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“नीतीश जी, माँ-बाप की सेवा ना करने पर जेल भेजने का आपका फैसला बेतुका है”

नीतीश कुमार

नीतीश कुमार

बिहार सरकार ने अभी हाल ही में यह फैसला लिया है कि जो बच्चे अपने माँ-बाप की सेवा नहीं करेंगे, उन्हें जेल हो सकती है। ऐसे ही मिलते-जुलते और संस्कारी फैसले देश के कुछ और राज्यों में पहले लिए जा चुके हैं मगर हमें बिना किसी भावनात्मक लाग-लपेट के, एक सवाल खुद से और अपने समाज से पूछना चाहिए कि क्या यह फैसला सही है?

क्या यह सही होगा कि हम किसी बच्चे को डर के साये में रखकर माँ-बाप की इज्ज़त करना सिखाएं? ऐसे में वह महान श्रवण कुमार वाली भावना कहां से लाएंगे? अगर कानून का पालन कठोरता से हो, तो यह बहुत हद तक संभव है कि बिना मन की सेवा बोझ जैसी लगेगी।

परिवार बढ़ाने से पहले आर्थिक स्थिति को जांच-परख लिया जाए

क्या हम इस फैसले से ज़्यादा इस बात पर ज़ोर नहीं दे सकते हैं कि कैसे हमारे समाज में लोग आत्मनिर्भरता से जी सके? क्या यह ज़रूरी नहीं कि परिवार बढ़ाने से पहले अपनी आर्थिक स्थिति की पड़ताल कर लिया जाए? क्या हम ऐसे समाज का ताना बाना रच सकते हैं, जहां माँ-बाप जीते-जागते पुत्र-पुत्री मोह में ना फंसे व अपनी आर्थिक आधिपत्य आखिरी सांस तक कायम रखें?

नीतीश कुमार। फोटो साभार: Getty Images

हम क्यों वैसे माँ-बाप को महानता की उपाधि दे देते हैं, जो अपने बच्चों की तथाकथित और तत्कालीन खुशी के लिए अपना फिक्स्ड डिपॉज़िट तक तुड़वा देते हैं। हम क्यों वैसे माँ-बाप से सहानुभूति रखें जो अपनी ज़िंदगी की सारी गाढ़ी कमाई महज़ समाज के ढकोसले को पूर्ण करने के लिए दहेज और ना जाने कितने गैर-ज़रूरी कर्मकांडों में बर्बाद कर देते हैं।

हमें उस पिता की पूजा बंद करनी होगी जो खुद टूटी हुई चप्पल पहनकर अपने बेटे को जूते पहनाता है और उस माँ से भी सवाल करने की ज़रूरत है, जो आधे लीटर दूध में सारे परिवार का पेट भर कर खुद पानी पीकर सो जाती है।

ऐसे फैसले की उम्मीद बिहार से ही की जा सकती है!

माफ कीजिएगा नीतीश जी मगर ऐसी ही कहानियों को महिमामंडित करने से उपहार के तौर पर गरीबी हमारे आंगन में आती है। मेरा कहना है कि बच्चे पैदा करना तो माँ-बाप की इच्छा पर निर्भर होता है फिर ऐसे में यह माँ-बाप का फर्ज़ बनता है कि वे नए जीवन को अस्तित्व में लाने से पहले खुद और नवजात के बेहतर भविष्य की किताब लिख डालें। मेरे लिए आपका यह फैसला बेतुका ही है।

यह सिर्फ राज्य की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि यदि माँ-बाप और बच्चों में सामंजस्य की कमी है तो सरकार यह सुनिश्चित करे कि उनके रहने-खाने, दवा‌ और दुआ की ठीक-ठीक व्यवस्था हर ज़िले में ओल्ड एज होम और फाॅस्टर हाउस के रूप में हो।

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