6ठे चरण का मतदान समाप्त हो गया। भ्रष्टाचार, लेट लतीफशाही एवं हिंसा के बावजूद भी भारतीय लोकतंत्र में आम जनमानस का यह विश्वास देखकर मन बहुत प्रसन्न है किन्तु एक चीज़ ऐसी थी जिसके लिए मन बहुत चिंतित था और वो यह कि विकास से कोसों दूर मेरे गृह जनपद सिद्धार्थनगर में इस बार मतदान प्रतिशत क्या होगा?
यह चिंता मेरी शुरू होती है 28 फरवरी से, सिद्धार्थनगर नवोदय विद्यालय पर मुख्य विकास अधिकारी महोदया और जॉइंट मजिस्ट्रेट मैडम का प्रोग्राम था, जिसमें मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के लिए विद्यालय में विशेष टीम आई हुई थी।
उसी दिन से यह मेरे लिए चिंता का विषय बन गया कि जिस विद्यालय में कक्षा छठवीं के बच्चे पढ़ते हों, 95% से अधिक छात्र-छात्राओं को अभी मताधिकार नहीं प्राप्त हुआ हो, उनके समक्ष इस प्रकार के कार्यक्रम कराने का क्या अर्थ?
मेहंदी प्रतियोगिता से मतदान कैसे बढ़ सकता है?
मैं अखबारों में पढ़ता रहा कि ज़िले में मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। बच्चों को धूप में खड़ा करके विश्व रिकार्ड बनाया जा रहा है, उसी क्रम में कार्यालाय को दुपट्टे से सजाया जा रहा है, रंगोली प्रतियोगिता आयोजित कराई जा रही है।
मेरी चिंता उस दिन से और ज़्यादा बढ़ गई जब मैंने अखबार में पढ़ा कि मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए मेहंदी प्रतियोगिता आयोजित कराई जा रही है।
ज़िले के आला अधिकारी, आप बुरी तरह फेल हो गए। एक मौका था आपके पास कीर्तिमान रचने का किन्तु आप लोगों को कौन समझाए, आप लोग अधिकारी जो ठहरे। महोदय, मेंहदी लगवाने, रंगोली बनवाने और बच्चों को धूप में खड़ा कर विश्व रिकॉर्ड बनाने से मतदान प्रतिशत नहीं बढ़ता।
मतदान प्रतिशत बढ़ता है गाँव-गाँव जाकर शिक्षा से वंचित लोगों को एक-एक मत के महत्व के बारे में समझाने से, जो बड़े सो कॉल्ड बुद्धिजीवी वर्ग, जो इस तपती धूप को सहन नहीं कर पाते और ज़िले के विकास ना हो पाने का ठीकरा सीधे सरकार पर फोड़ते हैं, उनको मुख्यधारा में जोड़ने से मत प्रतिशत बढ़ता है।
मेरे गृह जनपद में 50 प्रतिशत मत भी नहीं हुआ। आज दिनभर एक और चिंता का विषय बना रहा। लोगों का नाम मतदाता सूची में नहीं था। अधिकारी महोदय, अगर मतदाता जागरूकता अभियान चलाने से बेहतर मतदाता सूची को दुरुस्त कर लिए होते तो भी शायद तस्वीर बेहतर होती।
मेरा मानना है कि यह प्रशासन की विफलता है और अब वे इंडिया रिकॉर्ड बुक से पाए हुए पुरस्कार को नैतिकता एवं अपनी असफलता के नाम पर वापस कर दें।
कुछ लोग परीक्षाओं के कारण नहीं कर पाए मतदान
खैर, अब तो चुनाव सम्पन्न हो गए, 23 मई को नतीजे भी आ जाएंगे फिर से सरकारें काम करना शुरू कर देंगी मगर एक ऐसा विषय भी है जो हमें अगले चुनाव में भी चिंतित करेगा, वह यह है कि उन साथियों का क्या जो लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा तो लेना चाहते थे लेकिन उनके विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं चल रही हैं।
दुःख होता है यह जानकर कि बहुत से साथी इस कारण से लोकतंत्र के पर्व में अपनी सहभागिता से वंचित रह गए। बहरहाल, आगामी सरकारों से व्यवस्था में कुछ ऐसी नीतियों की अपेक्षा रखते हैं कि जो नागरिक अपने गृहक्षेत्र से दूर हो, उसे भी मताधिकार प्रयोग करने का अवसर मिले।
मेरे लिए यह मात्र कोरी कल्पना ही है क्योंकि जब यह पुरस्कृत प्रशासन मतदाता सूची नहीं दुरुस्त करवा सकता तो ऐसी व्यवस्था तो अभी एक सपना ही है फिर भी लोकतंत्र में आम जनमानस के विश्वास की ऐसी तस्वीरें आती हैं तो मन से यही आवाज़ आती है, “हे लोकतंत्र, तू अमर रहना।”