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सरकार पूंजीपतियों के लिए काम करने लगे तो कहां जाएं गरीब किसान?

किसाम मार्च

किसाम मार्च

साथियों, लोकसभा चुनाव चल रहा है। वैसे हमने इस बीच विधानसभाओं के चुनाव देखे हैं। अब तो टीवी पर चुनाव से सम्बंधित खबरें सिर्फ एक मनोरंजन सामग्री बनकर रह गए हैं, जहां व्यापार से लेकर पूंजीवाद की दलाली की जा रही है।

इस चुनाव के दो पहलू हैं, ‘प्रजातंत्र’ के सबसे महत्वपूर्ण महोत्सव के रूप में, जो हमारे देश में स्वतंत्रता के समय से लगातार हो रहा है। दूसरा, यही कि यह चुनाव पहले से अलग है। यह चुनाव फासीवादी सरकार के साए में हो रहा है।

पूंजीवाद का ही एक रूप है फासीवाद

फासीवाद का मतलब समझना होगा, फासीवाद भी पूंजीवाद का ही एक रूप है, जैसे क्रोनी कैपिटलिज़्म, स्टेट कैपिटलिज़्म और एकाधिकार पूंजीवाद, आदि लेकिन फासीवाद पूंजीवाद का बेहद सड़ांध और हिंसात्मक रूप है।

इसका उद्भव और विकास इटली से होकर जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में हुआ था, जिसका नतीजा द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में दिखा और करोड़ों लोगों की जान गई और अकूत संसाधन का विनाश हुआ।

फोटो साभार: Getty Images

आज वही फासीवाद भारत में कुछ भिन्न रूप में अवतरित हुआ है, जो 1975 की इमरजेंसी से मिलता-जुलता है मगर गुणात्मक रूप से भिन्न है। आज हर सरकारी तंत्र और प्रजातंत्र का हर स्तम्भ फासीवाद का गुलाम हो चुका है। साथ ही साथ इस फासीवाद को जनता के एक हिस्से का समर्थन भी प्राप्त करता है, पैसे और सत्ता के लोभ में और प्रतिक्रियावादी विचारधारा के आधार पर।

आखिर पूंजीवाद को क्या फायदा है फासीवाद लादने से, जनता पर तानाशाही थोपने की, जवाब है मुनाफा! यह लूट बिना जनता की एकता को तोड़े हुए, डर का माहौल पैदा किए हुए और सरकारी तंत्रों का उपयोग किए संभव नहीं है।

आदिवासियों की ज़मीनें पूंजीपतियों के नाम

सारे आदिवासियों की ज़मीन सरकार द्वारा हड़पी जा रही हैं और बड़े पूंजीपतियों को कौड़ी के भाव बेचे जा रहे हैं। बैंकों को सीधे-सीधे लूटा जा रहा है और खुलासा होने पर उन्हें विदेशों में भगाया जा रहा है। रोज़मर्रा के उत्पादों को ज़बरदस्ती अधिक दामों पर बेचा जा रहा है, पूर्ति को ज़बरदस्ती कम कर अत्यधिक दामों पर बेचा जा रहा है।

मज़दूरों और किसानों पर अधिक कर मगर बड़े पूंजीपतियों के अरबों-खरबों का कर और ऋण माफ किया जा रहा है। सार्वजानिक क्षेत्रों को कुछ खास पूंजीपतियों को बेचा जा रहा है।

नोटबंदी और जीएसटी यानि पूंजी और मुनाफे का खेल

नोटबंदी, जीएसटी और एफडीआई हमारे लिए नहीं बल्कि पूंजी और उसके मुनाफे के लिए किया गया है। काँग्रेस की ही नीतियों को भाजपा बड़े स्तर पर चला रही है। सारा मीडिया भाजपा के प्रचार में लगा है क्योंकि मीडिया भी तो बड़े पूंजीपतियों की ही चाकर है।

राजनेताओं द्वारा मतदाताओं को लुभाने की कोशिश

साथियों, आपने सुना ही होगा, ऐसी खबरें थीं कि ईवीएम मशीन (वोटिंग मशीन) में भी हेराफेरी है, यानि कुछ प्रतिशत वोट भाजपा को ही जाएगा, भले ही आप किसी और को वोट दें। दूसरी खबर यह है कि भाजपा विरोधी खेमों के लाखों, करोड़ों वोटर कार्ड भी रद्द कर दिए गए हैं।

फोटो साभार: Getty Images

वैसे हम यह भी जानते हैं कि चुनाव के पहले दिन ये राजनीतिक दल मतदाताओं को फंसाने के लिए उन्हें रुपए और शराब भी देते हैं। क्या ऐसे माहौल में एक निष्पक्ष चुनाव संभव है? यदि इन सबके बावजूद चुनाव निष्पक्ष हो तो आप किसे वोट देंगे? काँग्रेस या भाजपा को या उनके साथियों को? यह सारी पार्टियां मज़दूर और शोषित वर्ग के लिए नहीं, बल्कि पूंजीवाद के ही लिए काम करती हैं।

हसीन सपनों के साथ खत्म हो जाता है चुनाव

साथियों, समय कठिन है, चुनाव द्वारा हम इस फासीवाद को हरा नहीं सकते। चुनाव एक नाटक सा प्रतीत होता है और बहुत सारे लुभावने नारों के साथ और हसीन सपनों के साथ खत्म होता है और हमारा शोषण  जारी रहता है। स्थितियां कठिन से कठिनतम होती जा रही हैं, सामाजिक हिंसा, बलात्कार, दंगा, अपराध और भ्रष्टाचार अपनी चरमसीमा पर है।

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बढ़ता जीडीपी बड़े पूंजीपतियों की जेब में जा रहा है। हमारी गरीबी बढ़ती जा रही है, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और दलितों के साथ-साथ मज़दूर वर्ग और गरीब किसानों पर भी अत्याचार बढ़ रहे हैं। ज़िंदगी मौत की तरफ खिंचती जा रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं तो मध्यमवर्गीय परिवारों से भी दूर हो रहे हैं, ऐसे में हम क्या करें?

क्रांति के अलावा कोई रास्ता नहीं

क्रांति के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और साथियों ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाया था और अंग्रेज़ों को हराकर समाजवादी समाज के निर्माण की बात की थी। वे अंग्रेज़ पूंजीपतियों को हटाकर भारतीय पूंजीपतियों को सत्ता में नहीं लाना चाहते थे, उनका लक्ष्य मज़दूर वर्ग की सत्ता स्थापित करना था। यह कार्यभार अभी भी बाकि है।

साथियों, आओ मिलें, समझें और एक होकर संघर्ष करें। पूंजीवाद को दफन करना ही होगा, एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहां बेरोज़गारी शून्य हो, सबको समान शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की सुविधा मिले, यानि समाजवाद की स्थापना करें। हमें यह भी समझना होगा कि सरकार जब पूंजीपतियों के लिए काम करने लगे तो गरीब किसान और मज़दूर आखिर जाएंगे कहां?

ऐसा समाज जहां धर्म, जाति और लिंग के आधार पर मज़दूरों और किसानों में भेदभाव ना हो। ऐसा समाज जहां एक इंसान दूसरे इंसान का शोषण ना कर सके।

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