अभी 23 मई को इस लोकतंत्र के पर्व का परिणाम आया। भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ एक बार फिर सत्ता पर काबिज़ हुई और आज़ादी के बाद पहली गैर काँग्रेसी सरकार बनी जो पूर्ण बहुमत के साथ आई।
इसके लिए भारतीय जनता पार्टी को बधाई लेकिन इसके उलट देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा इतनी रैलियां करने के बाद भी बुरी तरह पिछड़ पिछड़ जाना चिंता का विषय है। इसके क्या मायने हो सकते हैं कि देश की इतनी बड़ी पार्टी को लोगों ने एक सिरे से नकार दिया है।
इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं उनके द्वारा सरकार की नाकामियों को लोगों तक ठीक से नहीं पहुचाना, सोशल मीडिया पर उनकी नकारात्मकता और वंशवाद। वंशवाद को भी लोग दो तरीके से देखते हैं।
एक तो यह कि अगर पिताजी जीत रहे हैं तो वह अब बेटे को राजनीति में लाना चाहते हैं। दूसरा पहलू यह भी है कि यह ज़रूरी तो नहीं कि किसी नेता का बेटा काबिल ही ना हो, हो सकता है कि उसमें इतना हुनर हो जो लोगों को समझ सके।
भाजपा के नेताओं में भी है वंशवाद
इसलिए हम उदाहरण भाजपा के ही नेताओं का ले लेते हैं, जिनमें दुष्यंत सिंह झालावाड़ राजस्थान संसदीय क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव जीते हैं, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ही बेटे हैं। भाजपा जब वंशवाद नहीं चाहती फिर इन्हें चुनाव लड़ाने का क्या मतलब?
क्या यह मानकर चला जाए कि इनमें काबिलियत है जो एक नेता में होनी चाहिए फिर काँग्रेस को लेकर लोगों की ऐसी धारणा क्यों? मौजूदा दौर में ऐसा माहौल बना दिया गया है जहां बीजेपी के नेताओं का वंशवाद जनता के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है।
चलिए अब वैभव गहलोत की बात करते हैं जो अशोक गहलोत के बेटे हैं और जोधपुर से चुनाव लड़े हैं। आप अगर पिछले कुछ सालों को देखें तो उन्होंने काँग्रेस के लिए बहुत काम किया है। वहीं, कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा से चुनाव जीते हैं, जो कि मध्यप्रदेश (लोकसभा चुनाव) में काँग्रेस के एक मात्र उम्मीदवार की जीत है।
इसी तरह अमेठी से राहुल गाँधी चुनाव हार गए हैं। मेरे विचार से अगर कहें तो भारतीय जनता पार्टी ने लोगों के मन में एक ऐसा मिथक बना दिया है जिसमें लोग वंशवाद को नकार रहे हैं बिना उसकी काबिलियत को परखे। खैर, लोगों को यहां समझना चाहिए कि अगर पिता काबिल हैं तो ज़रूरी नहीं कि बेटा काबिल नहीं हो सकता, हो सकता है वह पिता से भी बेहतर हो।
यकीनन ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव हार गए हो लेकिन मध्य प्रदेश में काँग्रेस को राज्य की सत्ता में काबिज़ करने में उनकी भूमिका को कोई नकार नहीं सकता है। सचिन पायलट के पिता भी संसद का हिस्सा रहे हैं, ऐसे में यह तो नहीं कह सकते कि सचिन काबिल नहीं है। उन्होंने 5 साल अध्यक्ष के तौर पर ज़मीन से जुड़कर काम करते हुए राज्य की सत्ता पर काँग्रेस को काबिज़ किया।
मेरा मानना यह है कि लोगों को इस विषय पर सोचना चाहिए। लोकतंत्र में किसी को भी वोट तभी दें जब आपने उसे पूरी तरह से परख लिया हो।