देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जो किसी भी राजनीतिक पार्टी का समर्थन नहीं करते। उन्हें लगता है कि चाहे कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री हो देश वैसे ही चलेगा जैसे चलता आया है। “कुछ नहीं बदलेगा” की सोच इस तरह से हावी हो चुकी है कि लोगों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। चाहे किसी के साथ कितना ही गलत क्यों ना हो, वह चुप रहते हैं, इसलिए वोट भी नहीं करते।
मैं भी कभी वोट नहीं करता था
मैं भी ऐसे ही लोगों में शामिल था और कभी वोट नहीं देता था। यह सोचता था कि वोटिंग वाले दिन घर में आराम कर लेते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास पोस्ट या ब्लॉग के ज़रिये निकाल लेता था लेकिन इस बार मैंने फैसला किया कि मैं भी वोट दूंगा। इसकी वजह इन दो कहानियों से साफ हो जाएगी।
मेरी कोशिश से कोई फर्क ना पड़े मगर…
पैगंबर हज़रत इब्राहिम शैतान की पूजा करने के विरोध में जब अपने ही घर वालों के खिलाफ खड़े हुए तो उनके घरवालों द्वारा उन्हें ज़िंदा जला डालने की सज़ा दी। उन्हें लकड़ियों से बांधकर आग लगा दी गई लेकिन कुछ लोग जानते थे कि इब्राहिम सही हैं और उनके घर वाले गलत फिर भी उन लोगों ने भी उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की।
वह चुप खड़े रहे ताकि उन्हें नुकसान ना पहुंचाया जाए लेकिन इब्राहिम को आग की लपटों में घिरा हुआ देख एक परिंदा अपनी चोंच में पानी भर कर लाता और आग पर डालता। वह बार-बार यही करता।
कई बार तो उसके पंख भी जल गए मगर उसने पानी डालना बंद नहीं किया। वही कुछ फरिश्ते उस परिंदे को यह करते हुए देख रहे थे। उन्होंने परिंदे से पूछा, “तुम यह क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारे इस बूंद भर पानी से आग बुझ जाएगी और इब्राहिम बच जाएंगे?”
परिंदे ने कहा, “शायद आग ना बुझे, इब्राहिम भी ना बचे लेकिन उन्हें बचाने की मैं कोशिश ही ना करूं यह मुझे मंज़ूर नहीं है। हो सकता है एक बूंद पानी से कुछ ना हो, मेरी कोशिश से कोई फर्क ना पड़े मगर मैं उन डरपोक लोगों में शामिल नहीं होना चाहता जिन्होंने पता होते हुए भी सच और सही का साथ नहीं दिया। जब भी इब्राहिम को बचाने वाले लोगों का ज़िक्र होगा तो लोग मुझे भी याद करेंगे।”
अपनी जान की परवाह नहीं?
सीता मैया को रावण से बचाने के लिए जब राम सेतु तैयार हो रहा था तब एक नन्हीं गिलहरी पत्थरों के बीच खाली दरारों में छोटे-छोटे कंकर डाल रही थी। वानर सेना और बड़े-बड़े पत्थरों के बीच अपनी जान की परवाह किए बिना वह ऐसा करती जा रही थी।
श्री राम ने उसे ऐसे करते हुए देखा तो उसे अपने हाथों में उठाकर पूछा, “हे नन्हीं गिलहरी, तुम यहां क्या कर रही हो? क्या तुम्हें नहीं दिखता यहां पुल निर्माण का कार्य किया जा रहा है? तुम किसी के पैरों में दब सकती हो या किसी विशाल पत्थर के नीचे कुचली जा सकती हो। क्या तुम्हें अपनी जान की परवाह नहीं?”
गिलहरी ने उत्तर दिया, “प्रभु श्रीराम, इस सेतु का निर्माण एक दुष्ट व्यक्ति को हराने के लिए किया जा रहा है। इस सेतु में छोटी-छोटी दरारें हैं जिन्हें बड़े-बड़े वानर नहीं देख सकते इसलिए मैं इन दरारों को भरने का काम कर हूं ताकि सेतु किसी भी तरह कमज़ोर ना रहे। पापी की अंत में मेरा यह योगदान छोटा ही सही अपितु आपका साथ देने वालों में मेरा भी नाम सम्मिलित हुआ है।”
सच और साहस के सामने सभी बौने हैं
शैतान कितना ही ताकतवर क्यों ना हो, रावण के दस सिर हो मगर सच और साहस के सामने सभी बौने हैं। इब्राहिम की हिफाज़त अल्लाह कर रहा था लेकिन फिर भी उसने इम्तिहान लिया।
श्रीराम भगवान थे फिर भी उनकी पत्नी को कोई दुष्ट उठा ले गया क्यों? क्योंकि जब किसी का अंत नज़दीक हो तो अल्लाह उसे खुली छूट दे देता है। एक परिंदे और एक गिलहरी ने अपना फर्ज़ निभाया और उनका योगदान महान था।
लोकतंत्र में मेरा योगदान
मैंने भी अपना एक छोटा सा योगदान दिया है लोकतंत्र बचाने के लिए। शायद इस छोटी बूंद या कंकर से कोई फर्क ना पड़े, भले ही उम्मीद धुंधली है लेकिन करोड़ों गलत एक साथ ही सही मैं सच के साथ ही रहूंगा।
इंसानियत बचाने के लिए यह योगदान कुछ भी नहीं मगर जब कभी बात सच और सही का साथ देने की होगी, मेरा नाम भी उसमें शामिल होगा। बेशक कोई याद करे ना करे मेरे दिल को पता होगा कि मैंने कुछ सही किया था।
गलत होते हुए देखना बुज़दिली है
दिन-रात हो रहे बलात्कारों के मामले से मैं अपनी आंखें नहीं मूंद सकता। कोई भीड़ अपने हाथों में नंगी तलवारें लिए किसी निहत्थे की जान ले ले, मैं यह होते हुए नहीं देख सकता। फिल्म अग्निपथ में कांचा चीना लोगों को नशेड़ी बना देता है। जिसके बाद गाँव वालों के लिए कांचा मसीहा और मास्टर जी दुश्मन बन जाते हैं लेकिन कुछ साल बाद गाँव वाले पछताते हैं।
धर्म और देशभक्ति का नशा
आज नशा बांटा जा रहा है। धर्म और देशभक्ति वही नशा है जिसे देश के युवाओं की नसों में घोला जा रहा है। युवाओं को भी अभी बड़ा मज़ा आ रहा है कि उन्हें नशे की ताकत महसूस हो रही है। उस ताकत को वह गुस्से और बदले की भावना में बाहर निकल रहे हैं। मैं नहीं चाहता कुछ साल बाद जब सब बर्बाद हो जाए तो पछतायें।
रक्षा करने के बदले किसी सैनिक ने शोर मचाया है?
हमारे माँ-बाप दिन रात हमारी परवाह करते हैं। हमारे पिताजी एक सिपाही की तरह हमारी रक्षा करते हैं। बिना ढिंढोरा पीटे अपनी हर ज़िम्मेदारी चुप-चाप करते हैं। कभी उन्हें कहते सुना है कि वह चौकीदार हैं या कभी उन्हें ढोल पीटते सुना है।
कभी किसी सैनिक ने आपके दरवाज़े पर आकर शोर मचाया है कि वह आपकी रक्षा करता है? आपको ताने दिए हैं या आपकी रक्षा करने के बदले कुछ मांगा है? कभी आपको बताया है कि उसके परिवार वाले किस-किस तरह की मुसीबत उठाते हैं? कभी उसने बताया कि उसके बच्चों के पढ़ने के लिए उसके गांव में स्कूल तक नहीं हैं?
अब यह कैसे देशभक्त हैं जो दिन-रात यह राग अलाप रहे हैं कि हमारे सैनिकों के बदले इन्हें वोट दिए जाए। जवानों की बहादुरी आपके नाम और और उनकी मौतें किसी को याद नहीं। जिसकी वजह आपका तंत्र फेल होना था।