख को चुनाव आयोग के सामने ईवीएम हैकिंग का प्रयोग करके दिखाएगा।

क्यों दुनिया के विकसित देश ईवीएम पर भरोसा नहीं करते?

सैफोलोजिस्ट और भाजपा के प्रवक्ता जी.वी.एल नरसिम्हा राव की 2010 में प्रकाशित हुई किताब ‘Democracy At Risk: Can We Trust Electronic Voting Machines?’ की प्रस्तावना भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी।

उनका कहना था, “सोचने वाली बात है कि क्यों दुनिया के विकसित देशों और बड़े लोकतंत्रों ने ईवीएम जैसी तकनीक पर भरोसा नहीं किया और इसे नकार दिया।”

ईवीएम की संख्या में गड़बड़ी

27 मई 2018 को आरटीआई एक्टिविस्ट मनोरंजन राय ने बाॅम्बे हाई कोर्ट में पी.आई.एल. दायर की। इसमें उन्होंने अपनी आर.टी.आई. के आधार पर प्राप्त किए ईवीएम और वीवीपैट से संबंधित डेटा को ध्यान में रखते हुए कहा कि भारत में ईवीएम का उत्पादन करने वाली दोनों सरकारी कंपनियों द्वारा निर्वाचन आयोग को दी गई ईवीएम मशीनों की संख्या में और निर्वाचन आयोग द्वारा प्राप्त की गई ईवीएम मशीनों की संख्या में बड़ा अंतर है। जिसे पहले फ्रंटलाईन ने ‘Missing EVMs’ के नाम से और बाद में द हिंदू ने भी प्रकाशित किया था।

फोटो साभार: Getty Images

इसमें यह दावा किया जा रहा है कि लगभग 20 लाख ईवीएम की हेराफेरी हुई है और सात सुनवाई होने के बावजूद भी निर्वाचन आयोग कोई ठोस ज़वाब देने में ना कामयाब रहा है।

पिछले दिसंबर में तीन राज्यों के चुनाव जीतने के बाद जब राहुल गाँधी से प्रेस वार्ता के दौरान ईवीएम पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने फिर से अपनी बात दोहराई कि इसमें गड़बड़ी संभव है और हमारी मांग वही की वही है।

वीवीपैट से जनता में विश्वास पैदा होगा

2019 के आम चुनावों से पहले 21 विपक्षी दल 50% वीवीपैट को ईवीएम से मिलान करके मतगणना करने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायलय गए थे, जिस पर चुनाव आयोग ने विधानसभा से वीवीपैड गिनने की बात कही लेकिन कोर्ट ने हर विधानसभा से 5-5 वीवीपैट गिनने के आदेश यह कहते हुए दिए कि इससे मतदाताओं में व्यापक विश्वास पैदा होगा। इस तरह पूरे देशभर में इस बार 20, 625 ईवीएम को वीवीपैट के ज़रिये गिना जाएगा।

वीवीपैट गिनने की मांग खारिज़

कोर्ट ने ‘Tech4All’ की जनहित याचिका में सारी वीवीपैट गिनने की मांग की गयी थी। जिसे “सुनवाई का सही समय” नहीं मानते हुए खारिज़ कर दिया गया। इन सब से यह साफ हो जाता है कि यह सवाल विपक्षी पार्टियों द्वारा एग्ज़िट पोल के बाद नहीं बल्कि चुनावों से पहले से ही उठाया जा रहा है। हर बार चुनावों के समय जो भी विपक्ष में होता है वह ईवाएम पर सवाल उठता है।

ईवीएम पर सत्ताधारी की चुप्पी

यह अलग बात है कि 2009 में ईवीएम के मुद्दे पर गरज़ने वाली पार्टी ने सत्ता के लिए इस मसले पर चुप्पी साध ली है। अब सबसे पहला सवाल यह उठता है कि कोर्ट क्यों इस मसले को निर्वाचन आयोग की “सहूलियत” और लागू करने के “सही समय” पर छोड़ रहा है जबकि यह भी मान रहा है कि यह मतदाताओं के व्यापक विश्वास का मसला है।

लोकतंत्र के इस मौलिक अधिकार की बलि

लोकतंत्र के इस मौलिक अधिकार पर ही अगर व्यापक विश्वास सिर्फ सहूलियत के नाम पर बलि चढ़ाया जा रहा है तो कहने ही क्या? हालांकि आज नहीं तो कल यह सुधार होने हैं लेकिन हर बार कुछ भी समय पर लागू नहीं कर पाने की खामी कितना नुकसान कर जाती है, इसका सही-सही अंदाज़ा कभी नहीं लग सकता।

फोटो साभार: Getty Images

पूरा मामला चुनाव सुधार का है ना कि किसी पार्टी विशेष का लेकिन फिर भी हमेशा सत्ताधारी पार्टी को इससे समस्या नहीं रहती और विपक्ष इसके लिए लड़ता रहता है। कारण शायद आपको बताने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि चुनावों में सत्ताधारी पार्टी द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग की बात अब किसी से छुपी हुई नहीं रही है।

ईवीएम खराब होती है तो उसमें क्या सुधारा जाता है?

क्या कोई ऐसा यंत्र बन सकता है, जिससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती और जब ईवीएम खराब होती है तो उसमें क्या सुधारा जाता है? साथ ही ईवीएम बदलने कि किसी भी संभावना और खबरों को नकारने वाले यह सोचे कि इतने स्ट्रांग रूम और सीसीटीवी किस लिए लगाए गए हैं?

मतगणना में कोई भी जीते-हारे, हो सकता है कि अब व्यापक स्तर पर कोई भी बड़ी गड़बड़ ना हो क्योंकि अब सब मुस्तैद और चौकन्ने हैं लेकिन मतदान और मतगणना पर उच्चतम न्यायलय के “मतदाताओं में व्यापक विश्वास” का क्या होगा?

मुद्दों और सवालों को व्यापक परिदृश्य में देखने की ज़रूरत है। कोई जीते-हारे यह सवाल बने रहेंगे, लड़ाई तो जारी रहेगी और सुधारों की गतिशीलता भी।

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