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मुखर्जी नगर की घटना के बाद पुलिस रिफॉर्म्स पर बहस नहीं होनी चाहिए क्या?

वीडियो

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16 जून को दिल्ली के मुखर्जी नगर की घटना का वीडियो देखकर आक्रोश होता है। पुलिस का यह रूप नया नहीं है फिर भी इंसानी फिदरत के अनुरूप दिल यह मानने को तैयार नहीं होता है। कई दफा ज़हन में आता है कि शायद हमारी पुलिस पहले से सभ्य हो गई है।

कई बार पुलिस रिफॉर्म्स की मांग ज़ोर-शोर से उठी लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम निकलकर सामने नहीं आए। अगर कुछ इक्का-दुक्का अफ्सरों ने व्यक्तिगत रूप से पहल करने की कोशिश की होगी, तो शायद उन्हें समर्थन नहीं मिली होगी। मीडिया ने भी इसको कभी प्राथमिक ज़रूरत समझा ही नहीं।

खैर, एनकाउंटर को रोमांचित नज़रो से देखने वाली जनता की बात की जाए तो उन्हें पता ही नहीं कि उनके खुद के राइट्स क्या हैं। पुलिस की हदें कहां तक हैं। हमेशा पुलिस की ही गलती हो, ज़रूरी नहीं है। इसलिए विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के ज़रिये मुखर्जी नगर की घटना का विस्तार पूर्वक जायज़ा लेने की कोशिश करते हैं।

कई मीडिया ने पुलिस की ओर से जारी बयान के आधार पर यह कहा है कि ग्रामीण सेवा ऑटो चालक सरबजीत सिंह ने पुलिस पर कृपाण से हमला कर दिया जबकि पुलिस वाले उन्हें ऑटो हटाने की इल्तिज़ा कर रहे थे। कुछ लोकल न्यूज़ पोर्टल पर मौजूद सरबजीत सिंह के बयान को नेश्नल मीडिया ने पहले बिल्कुल इग्नोर किया।

सरबजीत सिंह के बयान के मुताबिक, पुलिस वाले उनसे रिश्वत मांग रहे थे और बातों-बातों में विवाद बढ़ गया। अब घटना के करीब दो-तीन वीडियो वायरल हैं, जिनमे दोनों पक्षों की गलती लग रही है। जहां घटना हुई, वहां के ऑटो चालकों का यह कहना है कि पुलिस अक्सर वहां रिश्वत की मांग करती है लेकिन मेरा नज़रिया कुछ अलग है।

मैं मानता हूं कि सरबजीत सिंह का कृपाण लहराना गलत था मगर उक्त स्थान पर दिख रहे पुलिसकर्मियों का रवैया भी सही नहीं लग रहा था। वीडियो में दिख रहा है कि पुलिसकर्मी भी पुलिसिया धौंस जमाते हुए उन्हें धमका रहे हैं। जबकि हमारे टैक्स के करोड़ो रुपये पुलिस ट्रेनिंग पर खर्च कर दिए जाते हैं।

हम कोई बनाना रिपब्लिक या तालिबान नहीं हैं। सुपर पावर का दंभ भरने वाले देश की पुलिस द्वारा वारदात हैंडल करने का यह तरीका किसी भी सभ्य देश की श्रेणी में नहीं आता और सबसे ज़रूरी बात सरबजीत सिंह का नाबालिक लड़का जो सामने बाप को पिटता देख रहा हो, उसकी मानसिक स्थिति क्या होगी?


वीडियो में उसकी हृदय विदारक चीखें, “मुझे क्यों मार रहे हो मुझे क्यों मार रहे हो” दिल को चीर देती है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि वह अपने पिता और खुद की पुलिस द्वारा पिटाई के बाद भी अपने पिता के हाथ से तलवार छीन रहा है। वह तो पुलिस की मदद करना चाह रहा था, हो सकता है ऑटो को साइड करने के क्रम में पुलिस को टक्कर लगी हो। शायद यह भी हो सकता है कि इस चीज़ का बहाना बनाते हुए पुलिस ने उस बच्चे को जानवरों की तरह पीट दिया।

अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। नेता इसको धार्मिक चिन्हों की बेअदबी बता रहे हैं लेकिन मुझे यह मामला पुलिस रिफॉर्म और पुलिस पब्लिक रिलेशन पर जागरूक होकर, उस पर काम करने का एक मौका लग रहा है।

दिल्ली की लोकल मीडिया के मुताबिक सरबजीत के परिवार वाले भी मामला आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। तीन पुलिस वालों का निलंबन भी हो चुका है। इन सबके बीच आइए हम मिलकर पुलिस रिफॉर्म्स और पुलिस पब्लिक रिलेशन को दोस्ताना बनाने की मांग सरकार से करें।

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