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बिहार के टॉपर्स को मीडिया के सवालों से क्यों गुज़रना पड़ता है?

स्टूडेंट्स

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जी, मैं बिहारी हूं और मुझे बिहारी होने पर काफी गर्व है। बिहारी कहीं भी जाकर कुछ बोलता है, तो वह सिर्फ अपना ही प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि वह पूरे बिहारी समाज का प्रतिनिधित्व करता है। बिहारी पर हमेशा कुछ ना कुछ आरोप लगते रहते हैं। जैसे- बिहारी को बोलने का तरीका, उठने-बैठने, पोशाक पहने और भी बहुत सारे तरीके बिहारी को नहीं आते हैं।

यह सभी जानते हैं कि देश को सबसे ज़्यादा आईएएस और आईपीएस बिहार ही देता है फिर भी बिहार और यहां के लोगों को हीन भावना से देखा जाता है।

शिक्षा जगत के कारनामों ने बिहार को बदनाम किया

आइए एक उदाहरण के ज़रिये इसे समझते हैं। बिहार में बीते कुछ वर्षों में शिक्षा जगत में कुछ ऐसे कारनामे हुए हैं, जिसने बिहार को लोगों ने बदनाम किया है। रूबी राय मामले के अलावा और भी बहुत सारे किस्से हैं, जिसमें बिहार बोर्ड का कारनामा पूरे जगत ने देखा है।

फोटो साभार: Twitter

बीते वर्ष नीट टॉपर शिवहर तरियानी की कल्पना जो पूरे इंडिया में शीर्ष स्थान पर रही और उसने पढ़ाई दिल्ली के नामी संस्थान से की तो लोगों और मीडिया ने इसे भी तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश की।

हिंदी में 100 में से 100 अंक?

सीबीएसई टॉपर 2018 की मेघना श्रीवास्तव 500 में 499 नंबर लाती है और चौंकाने वाली बात यह है कि उसे हिंदी में 100 नंबर हैं। ठीक उसी प्रकार सीबीएसई 12वीं 2019 की टॉपर हंसिका शुक्ला करिश्मा अरोड़ा को भी 499 अंक प्राप्त हैं और यहां भी चौंकाने वाली बात यही है कि इन दोनों को हिंदी में 100 अंक प्राप्त हैं।

ऐसे में यह भी माना जा सकता है कि सीबीएसई बोर्ड का प्रश्न पत्र काफी आसान है या फिर कॉपी जांचने में कोई भूल हुई है क्योंकि हिंदी एक ऐसा विषय है जिसमें किसी का भी निपुण होना काफी असंभव सी बात है।

यह हमारे दिनकर या कालिदास से भी पूछा जाए कि क्या हिंदी में 100 नंबर आ सकते हैं? तो उनका भी जवाब ना में ही होगा।

क्यों बिहार के टॉपर्स को मीडिया परखने का काम करता है?

बिहार के टॉपर्स को मीडिया के सवालों से गुज़र कर टॉप करना पड़ता है। सीबीएसई परीक्षा में बेहतरीन नंबर लाना तो सही है मगर हिंदी में 100 में से 100 अंक लाना यह तो खैर मास्टर ही जाने।

इस बार हिंदी के प्रश्न पत्र में 4 काव्यांश के काव्य सौंदर्य पूछे गए थे। इन चारों कवियों की तस्वीर पर फिर से हार चढ़ा देना चाहिए और उनकी रचनाओं को सिलेबस से बाहर कर देना चाहिए कि भैया आपकी रचना की अंतिम समीक्षा आ चुकी है।

ऐसे में हमारी मीडिया को चाहिए कि ना सिर्फ अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में बिहारी को बदनाम करें बल्कि कुछ ऐसे भी तथ्य और सत्य को दिखाएं जो सही में समाज को सुधारने में कारक है।

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