“भारत के चंद पत्रकरों पर मेरा अपना विश्लेषण और मेरे अपने विचार हैं। मानना है तो वे माने नहीं तो आपके विचार भी ज़िंदाबाद।”
इस अल्फाज़ को एनडीटीवी के एक बड़े संपादक ने उन पत्रकरों के नाम समर्पित किया था जो उनके विचार में सरकार की चाटुकारिता करते हैं। हालांकि इनमें से कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं, जिन्हें आप गोदी मीडिया कहते हैं।
सरकार विरोधी मीडिया को लोग डिज़ाइनर पत्रकार या लुटियंस पत्रकार के नाम से जानते हैं। हालांकि लुटियंस जॉर्नलिस्ट ने भी ईमानदार पत्रकारिता को बहुत नुकसान पहुंचाया है मगर गोदी मीडिया इस मामले में कई कदम आगे निकल गाया है और ऐसे कुछ उदाहरण मैं सबके सामने पेश करना चाहूंगा।
- भारत की एक फेमस न्यूज़ एंकर ने नोटबंदी के बाद जो नए 2000 के नोट आए, उनको लेकर एक झूठी खबर दिखाई कि उनमें चिप लगे हैं और इस झूठी खबर के लिए माफी भी नही मांगी।
- बालाकोट एयर स्ट्राइक पर इन मीडिया हाउस ने कह दिया 250 आतंकी मार गाए। हालांकि ना सरकार ने ऐसा कुछ कहा और ना ही सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसी कोई रिपोर्ट दी फिर गोदी मीडिया को यह रिपोर्ट कहां से मिली?
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सबसे ज़्यादा इस गोदी मीडिया ने निशाने पर लिया है। एक बार की बात है पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की जिसे लेकर केजरीवाल साहब ने एक बधाई वाला वीडियो बनाया। यह भी कहा कि जो लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं, उन लोगों को सबूत दे दीजिए मगर इन गोदी मीडिया वालों ने यह न्यूज़ चलाई कि केजरीवाल साहब को सर्जिकल स्ट्राइक झूठ लगती है इसलिए सबूत मांग रहे हैं यह देशद्रोही लोग।
- एक ऑनलाइन मीडिया हाउस ने सत्ताधारी दल के प्रमुख के बेटे की कंपनी पर जो कि 50,000 से शुरू होकर 3 साल में 80 करोड़ की हो गई, खबर चलाई। आलम यह हुआ कि उनके पोर्ट पर मानहानि का मुकदमा ठोक दिया गया मगर गोदी मीडिया ने इसका कोई विरोध नही किया।
यह ऐसे उदाहरण हैं जो जो बताते हैं कि मीडिया अपनी ज़िम्मेदारियों का सही तरीके से पालन नहीं कर रहा है। कई सरकार के दबाव में काम कर रहा है तो किसी को सरकार के खिलाफ रिपोर्टिंग करने पर निशाना बनाया जा रहा है।
ऐसे में यह बेहद ज़रूरी है कि बदलते वक्त के साथ मीडिया की कार्यशैली में ना सिर्फ बदलाव आए बल्कि राजनेताओं के दबाव में भी इन्हें काम ना करना पड़े। इसके लिए हमें और आपको भी अपनी आंखें खुली रखनी पड़ेगी।