टाइम्स मैगज़ीन विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका है, जिसके कवर पेज पर अपनी तस्वीर प्रकाशित होने की आकांक्षा बहुत लोगों की होती है मगर उस पर विश्व के प्रभावशाली लोग ही अपनी जगह बना पाते हैं।
इसी क्रम में हमारे देश के प्रधानमंत्री को भी दो बार यह स्थान मिला है मगर उस समय इसकी विशेष चर्चा नहीं हुई थी। एक बार फिर इस महीने कवर पेज पर उनका स्थान सुनिश्चित हुआ है जो की अभी प्रकाशित भी नहीं हुई मगर चर्चा और विवाद दोनों का विषय है।
भारत को प्रमुख रूप से बांटने वाला
कवर पेज पर जिन वाक्यों से उनको दर्शाया गया है वह वाक्य है, “भारत को प्रमुख रूप से बांटने वाला।” एक प्रधानमंत्री के लिए इस तरह लिखना बेहद अपमानजनक है, बल्कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की अस्मिता पर भी सवाल है।
इस लेख को लिखा है ब्रिटिश बॉर्न राइटर आतिस ताशिर ने जिनके पिता पाकिस्तानी राजनेता और माँ भारतीय पत्रकार हैं। इन्होंने बहुत से बिंदुओं पर मोदी संबंधित विचार जाहिर किए हैं। इन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश की जनता से किए गए वादों में कितनी असफलता मोदी के हाथ लगी है, उसे बताया है।
मसीहा की छवि राजनेता में बदल गई
2014 के मसीहा वाले छवि को एक राजनेता के रूप में तब्दील कर दिया है। उन्होंने नोटबंदी पर सवाल उठाया है और प्रधानमंत्री के वादा खिलाफी को दर्शाया है। यह हिस्सा आपत्तिजनक नहीं है परन्तु लेखक ने भारत को प्रमुख रूप से बांटने वाले के रूप में बताया है। जिस पर आपत्ति करना जायज़ और ज़रूरी है। लेखक ने कुछ तथ्य के माध्यम से अपने बात को प्रमाणित करने की कोशिश की है। उनके तथ्यों का मैं सिलसिलेवार ढंग से खंडन करूंगा।
मोदी पाक साफ निकले
लेखक ने आज़ादी के बाद से लेकर 2014 तक के राजनीतिक कालखंड को कथित तौर पर उदारवादी बताया है और मोदी के कार्यकाल को अविश्वास का दौर। हम सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी जितना अपने गुजरात मॉडल से चर्चित नहीं हुए उससे कहीं ज्यादा उनकी चर्चा गोधरा कांड से है।
उसमें वह आरोपित थे। इस घटना के बाद लगभग 10 वर्ष तक काँग्रेस की सरकार रही। तमाम जांच एवं कानूनी प्रक्रिया के बाद भी मोदी इस मामले में पाक साफ निकले।
कोई दूसरा गोधरा कांड नहीं हुआ
गोधरा दंगा के बाद मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और पिछले 5 साल से देश के प्रधानमंत्री हैं मगर पुनः कोई दूसरा गोधरा कांड नहीं हुआ। मुसलमानों ने अपने मन में कहीं ना कहीं गोधरा कांड का ज़िम्मेदार नरेंद्र मोदी को माना। उनके मन में मोदी को लेकर एक नकारात्मक छवि स्थापित हो गई जो मोदी संबंधी किसी भी विचार या निर्णय को पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर देखता है।
उस वर्ग का अविश्वास कोई नया नहीं 2014 से पूर्व का है। संभव है लेखक भी इसी दृष्टिकोण से बाहर नहीं निकल पाए हैं। हालांकि नागरिक के तौर पर वह भारतीय नहीं हो मगर कौमी एकता के प्रति उनकी संवेदना है।
मॉब लिंचिंग के लिए मोदी जि़म्मेदार नहीं
लेखक ने मोब लिंचिंग को भी मोदी विरोध में तथ्य बनाया है मगर कई सार्वजनिक मंचों से मोदी ने इसकी निंदा की है। इस तरह की घटना को रोकने के लिए पहली ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है। यह ज़रूरी नहीं मोब लिंचिग की सारी घटनाएं भाजपा शासित प्रदेशों में हुई है इसलिए प्रत्यक्ष तौर पर नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता है।
शरिया पर आधारित कानून व्यवस्था
तीसरी बात लेखक ने कहा है कि 2014 से पूर्व तक शरिया पर आधारित तलाक व्यवस्था थी। मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर मुसलमानों पर ज़्यादती करने के लिए कानून लाया मगर यहां पर विचारणीय बात है। लोग इस बात को किस रूप में लेते हैं यह जानना ज़रूरी है।
आज़ादी के पूर्व और बाद में भी हिन्दू समाज में कई तरह कि कुरीतियां विद्यमान थी, जिन्हें ठोस रूप से समाज में धार्मिक एवं सामाजिक मान्यता थी परन्तु हिन्दू समाज के कुछ मनीषी विचारकों ने क्रांतिकारी कदम उठाए। जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह, बहू पत्नी प्रथा, उतराधिकार संबंधी नियम और छुआ-छूत आदि मगर उन विचारकों के प्रयास से इस तरह की कुरीतियां हिन्दू समाज से समाप्त हो गई है।
धार्मिक कट्टरवाद से नहीं निकाल पाए लेखक
लेखक ब्रिटिश बोर्न होने के बाद विश्व की इतनी बड़ी पत्रिका में लिखने वाले व्यक्ति हैं और वह अन्य मुस्लिम देशों के कानून से भी परिचित हैं। उन्हें तो लैंगिक असमानता के विरूद्ध लिखना चाहिए परन्तु उनकी धार्मिक कट्टरता ने उनकी जाहिलता को समाप्त नहीं किया है।
जहां क्षणिक क्रोध में किसी को बेघर और मोहताज कर दिया जाता है। यह प्रगतिशील सोच के विपरीत है। जहां महिला सशक्तिकरण की बात होती है। उन्हें इस मसले पर शरिया कानून की दुहाई नहीं देनी चाहिए। इस मामले में मोदी एवं सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के उद्धारक की भूमिका निभाई है।
धार्मिक राष्ट्रवाद की बात गलत
प्रधानमंत्री मोदी ने जब भी कोई भाषण दिया है तो उसमें राष्ट्र की जनता के हित में बात की है। उसमें स्वाभाविक रूप से मुसलमान भी सम्मिलित हैं। केंद्र सरकार द्वारा योजनाएं मुसलमानों एवं अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए विशेष रूप से चल रही है। अंततः यह धार्मिक राष्ट्रवाद की बात जो लेखक ने कि है उसे इस रूप में देखना उचित प्रतीत नहीं होता है।
यह कहना अतिरेक नहीं होगा कि मोदी इतने बड़े लोकतंत्र के मुखिया हैं जिन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत कुछ तो हासिल नहीं किया मगर अपनी एक पहचान स्थापित की है। प्रथम 5 देशों ने भी उनकी शख्सियत को स्वीकारा है।
दक्षिण एशिया के उभरते चेहरे को धूमिल करने का प्रयास
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की उदारवादी संस्कृति और वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया के उभरते चेहरे को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। यह भी एक विकृत मानसिकता का परिचायक है। आतिस ताशिर जिस देश की पैदाइश हैं, वह बांटने और शासन करने में विश्वास करता है और उनके पिता जिस मूल के हैं वह देश भारत से धर्म के आधार पर अलग राष्ट्र बनाए है।
नरेंद्र मोदी कोई लॉर्ड कर्जन या मो. अली जिन्ना नहीं हैं जो अपने राजनीतिक सुख सुविधा के लिए राष्ट्र को तोड़ने की बात करेंगे। लेखक का विचार अनुचित और अपमानजनक है। एक भारतीय के हैसियत से वैश्विक स्तर पर चल रहे भारत विरोधी सोच का प्रतिकार करना हमारा कर्तव्य और दायित्व है।