यह कविता एक आवाज़ है, उस महिला की जो पानी के लिए मीलों पैदल चलती है। उस परिवार की, जो हर दिन आसमान से पानी की गुहार लगाते हैं। उस गाँव की, जिसके आंगन में कभी पानी की फुहार लगती थी। देश की पानी की समस्या से सबसे ज़्यादा गरीब ही पीड़ित हैं। हर समस्या की मार सबसे पहले उन्हीं पर पड़ती है, चाहे उसकी वजह कोई और ही हो।
झरने सारे सूख गए,
तालाब वंचित हो गए तुझसे,
गाँव का इकलौता कुआं भी,
खाली हो गया तुझ बिन,
जल क्यों रूठा है तू हमसे।
अमीरों के घर तू बरसता रहता,
जिनके लिए तू सिर्फ मामूली होता,
हमारे लिए तो तू मोतियों से कम नहीं,
तेरी एक बूंद बस दिख जाए हमें कही,
फिर भी, हे जल क्यों रूठा है तू हमसे
महिलाएं और बच्चे ढूंढते रहते तुझे,
दिन बीत जाता सिर्फ तुझे पाने में,
फसलें राह तकती तेरी हर दिन,
भोजन भी ना बन पाता तेरे बिन,
क्या गलती हो गई हम गरीबों से,
जल क्यों रूठा है तू हमसे।
जिनको तू मिला है
वे हैं किस्मत के धनी,
बस वे करे तेरा उपयोग सही,
क्योंकि बड़ी मुश्किल से मिलता है तेरा पता सही।
अब आशा है आसमान से तू बरसेगा,
अब आशा है बराबरी से तू सबको मिलेगा,
जीवन का सार है तुझमें ही,
है जल क्यों रूठा है तू हमसे ही।