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राजस्थान में काँग्रेस की हार का ठीकरा ब्यूरोक्रेसी पर क्यों फोड़ा जा रहा है?

राहुल गाँधी और अशोक गहलोत

राहुल गाँधी और अशोक गहलोत

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की शानदार जीत के बाद अब सरकार की ताज़पोशी की तैयारियां चल रही हैं। दूसरी तरफ विपक्ष सहित तमाम दल हार का मंथन करने मे लगे हुए हैं। कोई  इस्तीफा देने की बात कर रहा है तो कोई  हार का ठीकरा सरकारी कर्मचारियों पर फोड़ रहा है।

जी हां, राजस्थान में कुछ ऐसा ही होता नज़र आ रहा है। चुनाव हारने पर कई मंत्रियों ने इसका ठीकरा ब्यूरोक्रेसी पर फोड़ दिया है। एक व्हाट्सएप पोस्ट तेज़ी से शेयर हो रहा है, जिसमें डूंगरपुर में हार की मंथन बैठक में सरकारी कर्मचारियों को निशाने में लिया जा रहा है।

राहुल गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

यह बेहद ही शर्मनाक है क्योंकि हम अपना प्रदर्शन अगर सही से नहीं कर पाए हैं तो इसका ठीकरा सरकारी कर्मचारियों पर क्यों फोड़ें? खैर, कर्मचारी सरकार का नौकर है, उसे तो सामना करना ही है। ऐसे मौके पर यह भी ज़रूरी है कि काँग्रेस इस हार का दोष कर्मचारियों पर नहीं देकर पार्टी में बैठे बड़े पद के नेताओं के गृह पोलिंग बूथ का आंकलन करके उन पर कार्रवाई करे ताकि नए युवाओं को मौका मिल सके।

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि काँग्रेसी लीडर हमेशा अपने चहेतों और रिश्तेदारों को ही छोटे-मोटे पद देकर संतुष्ट कर लेते हैं। वहीं, भाजपा बूथ स्तर के युवाओं को भी छोटे से छोटे पद से नवाज़ना नहीं छोड़ती जिससे उसे नुकसान नहीं फायदा ही फायदा होता नज़र आता है।

क्षेत्रीय दलों पर एक नज़र

जी हां, राजस्थान के दक्षिण में एक मज़बूत तीसरा विकल्प उभर कर आया और विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करके दो सीट जीत कर विधानसभा पहुंच गया मगर लोकसभा में उसे तीसरे नंबर पर सिमटना पड़ा। तीसरे मोर्चे व क्षेत्रीय दल से भाजपा व काँग्रेस दोनों घबराई हुई थी।

जिस तरीके से विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने प्रदर्शन किया था, वैसा प्रदर्शन लोकसभा में नहीं दिखाई पड़ा। बीटीपी के असफल होने के पीछे की वजह भी युवाओं को नज़रअंदाज़ करना ही है। अगर बीटीपी उभरना चाहती है तो उसे ऐसे युवाओं को  पार्टी में पद देने चाहिए जो शहर के करीब रहते हैं और जिनका राजनीतिक सम्बन्ध शहर से जुड़ा हुआ है।

मेरा मानना है कि राजनीति गाँंवों से नहीं बल्कि शहरों से चलती है। पार्टी को ज़रूरत थी कि शहरों में अपने तमाम कार्यकर्ताओं को जनता के समक्ष भेजती जिससे लोगों के बीच एक बेहत संपर्क कायम होता। सरकारी दफ्तरों में अटके लोगों के काम भी बनते।

ऐसा करने से पांचायती राज में भी पार्टी को बल मिलती। वैसे पंचायती राज से ही अब बीटीपी की शुरुआत होगी। अगर बीटीपी पंचायती राज में अच्छा प्रदर्शन कर पाती है, तभी लोकसभा व विधानसभा मे दोबारा खड़ी हो पाएगी नहीं तो बिखर कर सिमट जाएगी।

बीटीपी की पहली क्लास ही पंचायती राज है। अगर पहली क्लास में अच्छी पकड़ बन गई तो दूसरी और तीसरी क्लास में कोई नहीं पराजित कर सकता है। अपने दम पर प्रधान, ज़िला प्रमुख, विधायक और सांसद बनाने मे सफल हो पाएगी।

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