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“अपने पति के लिए मैं एक प्रॉपर्टी हूं, जिसने सेक्स के लिए मुझे खरीद लिया है”

महिला

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भारतीय समाज में शादी का बहुत महत्व है। शादी के बिना जीवन अधूरा माना जाता है। कई बार यह शादी एक तरह से सज़ा का रूप बन जाती है। विशेषकर लड़कियों के लिए।

अक्सर ग्रामीण परिवेश में देखा जाता है कि अगर कोई लड़की किसी लड़के से मोहब्बत करती है और यह बात अगर घर वालों को पता चल जाए, तो सज़ा के तौर पर उसकी शादी बिना उसकी इच्छा के करवा दी जाती है। इस तरह से ना तो लड़की को उस लड़के के बारे में सारी जानकारी मिल पाती है और ना ही वह उसकी आदतों से वाकिफ हो पाती है।

अपने साथ हुए एक ऐसे ही ज़ुल्म की कहानी का ज़िक्र करते हुए सारिका (बदला हुआ नाम) कहती हैं,“मैं जब 17 साल की थी तब मुझे एक लड़के से प्यार हो गया था और यह बात मेरे घरवालों को पता चल गई। उन्हें मेरी मोहब्बत रास नहीं आई। पहले तो मेरा घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया और एक दिन मेरे हाथ में मेरी शादी का कार्ड लाकर थमा दिया गया।

मुझे कहा कि अपने दोस्तों को इनवाइट कर लेना। यह सब कुछ इतना जल्दी हो गया कि मैं कुछ समझ नहीं पाई। मेरे ही परिवार वाले मुझसे बदला लेने पर तूल गए, अपनी बदनामी का बदला।

मेरा परिवार गाँव में प्रतिष्ठित परिवार था और उन्हें लगा कि अगर मेरे रिश्ते के बारे में किसी को पता चला तो उनकी बहुत बदनामी होगी। उन्होंने अपनी तथाकथित इज्ज़त को बचाने के लिए मेरी अस्मिता और आत्मसम्मान को ज़िंदगी भर के लिए दांव पर लगा दिया।”

18 साल में ही कर दी गई शादी

सारिका आगे कहती हैं, “जब मैं 18 साल की थी तभी मेरी शादी करवा दी गई। उसके बाद जो हुआ वह बहुत ही दर्दनाक था। मेरा पति मुझे अपनी पत्नी नहीं प्रॉपर्टी समझता था, जिसे उसने सेक्स करने के लिए मेरे परिवार से जैसे खरीद लिया हो। मेरी इजाज़त और इच्छा से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसे सिर्फ अपनी हवस मिटाने से मतलब था और मुझे मारना-पीटना तो उसके लिए बोनस था।”

मैं उसके लिए स्ट्रेस बॉल थी

सारिका का कहना है कि वह अपने पति के स्ट्रेस बॉल की तरह थी। वह बताती हैं, “जैसे आप स्ट्रेस दूर करने के लिए बॉल दबाते हैं, वैसे ही वह स्ट्रेस दूर करने के लिए मुझे मारता था। अपने बॉस से बेइज्ज़त होकर घर आने के बाद वह अपना मेल ईगो बचाने के लिए सारी खुन्नस मुझ पर निकाला करता था। मेरी तबियत सही हो या ना हो। चाहे मेरी इच्छा हो या ना हो या फिर मेरे पीरियड्स ही क्यों ना हो। उसे बस अपनी हवस से काम था।”

सारिका कही हैं, “मुझे याद है एक बार जब मेरे पति ने मुझे मारा तो मेरे कान में बहुत तेज़ दर्द शुरू हो गया और मुझे हॉस्पिटल ले जाने के लिए मेरे मायके वाले आए। जब मैं हॉस्पिटल में थी तब भी मेरा पति हॉस्पिटल तक नहीं आया।”

बकौल सारिका,

मैंने अपनी माँ को हर रात झेले जाने वाले दर्द के बारे में बताया मगर उन्होंने कहा कि यही तेरी किस्मत है और तुझे ज़िंदगी इसी के साथ गुज़ारनी है।

शादी के नाम पर होता रहा रेप

सारिका अतित के दिनों को याद करते हुए कहती हैं, “मैंने अपनी माँ से कहा कि यह मेरी किस्मत कैसे हो सकती है? यह तो आपका बदला था ना माँ मेरी मोहब्बत के बदले आपने इस दरिंदे को मेरी किस्मत बना दिया। मेरी बचपन की नादानी समझ कर ही माफ कर देते।

यहां हर रोज़ मेरी इज्ज़त लूटी जाती है। हर रोज़ मेरा रेप होता है और इस रेप की कीमत है आपकी इज्ज़त लेकिन फिर भी उन्होंने इलाज़ के तुरंत बाद मुझे मेरे ससुराल छोड़ दिया और मुझे कहा गया कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।”

मैं उसके लिए सेक्स डॉल थी

“मेरे पति ने मेरी तबियत तक पूछना मुनासिब नहीं समझा और वह फिर से शुरू हो गया। मैं जब कान के दर्द से जूझ रही थी तब भी उसे सेक्स के सिवा और कुछ नहीं सूझ रहा था। अंत: वही हुआ जो इस देश की अधिकांश लड़कियों के साथ होता है। मैं अपने वहशी पति, माँ-बाप और अपनों से हार गई।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: /pixabay

मैंने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया क्योंकि मेरी माँ ने ही इस नीच काम को मेरी ज़िम्मेदारी बता दिया था कि हालात कुछ भी हो मुझे अपने पति की ज़रूरतें पूरी करनी होगी। मैं अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक सेक्स डॉल बनकर रही गई थी।

इस दर्द को मैंने सालों तक झेला और इसका अंत उसकी अचानक हुई मौत के साथ हुआ। अब मैं आज़ाद हूं और एक बड़ी कंपनी में जॉब कर रही हूं। मैं तो अपनी जंग हार गई मगर मेरी किस्मत नहीं हारी।”

भारतीय कानून के नज़रों में यह रेप नहीं

सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि भारतीय कानून इसे रेप ही नहीं मानता क्योंकि यहां तो पत्नियों को पति की जागीर समझा जाता है। वह उसका जिस तरह चाहे इस्तेमाल कर सकता है। यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था का ही नतीज़ा है कि एक माँ खुद अपनी बेटी को इस तरह की पीड़ा झेलना लड़की का धर्म बताती है। हमारे समाज में लड़कियों के शोषण के पीछे जितने ज़िम्मेदार मर्द हैं उतनी ही औरत भी है।

कानून और सरकार भारतीय पीनल कोड की धारा 375 में जहां रेप के आधारों को समझाया गया है। वहां अपवाद में लिखा गया है कि कोई पति अपनी 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी की इजाज़त के बिना सम्भोग करता है तो वह बलात्कार नहीं होगा।

वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संदर्भ में लागू नहीं

वहीं, दूसरी तरफ भारत की महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी कहती हैं, “वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संदर्भ में लागू नहीं की जा सकती।” यह बयान एक महिला मंत्री द्वारा दिया जाना शर्म की बात है।

सेक्स में लड़की की सहमति ज़रूरी

मैं पूछत हूं आखिर क्यों लागू नहीं की जा सकती? क्यों भारतीय लड़कियों को एक वस्तु बनाकर रखा जा रहा है? क्यों भारतीय समाज में सेक्स के लिए लड़कियों की सहमति ज़रूरी नहीं है?

क्या शादी सिर्फ इसलिए की जाती है कि बिना अपनी पत्नी की इजाज़त के सेक्स किया जा सके? एक तरह से शादी के नाम पर मर्द अपने लिए एक सेक्स डॉल खरीद लेते हैं, जिसके साथ वह जब चाहे जैसे चाहे खेल सकें। इसमें महिलाओं की इच्छा के लिए कहीं जगह नहीं होती है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 497 तो यहां तक कहती थी कि एक औरत अपनी इच्छा से किसी गैर मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं बना सकती है‌। हां अगर उसका पति इजाज़त दे तो बना सकती है। इसका मतलब यही हुआ कि एक पत्नी उसके पति की प्राइवेट प्रॉपर्टी है? इस कानून को कुछ वक्त पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था।

वैवाहिक रेप के खिलाफ बोलना ज़िम्मेदारी है

रेप के खिलाफ हम सब एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करते हैं और उन्हीं विरोध प्रदर्शनों के बाद कुछ लोग अपने घर जाकर अपनी पत्नियों का रेप करते हो क्योंकि उनकी नज़रों में तो वह कुछ गलत कर ही नहीं रहे हैं।

उन्हें कभी सामाजिक या कानूनी तौर पर बताया ही नहीं गया कि सेक्स के लिए पत्नी की रज़ामंदी और इच्छा दोनों की ज़रूरत होती है। उन्हें तो लगता है शादी ने उन्हें सर्टिफिकेट दे दिया है सेक्स का।

सारिका की किस्मत ज़्यादा अच्छी थी। उसके पति की आकस्मिक मृत्यु हो गई और उसे इस शोषण से मुक्ति मिल गई मगर हर किसी की किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती इसलिए हमें इस चर्चा को सहज बनाना पड़ेगा।

प्रथम प्रकाशित: https://wittychidiya.com/

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