बात 2016 की है, जब 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के एक आरोपी को जुविनाइल होने की वजह से सिर्फ 3 साल की सज़ा हो पाई थी। वह रिहा हुआ तो दिल्ली सरकार ने कानून के मुताबिक उसे कुछ रुपए और एक सिलाई मशीन दी।
उस वक्त कुछ नेता और मीडिया के कुछ लोग यह कहने लगे कि केजरीवाल को शर्म आनी चाहिए कि वह एक बलात्कारी को पैसे दे रहे हैं। केजरीवाल को काफी भला-बुरा कहा गया।
अगर उन लोगों को सच में इस बात की परवाह होती तो वे उनपर सवाल करते जिन्होंने यह कानून बनाया था। लोग उल्टा उन्हें ही सुनाने लगे जो इस कानून का पालन करने के लिए बाध्य थे।
यह सिर्फ एक उदाहरण है गोदी मीडिया का। इसके और भी बहुत से उदाहरण हैं। गोदी मीडिया ने ऐसे निराधार आरोप ना सिर्फ केजरीवाल पर, बल्कि कई नेताओं पर लगाए हैं। ‘जनता का रिपोर्टर’ नाम से एक वेबसाइट के आगमन दिवस पर अरविंद केजरीवाल को यह कहना पड़ा था कि उन्हें मीडिया के कुछ लोगों ने ज़लील किया है।
एक बार तो इन पत्रकारों ने ऐसी हद कर दी जिसके लिए कोई इन्हें माफ नहीं कर पाए। दरअसल, कठुआ में एक आठ साल की बच्ची का बलात्कार हुआ, जिसपर सारे देश का गुस्सा फूट पड़ा और यहां तक कि जगह-जगह प्रदर्शन भी होने लगे। कहने को तो गोदी मीडिया भी बच्ची के परिवार के साथ खड़ी हुई मगर दु:ख की बात यह है कि अपनी राजनीति के लिए उन्होंने इस खबर को असम के एक खबर से जोड़ दिया।
उन्होंने खबर चलाई कि असम में एक लड़की का बलात्कार हुआ, जहां आरोपी एक घुसपैठिया था। इस खबर के साथ उन्होंने सवाल पूछा, “अब कहां हैं वे लोग जो कठुआ में हुए बलात्कार पर आवाज़ उठा रहे थे? अब वे क्यों खामोश हैं? क्या इसलिए क्योंकि यह बलात्कारी बहुसंख्यक समुदाय का नहीं है?”
क्या कठुआ के आरोपियों से ध्यान हटाने के लिए कोई और रास्ता नहीं मिला गोदी मीडिया वालों को? क्या बलात्कार का विरोध करने वाले धर्म देख कर विरोध करेंगे? इन गोदी मीडिया वालों के कांड बहुत बड़े हैं, जिनका ज़िक्र ज़रूर होना चाहिए। आज के दौर में गोदी मीडिया की हर गलत खबर का विरोध होना चाहिए।