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“बाइक पर आ जाओ जानेमन कहकर मेरी फ्रेंड को असहज किया गया”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

लड़कियों का पीछा करना और उन्हें छेड़ना मानसिक रूप से बीमार लोगों का काम है। किसी लड़की की तरफ आकर्षित हो जाना सामान्य है किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें परेशान करना भी सामान्य गिना जाए।

आये दिन अखबारों में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और बैड टच के मामले सामने आते रहते हैं। इस गंदी हरकत में अच्छे घर के लड़के भी शामिल रहते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि लड़के भरे बाज़ार, कॉलेज या किसी सार्वजनिक जगह पर भी बिना डरे लड़कियों पर कमेंट करते हैं और उन्हें आइटम कहते हैं।

“मेरी बाइक पर आ जाओ जानेमन”

एक घटना बताता हूं। मैं अपनी एक महिला मित्र को परीक्षा दिलाकर वापस घर लौटने वाला था। जैसे ही कॉलेज से बाहर निकला तीन बाइक सवार लड़के पीछा करने लग गए। एक बाइक पर दो और दो बाइक पर एक-एक लड़के मेरी बाइक के आगे-पीछे करने लगे और हमें परेशान करने लगे। मैं ठहर गया और वे भी थोड़ा आगे जाकर रूक गए।

जैसे ही मैं आगे बढ़ा तो एक लड़का जो बाइक से अकेले था, उसने मेरी दोस्त पर कमेंट करते हुए कहा, “मेरी बाइक पर आ जाओ जानेमन।” मैंने साफ-साफ सुना लेकिन मेरा कुछ भी बोलना ठीक नहीं था। मेरे साथ होने पर लड़के इस तरह परेशान कर रहे थे और कल जब साथ नहीं रहूंगा फिर? यही सोच कर मैंने झगड़ा करना या कुछ बोलना उचित तो नहीं समझा मगर मेरी मित्र असहज हो गई।

हर लड़की के साथ यही व्यवहार होता है

ऐसा नहीं है कि ऐसे लड़के किसी एक लड़की का पीछा करते हैं और उन्हें परेशान करते हैं बल्कि राह चलते हर आने-जाने वाली लड़कियों के साथ उनका यही व्यवहार रहता है। इन लड़कों की उम्र सत्रह से चौबीस वर्ष के बीच होती है। जिस उम्र में उन्हें अपना भविष्य निखारना रहता है, उस उम्र में गाड़ी से लड़की का पीछा कर समाज को दूषित करने में उलझे रहते हैं। इसकी शिकायत किससे की जाए? पुलिस से? नहीं-नहीं। क्यों नहीं यह भी जान लीजिए।

बलात्कार की फाइल खुलती ही नहीं

ये मनचले पुलिस के हत्थे आसानी से नहीं चढ़ते हैं और अगर आप पुलिस थाने में शिकायत करने चले भी गए तो आखिर शिकायत किसे करेंगे? ना तो आप उनका नाम जानते हैं औ ना ही उनका पता। छेड़छाड़ तो छोड़िये बलात्कार की फाइलें तो खुलती नहीं तो इसपर कौन ध्यान दे?

लड़कियों की इज्ज़त करना सिखाना होगा

इस समस्या से निजात पाने के लिए हमें और इस पूरे समाज को मिलकर आगे आना होगा। दरअसल यह लोग मानसिक रूप से बीमार हैं। इनके डर से लड़कियां घर से निकलने में भी डरती हैं। हमें घर में खुल कर इस विषय पर बात करनी होगी। जब घर के बच्चे छोटे हो तभी से उनके दिमाग में यह बात बिठा देनी होगी कि यह मामला कितना गंभीर और संवेदनशील है।

उन्हें लड़कियों की इज्ज़त करना सिखाना होगा। साथ ही उन्हें बताना होगा कि उनकी भी बहनें हैं। उसके साथ अगर बुरा हुआ तो उन्हें कैसा लगेगा? ये बातें उनके भीतर डर के रूप में नहीं बल्कि एक संवेदनशील विषय के रूप में स्थापित करनी होगी। एक-एक व्यक्ति को बदलना होगा। घर के बच्चों को समझाना होगा क्योंकि जब तक उनके मानस पटल का विकास नहीं होगा तब तक यह समस्या बनी रहेगी। याद रहे कल आपकी बहन की बारी भी हो सकती है।

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