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“नीतीश कुमार के खिलाफ जब मेरी खबर प्रकाशित नहीं होने दी गई”

नीतीश कुमार

नीतीश कुमार

मैंने एक स्टोरी की थी जिसका वास्ता बिहार के दलितों से था। नीतीश कुमार की सरकार ने SC-ST लिस्ट में बदलाव किया और तांती-ततवा जाति जो कि ओबीसी लिस्ट में आज भी सूचीबद्ध हैं, उन्हें पान स्वासी जाति के नाम पर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया।

उक्त आदेश के संदर्भ में पटना हाई कोर्ट में केस भी जाता है परंतु सरकारी तंत्र के दबाव में पटना हाई कोर्ट भी सरकार के आदेश को सही ठहराती है।

आरटीआई के माध्यम से हैरान करने वाले खुलासे हुए

जब मैं खोजी पत्रकारिता करते हुए इस मुद्दे पर आरटीआई के माध्यम से भारत सरकार और बिहार सरकार से जानकारी मांगता हूं, तो सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने साफ साफ-साफ कह दिया कि ताति-ततवा जाति बिहार राज्य के लिए ओबीसी की सूची में सूचीबद्ध हैं।

आरटीआई के माध्यम से यह भी जानकारी मिली कि बिहार सरकार ने जो उक्त जाति को पान सवासी जाति के नाम से अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने का आदेश दिया है, वह संवैधानिक प्रावधानों और नियमों के अनुसार सही नहीं है। अतः राज्य सरकार से निवेदन किया जाता है कि वह आदेश को वापस ले।

आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा आरटीआई के माध्यम से दी गई जानकारी ब्रेकिंग न्यूज़ थी। खासकर बिहार की राजनीति के लिए लेकिन बिहार के सभी प्रमुख अखबारों ने इस खबर को छापने से इंकार कर दिया। मैंने कुछ अखबार के संपादकों से इस खबर के विषय में बात की लेकिन सभी ने प्रकाशित करने से मना कर दिया।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

यदि यह खबर छपती तो निश्चित तौर पर राजनीति और सामाजिक रूप से बिहार को प्रभावित करती और दलितों के हक और अधिकार पर जो नीतीश सरकार द्वारा प्रहार किया गया, उस पर कुछ हद तक रोक लगती और डबल इंजन की सरकार की पोल खुलती।

खैर, ऐसा नहीं हुआ। इन सभी बातों को मद्देनज़र रखते हुए मैं कह सकता हूं कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया जिस तरीके से सत्ताधारी और प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव में काम कर रहा है, वह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

खबरों को दबाने की पुरानी परंपरा रही है

खास करके दलितों, पिछड़ों, किसान और मज़दूरों के संबंध में जो खबरें लिखी जाती हैं और उनमें यदि किसी व्यक्ति विशेष अर्थात प्रभावशाली व्यक्ति का नाम आता है, तो अखबार वाले सीधे ही यह कहते हैं कि यह खबर उक्त व्यक्ति या नेता के खिलाफ जाएगा जो कि सही नहीं है।

जबकि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता का यह धर्म होता है कि वह खिलाफत और वकालत को साइड में रखते हुए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता धर्म का पालन करे और और इसी मूल मंत्र को ध्यान में रखकर खबर को छापे।

हमारे देश में प्रेस की आज़ादी कटघरे में है और वह उद्योगपतियों, राजनीतिक घरानों तथा प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव में काम कर रही है। यह भारत के स्वतंत्र और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अत्यंत ही दुखद खबर है।

फिर भी सोशल मीडिया इन सभी मामलों में अच्छा काम कर रहा है और मेरे ख्याल से मेरे जैसे खोजी पत्रकारों के लिए सोशल मीडिया एक हथियार है। इसी के माध्यम से हम अपनी बात जनता तक पहुंचाते हैं।

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