Site icon Youth Ki Awaaz

“10 प्रतिशत गरीब सवर्ण आरक्षण विश्वविद्यालय भर्ती में ऐतिहासिक धोखा है”

देश के सभी सरकारी संस्थानों में 10 प्रतिशत गरीब सवर्णों का जातिगत आरक्षण लागू करने के लिए रॉकेट गति से काम हो रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में मीटिंग पर मीटिंग हो रही है लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में यह नौकरी देने की बजाय नौकरी छीनने का हथियार साबित हो रहा है।

31 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार की तरफ से 10 प्रतिशत आरक्षण को लेकर एक पत्र आया, उसको अगर ठीक-ठीक, अक्षरशः पढ़ा जाए तो साफ पता चलता है कि देश की आज़ादी के बाद आज तक किसी सरकार ने इससे बड़ा धोखा देने वाली नीति नहीं बनाई। यह आरक्षण असल में इस देश के साथ ऐतिहासिक धोखा है। कुछ बातें इसमें गौर करने लायक है।

अब ऐसे में एडहॉक शिक्षक जिसकी वार्षिक आय करीब 10 लाख रुपये है, उसे नौकरी से रिज़ाइन कर बेरोज़गार होना पड़ेगा, गरीब होना होगा, तभी वह जातिगत EWS आरक्षण का लाभ ले सकेगा।

सवर्ण एडहॉक शिक्षक को मुश्किल से ही मिलेगा लाभ

अब इसमें और भी खेल है। आप अगर गरीब हो भी गए तो उस पत्र में परिवार की इनकम को परिभाषित किया गया है। उसको ढंग से पढ़ने से पता चलता है कि शायद ही कोई सवर्ण एडहॉक शिक्षक परिवार इस आरक्षित कैटेगरी में आता हो। दिल्ली विश्वविद्यालय में 10 प्रतिशत के हिसाब से 1000 शिक्षक पहले बेरोज़गार होंगे, गरीब होंगे, कम-से-कम एक साल तक नौकरी से बाहर रहेंगे और फिर दोबारा अगर सीट आई तो वह इंटरव्यू देंगे, सेलेक्ट हुए तो नौकरी मिलेगी, जिसकी संभावना लगभग नगण्य है। क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति भी सामने ही खड़ा है।

सरकार ने सीटों का ब्यौरा तो मांग लिया लेकिन अभी तक दिया नहीं। मतलब मंशा साफ है कि जितनी सीटें पहले से हैं, उसमें इस आरक्षण को लागू करना है। अगर ऐसा हुआ तो हज़ारों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (DUTA) ने इस आरक्षण को लागू करने के लिए सरकार को, वादे के मुताबिक 25 प्रतिशत सीटें और इसको लागू करने के लिए ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मांगी है और साफतौर पर कहा है कि काम कर रहे शिक्षक किसी भी हालत में बाहर नहीं किये जाएंगे लेकिन अब जब नए सेशन को शुरू होने में मज़ह दो महीने बचे हैं और सरकार एवं प्रशासन का रवैया कतई सकारात्मक नहीं दिख रहा है।

इस आरक्षण को लागू करने की बात तो दूर पहले, इस धोखे को समझने की ज़रूरत है। यह एक ऐसा ऐतिहासिक धोखा है, जिसे समझने के बाद दिल बैठ जाना स्वाभाविक है लेकिन ‘मोदी-मोदी’ के चक्कर में इस धोखे को शायद ही कोई समझने की कोशिश कर रहा है। शुरुआत में जातिवादी लोगों ने इसे खूब सराहा और अब वही लोग अपनी नौकरी बचाने के लिए दिन-रात ऑफिस में ‘रोस्टर’ में पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि कहीं उसकी सीट तो EWS में नहीं चली गयी।

बात किसी सीट के EWS में चले जाने की नहीं है बल्कि किसी की भी सीट चले जाने की है। नौकरी आपकी जाए या किसी और की लेकिन नौकरी जानी तय है। और भी बहुत बातों के साथ, एक अंतिम बात यह समझना ज़रूरी है कि मोदी सरकार ने इस देश की जनता के साथ एक ऐतिहासिक धोखा किया है। समय रहते अगर कोई ना चेता तो इसका नुकसान भी ऐतिहासिक ही होगा।

असल में ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए सरकार ने जो वादे किए थे वो ही आजतक पूरा नहीं हुआ। अभी शिक्षकों की दूसरी खेप सरकार को देनी है अगर वो देते हैं तो दिल्ली विश्वविद्यालय में 3500 नए शिक्षक होंगे मतलब कुल संख्या तकरीबन 14000 होगी और इसपर 10 प्रतिशत 1400 होगा लेकिन सरकार दूसरी खेप तो छोड़िए 10000 का 10 प्रतिशत भी देने को तैयार नहीं है।

नए सेशन शुरू होने से ही दिल्ली विश्वविद्यालय में कत्लेआम शुरू होगा और जेट एयरवेज़ के कर्मचारी की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय के सवर्ण शिक्षक भी आंखों में आंसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें लिए जंतर-मंतर पर दिखेंगे। अब यह देखना है कि DUTA इस कत्लेआम को कैसे बचा सकेगा? बाकी बेरोज़गारी 45 साल के इतिहास में अपने चरम पर है।

#सत्यमेवजयते

Exit mobile version