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हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ?

मैं कुछ दिनों पहले किसी न्यूज़ पोर्टल पर खबरें पढ़ रहा था तो एकाएक एक तस्वीर में एक सरदारजी क हाथ में ब्रश और काला पेंट देखा जिस से वो माइलस्टोन पर सबसे ऊपर हिंदी में लिखे पर काला रंग लगा के मिटा रहा था तब मुझे ये अटपटा सा लगा अब भाषा को लेकर हम लड़े हम्म क्या बेवकूफी है ये सोच कर मैंने पेज क्लोज कर दिया उनका कहना था हिंदी को सबसे ऊपर और पंजाबी को सबसे निचे हमको नीचा दिखने के लिए लिखा गया है. और कुछ दिनों तक ये सिलसिला चला और (एन.एच.ऐ.आई) ने सारे बोर्ड पुराने तर्ज़ पर सही कर दिए लोकल भाषा सबसे ऊपर फिर हिंदी और फिर अंग्रेजी . कुछ दिन बाद मैंने दक्षिण भारत का वीडियो फेस बुक पर देखा जिसमे एक कपल किसी एयरलाइन्स के टिकट खिड़की के रिसेप्शनिस्ट से लड़ रहे थे “हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है” आपको हिंदी में बात करनी चाहिए रिसेप्शनिस्ट का कहना था हम यहाँ की रीजनल भाषा का प्रयोग करते क्यूंकि यहाँ लोकली लोगों को हिंदी कम आती है और हमारी कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं है पर वो कपल अपने फोन से लाइव वीडियो बनाता रहा और अपनी बातें दोहराता रहा हिंदुस्तान में हिंदी बोलनी जरूरी है ये सब देखकर मेरा इंटरेस्ट जागा और मैंने रिसर्च शुरू की और गूगल बाबा की शरण में जा बैठा फिर मुझे पता चला के बहुत सारी स्टेट्स की रीजनल भाषा के पेज,पोर्टल बने है जो मुझे अचरज में डाल गए क्यूंकि काफी भाषा जैसे साउथ बंगाली पंजाबी भाषा को बचाने के नाम पर हिंदी को दुश्मनो की कतार में खड़ी कर देने की कोशिश सी लग रही थी लेकिन जब मैं उन पेजेस पर गया उनका अध्यन किया तो उनकी बातों में भी दम लगा एक पेज है फेस बुक पर “स्टॉप हिंदी इम्पोसिशन” जिसमे उन्हों ने संविधान के प्रीएम्ब्ले की तस्वीर लगा कर इक्विलिटी वाली लाइन को मार्क किया है, उस पेज के कमेंट सेक्शन में मुझे दोनों तरफ के लोग मिले जो कह रहे थे के हिंदुस्तान में रहना है तो हिंदी बोलनी पड़ेगी और दूसरी तरफ एक बंगाली बाबू का कहना था बंगाल में बंगाली या इंग्लिश ही जरूरी होनी चाहिए जबकि मैं दोनों विचारो से असहमत हूँ क्यूंकि भाषा हमारी कम्युनिकेशन का माध्यम है नाकी नफरत फ़ैलाने का . हर भाषा को उसकी स्टेट में बनता अधिकार मिलना चाहिए और हर स्टेट में हिंदी को उसका अधिकार हर माइलस्टोन या बोर्ड पर सबसे ऊपर लोकल भाषा फिर हिंदी और फिर अंग्रेजी जिस से हर कोई पढ़ सके और सरकारी संस्थानों में स्थानीय भाषा इसलिए के वहां के स्थानीय निवासियों को सहूलत हो रोजमर्रा के कामों में यह छोटी छोटी बातों पर सरकार का विशेष ध्यान होना चाहिए जोकि असामाजिक तत्त्व इसका गलत फ़ायदा न उठा सके क्यूंकि भाषा एक ऐसी चीज़ है जिसको लोग स्वाभिमान से जोड़कर इमोशनल हो जाते हैं अगर इस पर विस्तार से अध्यन किया जाए तो पता चलता है रीजनल भाषा की चिंगारी कब ज्वालामुखी में बदल जाए पता ही नहीं चलता अब ताज़ा उदहारण हमारे पडोसी देश पाकिस्तान का ही ले लें हम एक साथ ही आज़ाद हुए लेकिन वहां की लीडरशिप मौलवी मौलाना टाइप जनरल्स के हाथों में आ गयी और उनको लगा हम देश को एक भाषा के सूत्र में बाँध लेंगे और वहां उर्दू नाफ़िज़ कर दी गयी और पश्तून सिंधीयो पंजाबियो बंगालियों को कहा गया आज से आप की भाषा उर्दू जबकि वो भाषा मुहाजिर हिंदुस्तान से लेकर गए थे और सबसे जल्दी रंग बदला पंजाबियो ने और एलान कर दिया आज से हमारी मातृभाषा उर्दू हो गयी उसका इनाम भी मिला उनको हर बड़े अहुदे पर चाहे वो फ़ौज हो या सरकारी अफसरशाही तंत्र उसपर वो काबिज़ हो गए और पश्तून बंगाली पिछड़ते गए क्यूंकि वो अपनी माँ बोली बदलन के पक्षधर नहीं थे इसी जद्दोजेहद के चक्कर में पाकिस्तानी फ़ौज ने कई लाख बंगाली मार दिया औरतो का रेप हुआ बाकायदा उनके जनरल का बयान कोट किया जाता रहा हम “इन बंगालियों की नस्ल बदल देंगे” लेकिन इतिहास गवाह है फिर जो हुआ पाकिस्तानी अपने ही देश के दो टुकड़े करवा के बैठ गए और आज भी पश्तून बलोच और सिंध अपना अपना अलग देश मांग रहे हैं और इसके बरअक्स हमारी लीडरशिप ने सभी भाषाओ को उनका उचित स्थान दिया हिंदी ख़ुदबख़ुद फैलती गयी भारत में जिस तरह अंग्रेजी दुनिया में फैली इन बातों से हमको यही सबक मिलता है के भाषा किसी जबर से नहीं फैलती ना ही किसी भाषा से नफरत उस भाषा को मिटा सकती है

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