मोदी तूफान के सामने बिहार में राजद के सभी उम्मीदवार तिनके की भांति उड़ गए। राजद के गठन के बाद यह पहला मौका होगा जब लोकसभा में इस दल का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं रहेगा। इसमें मोदी लहर का प्रकोप तो निश्चित है लेकिन राजद के अंदर की गुटबाज़ी भी एक अहम वजह है। तेजप्रताप, प्रत्याशी चयन के समय से ही नाराज़ चल रहे थे, कुछ जगह तो उन्होंने अपना प्रत्याशी उतारकर तेजस्वी को खासा परेशान किया।
इधर तेजस्वी अपनी मद में चूर थे, अहंकारी तेजस्वी अपने किसी विधायक से सीधे मुंह बात तक नहीं करते हैं। विधायक को “तुम” कहकर संबोधित करते हैं, फिर चाहे उनकी उम्र कितनी भी क्यों ना हो। यह अहंकारी स्वभाव उन्हें निरंतर पतन की ओर ले जा रहा है।
मुझे हैरानी होती है कि रघुवंश प्रसाद यादव जैसे वरिष्ठ सम्मानित नेता अपने सम्मान को गिरवी रखकर इस दल में कर क्या रहे हैं? आज भले वह चुनाव हार जाएं मगर रघुवंश जी और फातमी जैसे नेताओं का अपना ज़बरदस्त वजूद है।
वरिष्ठ नेताओं को ज़लील किया जाता है
कोर्ट द्वारा लालू प्रसाद के अयोग्य होने पर भी इन वरिष्ठ नेताओं को पार्टी की कमान ना देकर इन्हें ज़लील ही तो किया गया है। यादवों के वोट के सहारे राजनीति कर रहे लालू प्रसाद को पार्टी में रघुवंश जी जैसा नेता नहीं दिखा। दिखता कैसे पुत्रमोह में धृतराष्ट्र जो बने बैठे हैं! बीते चुनाव में युवा पीढ़ी और बुद्धिजीवी वर्ग के यादव वोटरों ने इन्हें बता दिया कि सत्ता में घमंड के लिए कोई जगह नहीं है।
पिछड़ों में राजनीतिक रूप से सबसे सजग जाति ने जातिवाद और लालू मोह को त्याग कर बिहार में फिर से एक नया इतिहास लिखा और नरेंद्र मोदी के राष्ट्रवाद विकास को सर्वोपरि माना है। हालांकि अगर लालू प्रसाद जेल से बाहर होते तो स्थिति दूसरी हो सकती थी, क्योंकि उनमें जो करिश्मा है उसका रत्तीभर भी तेजस्वी में नहीं है। भाषण के दौरान ठेठ गंवई भाषा में लोगों को सम्बोधित करना हो या खेत में हेलीकॉप्टर उतारकर चरवाहे को सैर कराने की बात हो, हर रूप में लालू की तो बात ही अलहदा है।
चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए तेजस्वी को कभी संघर्ष नहीं करना पड़ा, इसलिए उनका स्वभाव अख्खड़ है। चुनाव के बाद अब राजद विधायक खुलेआम तेजस्वी के नेतृत्व को नकार रहे हैं और पार्टी टूटने की बात कर रहे हैं। बस थोड़ा सा इंतज़ार करिए क्योंकि राजद के भाग्य का फैसला जल्द होने वाला है।।