कुछ वक्त पहले रॉयटर का सर्वे आया था, जिसमें लगभग 500 लोगों की राय लेकर एक सूची बनाई गई थी। उस सूची में भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश के रूप में दिखाया गया, जिसके बाद हम सवाल उठाने लगे कि यह 500 लोग कौन हैं, जिनका नज़रिया भारत की स्थिति निर्धारित करता है।
रॉयटर ने नहीं छुपाया सर्वे का आधार
हमारा प्रश्न सही था मगर यह बात भी सही थी कि रॉयटर ने यह नहीं छुपाया कि सर्वे का आधार क्या है। उन्होंने उसी लेख के ठीक नीचे यह लिख दिया कि यह 500 लोगों के नज़रिए का निचोड़ है। कोई PEW RESEARCH नहीं है, जिसके बाद लोगों में गुस्सा और बढ़ गया।
लोकल आदमी को पत्रकार बनाकर काम कराया जाता है
अब एग्ज़िट पोल के मामले में कौन सा ऐसा मीडिया हाउस होगा, जो देशभर के पोलिंग बूथ पर 50 हज़ार पत्रकार भेजकर इतना खर्चा करेगा। हम अच्छे से जानते हैं कि हमारे पत्रकार अब स्टूडियो में ही खेलते हैं। हमें तो हैरानी होती है कि वे स्टूडियो से ही एग्ज़िट पोल के आंकड़े दे कैसे देते हैं?
वे गाँव के किसी लोकल आदमी को पत्रकार बोलकर उसकी रिपोर्ट को अपने हिसाब से दिखाते हैं। यदि यह ना होता तो हमें कभी अंजना ओम कश्यप भिंड में और सुधीर चौधरी मुन्नार में दिखते मगर ऐसा कभी नहीं होता।
बाहर का मीडिया हाउस बेहतर
बाढ़ और तूफान गुज़र जाते हैं मगर ना तो हमारे पत्रकारों के कानों पर जूं रेंगती है और ना ही वे कोई थम्सअप स्टंट करते हैं कि थोड़ा एडवेंचर ही हो जाए। वे केवल भावुक अपील करते हैं और हमारे आगे रोते, गिड़गिड़ाते, झल्लाते और गुस्साते रहते हैं कि हिंदू धर्म को बचा लो। साध्वी के सम्मान के लिए खड़े हो, भारत को माता बोल दो और वगैरह-वगैरह।
इनके एग्ज़िट पोल पर कैसे भरोसा करें? यूएसए में तो लोग ट्रंप मामले में एग्ज़िट पोल का नाम लेते ही हंसने लगते हैं लेकिन वहां पर मीडिया यहां से तो काफी बेहतर और मेहनती है।
चाचा किसको वोट दिए हो?
मतदान केंद्र पर जब 10 पार्टी वाले घेरकर पूछते हैं, “हां चाचा किसको दिए हो वोट?” यह सवाल कितनी भी विनम्रता से पूछ लो। चाचा के मन में ऐसा डर बैठ गया है कि 10 लोग देखकर पहले पूछ लेते हैं, “आप कौन हो? अच्छा आज तक से हो।” इसके बाद वह बताते हैं कि हां-हां मैंने बीजेपी को वोट दिया है।
एग्ज़िट पोल आंशिक रूप से विश्वसनीय
एग्ज़िट पोल पर लोगों का भरोसा अक्सर उसी कन्फर्मेशन से होता है जिससे ज्योतिष सहमत होता है। हमारी मर्ज़ी का परिणाम अगर दिखाएं तो भरोसा है वरना गलत है। यह प्रवत्ति तो हर राजनीतिक पार्टी को कई बार राजनीतिक मजबूरियों से भी रखनी पड़ती है मगर यथार्थ यह है कि एग्ज़िट पोल पर केवल उसी स्थिति में आंशिक रूप से विश्वास किया जा सकता है, जब उसे लेने की प्रक्रिया में कोई तुक हो।
अतः अपने यहां तो इसे रहने ही देना चाहिए। हम तो आज तक नोटबंदी के फायदे और नोटों की चिप ढूंढ़ रहे हैं। वह मिल जाए फिर एग्ज़िट पोल पर भी ध्यान दे लेंगे।