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पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने वाले चे ग्वेरा की कहानी

चे ग्वेरा

चे ग्वेरा

हम अक्सर नौजवानों को एक तरह की टी-शर्ट पहने हुए देखते हैं जिसपर एक लड़का, जिसके लंबे घने उलझे हुए बाल, बड़ी-बड़ी दाढ़ी, मुंह में एक सिगार और सिर पर एक फौजी टोपी जिसपर एक सितारा लगा हुआ होता है। आजकल फैशन के दौर में सब एक-दूसरे की नकल भी करते हैं और दिल्ली में ऐसी टी-शर्ट ट्रेंड मे हैं। हालांकि, जो लोग ये टी-शर्ट पहने हुए होते हैं वे बस इसे कूल दिखने के लिए पहनते हैं।

उन्हें इससे मतलब नहीं होता कि टी-शर्ट पर जिसकी तस्वीर है वह इंसान है कौन? कुछ भले मानुष तो उसका नाम तक नहीं जानते। जो जानते भी हैं वे यह नहीं जानते कि वो क्यों प्रसिद्ध था? उसका जीवन कैसा था उसकी मौत कैसी थी?

कौन था ये चे ग्वेरा

जी हां, हम बात कर रहे रहे हैं चे ग्वेरा की। वही चे ग्वेरा जिसे आज के फैशन ने सिर्फ एक-टी शर्ट बॉय बना कर रख दिया है। वही चे ग्वेरा जिसे फ्रांस के महान दार्शनिक और अस्तित्ववादी दर्शन के प्रणेता ज्यां-पॉल सार्त्र ने ‘चे’ ग्वेरा को ‘अपने समय का सबसे पूर्ण पुरुष’ जैसी उपाधि दी थी। वही चे ग्वेरा जिसे टाइम मैगज़ीन ने 20वीं सदी के 100 महान लोगों की सूची में शामिल किया था। वही चे ग्वेरा जिसे लैटिन अमेरिका के सर्वहाराओं का नेता माना जाता है। वही चे ग्वेरा जिसके मरने के बाद भी अमेरिका और अन्य पूंजीवादी देश उसके नाम से कांपते हैं।

आज से ठीक 91 बरस पहले 14 जून 1928 को चे ग्वेरा का जन्म अर्जेंटीना में हुआ था। बचपन में उनके माता पिता उन्हें प्यार से टेटे बुलाते थे। चे का वास्तविक नाम अर्नेस्टो ग्वेरा था जो उनके पिता के अर्नेस्टो ग्वेरा लिंच के नाम पर रखा गया था लेकिन क्यूबाई क्रांति के दौरान अर्नेस्टो ग्वेरा ने अपने नाम को चे ग्वेरा कर लिया। चे का अर्थ होता है दोस्त, जो बाद में उनकी पहचान बन गया। वास्तव में चे ग्वेरा विश्व के सर्वहाराओं के दोस्त बन गए। उन्होने खुद कहा, “अगर आप हर अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद करते है तो आप मेरे कामरेड हो।”

चे और साहित्य

चे की रुचि बचपन से ही काव्य और कला जैसे उन्नत विषयों में थी। उन्हें बादलेयर, गोर्सिा लोर्का, एंतोंटनियों मचाडों और पाब्लो नेरुदा की कविताओं से बहुत प्रेम था। वह हमेशा स्पेनिश कवि लियान फेलिप के काव्य रेंडीयर को सिरहाने बिस्तर पर रखते थे। उन्होंने स्वयं भी कविता लिखने का प्रयास किया लेकिन वह अपने को एक असफल कवि कहते थे। उन्होंने अपने साथी फिदेल कास्त्रो से प्रथम भेंट के बाद ‘फीडल के सम्मान में गीत’ लिखा था जो चे ग्वेरा की मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ

वह गीत इस प्रकार है –

कृषि-सुधार, न्याय, रोटी और आज़ादी

जब तुम्हारा यह नारा सभी दिशाओं में गूंजेगा,

तो इस नारे को दोहराते हुए,

तुम हमको अपने साथ पाओगे।

उस दिन जब राक्षस अपना उदर चाट रहा होगा

जहां राष्ट्रीयकरण की बर्छी उसको भेद चुकी होगी,

वहां तुम्हारे साथ हम होंगे, अपने अभिमानी

और वफादार हृदयों के साथ।

इसके साथ ही साथ ही गणित और विज्ञान में भी वह काफी तेज़ थे, इस कारण उनके परिवार वाले चाहते थे कि उनका टेटे इंजीनियर बने। लेकिन उन्होंने डॉक्टर बनना पसंद किया शायद इसलिए कि उनकी प्रिय नानी की मृत्यु कैंसर से हुई और बाद में उनकी माँ सेलिया की मृत्यु भी इसी बीमारी से हुई। 1953 में चे ग्वेरा की अपने शहर ब्यूनस आयर्स विश्वविद्यालय से डॉक्टर की पढ़ाई पूरी हो गई और वह डॉ. अर्नेस्टो ग्वेरा बन गए।

डॉक्टर बनने से पहले चे ग्वेरा लैटिन अमेरिका घूम आए थे। उन्होंने अमेरिकी पूंजीवादियों द्वारा लैटिन अमेरिका के कई देशों के लोगों का हो रहा शोषण देखा, उन्होंने देखा कि कैसे वहां जोंक की तरह पूंजीवादी अमेरिका लैटिन अमेरिकी देशों के संसाधनों का उपयोग कर रहा है और लैटिन अमेरिकी लोग भूखे मर रहे हैं।

फोटो साभार- Wikipedia

कुष्ठ रोगियों को इलाज नहीं मिल रहा है, वे अलग बस्तियों में रह रहे हैं, कैसे खदान मज़दूरों और किसानों का शोषण हो रहा है। चे ग्वेरा ने यह यात्रा अपनी मोटरसाइकिल से की थी और उन्होंने इस यात्रा के दौरान एक संस्मरण लिखा जो मोटरसाइकिल डायरीज़ के नाम से प्रसिद्ध है। चे की इस यात्रा ने उनका हृदय परिवर्तन कर दिया।

चे के क्रांतिकारी बनने की शुरुआत

अब वह व्यवस्था में परिवर्तन करने को बेताब होने लगे और उसके लिए धीरे-धीरे अवसर भी आ रहे थे। ग्वाटेमाला में तब समाजवादी सरकार हुआ करती थी और जहां राष्ट्रपति जैकब अर्बेंज गुजमान बड़े पैमाने पर भूमि सुधार कार्यक्रम लागू कर रहे थे। इन कार्यक्रमों का शिकार अमेरिका की एक बड़ी कंपनी ‘यूनाइटेड फ्रूट कंपनी’ भी हुई जिसके पास वहां लाखों एकड़ ज़मीन थी।

इन कार्यक्रमों से अमेरिका के और भी कारोबारी हित प्रभावित हो रहे थे। आखिरकार अमेरिकी सरकार और सीआईए ने यहां गुजमान सरकार का तख्ता पलट करवा दिया। चे उस समय ग्वाटेमाला में ही थे और गुजमान का समर्थन कर रहे थे लेकिन तख्तापलट के बाद पकड़े और मारे जाने के डर से वह मेक्सिको आ गए।

चे और कास्त्रो

मेक्सिको में ही चे की मुलाकात फिदेल के भाई राउल कास्त्रो से हुई। 9 जुलाई 1955 को फिदेल भी मेक्सिको पहुंचे और राउल ने उन्हें को चे ग्वेरा के बारे में बताया और उससे मुलाकात की सलाह दी। उन दोनों की मुलाकात हुई और ये दोस्ती जीवन के आखिरी चरण तक चली। फिदेल ने इस मुलाकात का वर्णन इस तरह किया है,

चे के क्रांतिकारी विचार मेरी अपेक्षा अधिक परिपक्व थे, विचारधारा और सिद्धांत के क्षेत्र में वह कहीं अधिक विकसित था। मेरे मुकाबले वह अधिक बढ़ा हुआ क्रांतिकारी था।

फिदेल और चे के नेतृत्व में गुरिल्ला लड़ाके जीत रहे थे और क्यूबा के शहरों पर गुरिल्लाओं का कब्ज़ा होता जा रहा था। इसके पीछे जनता और मज़दूरों का सहयोग था। शहर जीतने से पहले गुरिल्लाओं ने सेयरा मेस्ट्रा की पहाड़ियों में अपना ठिकाना बना रखा था, जहां के किसान इन गुरिल्लाओं को साहिब कर रहे थे।

क्यूबा क्रांति की सफलता के बाद फिदेल ने चे ग्वेरा की मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित होकर क्यूबा को समाजवादी राष्ट्र घोषित कर दिया। चे को फिदेल की सरकार में उद्योग मंत्रालय मिला और वह ‘बैंक ऑफ क्यूबा’ के अध्यक्ष बनाए गए। 1959 में क्यूबा के उद्योग मंत्री के रूप में एक प्रतिनिधिमंडल के साथ वे भारत भी आए थे। कहा जाता है कि उन्होंने नेहरू से क्यूबा की चीनी खरीदकर अपरोक्ष रूप से समाजवाद को फैलाने का अनुरोध किया था।

सन 1959 में पंडित नेहरू के साथ चे ग्वेरा।

चे के ऊपर यह आरोप लगाया जाता है कि वह तृतीय विश्वयुद्ध करवाना चाहते थे। यह आरोप बिल्कुल गलत है, उनका एकमात्र उद्देश्य तो अपने जनवादी देश क्यूबा की रक्षा का था। अमेरिका किसी न किसी तरह फिदेल सरकार को गिराना चाहता था और इसके लिए वह हर नैतिक-अनैतिक हथकंडे अपना रहा था।

इसी कारण चे ने सोवियत संघ के मदद मांगी और सोवियत संघ न अपने परमाणु हथियार क्यूबा के पास तैनात कर दिए। चे चाहते थे कि सोवियत संघ अमेरिका पर हमला कर दे। इससे एक तरफ क्यूबा तो सुरक्षित हो जाता दूसरी ओर लैटिन अमेरिकी अन्य देश भी अमेरिका के शोषण से मुक्त हो जाते लेकिन सोवियत संघ के इससे पीछे हट जाने से उनको थोड़ा दुख हुआ और चे चीन के ज़्यादा निकट हो गए।

चे ग्वेरा का उद्देश्य सिर्फ क्यूबा को अमेरिकी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद से बचाना नहीं था। वह समस्त लैटिन अमेरिका और विश्व को पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के दानव से छुटकारा दिलाना चाहते थे। इसी कारण वे कांगो में भी लड़े और बाद में बोलिविया में लड़ते हुए अमेरिकी पूंजीवादियों के रक्षक सीआईए के हाथों मारे गए। उनके दोनों हाथों को काट दिया गया, बाद में बोलिविया के आंतरिक मामलों के मंत्री एंटोनियो अरगूडास ने चे की जेल डायरी और उनके हाथ क्यूबा पहुंचाए थे।

नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य आई. लेव्रेत्स्की द्वारा लिखी गई चे ग्वेरा की जीवनी से लिए गए हैं।

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