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“सरकार की नज़रें हम बेरोज़गार युवकों पर कब पड़ेगी?”

बेरोज़गारी

बेरोज़गारी

ब्रह्माण्ड के असंख्य तारे, ग्रह, चंद्रमा, सूर्य और समाज में रह रहे लोग आपके बेरोज़गार होने के साक्षी हैं। आप खतरनाक बेरोज़गार हैं, इसकी जानकारी आपको आपके रिश्तेदारों से हो जाती है।

सामाजिक परिवेश में रहने और जीवन निर्वाह करने के लिए आपको इस बेरोज़गारी से निज़ात पाने की ज़रूरत है। आपको अगर इसके लिए कोई मार्ग नहीं सूझ रहा है, तो आखिर कैसे आप इस दानव से मुक्ति पाएंगे, इस सवाल का जवाब आपको किसी पुस्तक या किसी यूट्यूूब वीडियो  में नहीं मिलेगा।

आइए सबसे पहले यह समझने की कोशिश करते हैं कि बेरोज़गारी क्या है?

जब देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है मगर काम करने के लिए राज़ी होते हुए भी अनेक लोगों को अच्छी मज़दूरी पर कार्य नहीं मिलता, तो उस विशेष अवस्था को ‘बेरोजगारी’ की संज्ञा दी जाती है।

बेरोज़गारी के आंकड़े।

समझने वाली बात यह है कि एक बेरोज़गार व्यक्ति इस बात को किस तरीके से समझे? या वो यह मान ले कि हमारी बेरोज़गारी की गुनहगार सरकार है या फिर यह मान ले कि वह खुद इस बेरोज़गारी के लिए उत्तरदायी है। इस दुविधा में उलझ कर एक बेरोज़गार व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ समाज को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पाता। हमारी सरकारी  तंत्र बेरोज़गारी के लिए उतनी ही ज़िम्मेदार है जितने हम और आप।

राजीनीति की खाट पर, बन्धा पड़ा विकास

बेरोज़गारी खेल रही, स्मार्ट फोन पर ताश

ज़ख्म का इलाज ढूंढ़ते ढूंढ़ते आप उस घाव को और नासूर बना देते हैं और इस समय आपको आपकी 10 बाय 10 की कोठरी ही साथ देती है, जो बचपन से आपके साथ थी और आगे पता नहीं कब तक आपके साथ आपकी साथी बन कर रहेगी।

बेरोज़गारी आज हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही है और हमारे तथाकथित राजनेता देश के नवयुवकों को पकोड़ा तलने की सलाह देते हुए नज़र आते हैं।

झारखंड के मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य में सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं। आप अपने लिए खुद का बिज़नेस शुरू कर लें और हमारे प्रधानमत्री का कहना है कि नौकरी करें नहीं, बल्कि नौकरियां दें। इन सभी बातों से कहीं ना कहीं सरकार की विफलता साफ नज़र आती है।

कड़ी मेहनत करने वाले नवयुवकों को जब यह सब सुनना पड़ता है, तो उनके दिल में सरकार की नकारात्मक छवि घर कर जाती है, जो विचारणीय विषय है।

आज सरकार बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से नज़रें चुराती दिख रही है। मैं पूछता हूं कि सरकार की नज़रें हम बेरोज़गार युवकों पर कब पड़ेगी? क्या उन्हें हम लोगों की दर्द और पीड़ा नहीं दिखाई देती?

सरकारी तंत्र की विफलता की वजह से कुछ बेरोज़गार युवक आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं और कुछ अपने सपनों को ताख पर रख  कर कहीं छोटे मोटे काम पर लग जाते है। हर साल नई सरकार अपने वादों में सौगातों कि बात करती है और वे धरातल पर आते-आते दम तोड़ देती है।

बेरोज़गारी की समस्या ज्यों का त्यों बनी रहती है। वैसे इस बेरोज़गारी की कहानी नई नहीं है। यह हमारे समाज में पहले भी विद्यमान थी, आज भी है और आने वाले भविष्य में भी यह आपके और हमारे साथ रहेगी।

आज अगर देश में बेरोज़गारी है, तो उसका सारा का सारा श्रेय सरकार को जाती है। उन्हें अपनी कार्यप्रणाली पर विचार करने की ज़रूरत है, नवयुवकों की बेरोज़गारी देश को आगे नहीं ले जा सकती है।

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