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“अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले देश के लिए शर्मनाक हैं”

मुस्लिमों पर अत्याचार

मुस्लिमों पर अत्याचार

चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो, भारत ने काफी तरक्की कर ली है। हम कितने आगे बढ़ चुके हैं कि ज़रा सी अफवाह पर तुरंत फैसला कर देते हैं। जब बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक के खाने-पीने की चीज़ों से लेकर उनके आने-जाने के स्थानों तक का नियंत्रण करने लगे, तब इसे तरक्की ना कहें तो और क्या कहें?

ऐसी स्थिति में तो संविधान से “समाजवाद” शब्द हटा देना चाहिए क्योंकि समाज में जब समानता ही नहीं है तो समाजवाद कैसा? पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर मुसलमानों और दलितों के पीटने के वीडियो वायरल हो रहे हैं।

फोटो साभार: Getty Images

कुछ धर्म के ठेकेदार उन लोगों को सिर्फ इस वजह से मारते हैं कि उनके खाने में बीफ शामिल है या फिर दलितों की पेड़ से बांधकर पिटाई इसलिए की जाती है क्योंकि वे किसी ऐसी जगह पर चले गए, जहां ऊंची जाति वाले लोग उनका जाना वर्जित समझते हैं।

वर्तमान भारत की दशा

नि:स्संदेह भारत प्रगति के मार्ग पर चल रहा है लेकिन वह प्रगति अदृश्य है। जगह-जगह पर कुछ समुदायों का यूं लहूलुहान होना भारत को झकझोर देने के लिए काफी है। हाल ही में बरेली में चार मज़दूरों की पिटाई सिर्फ इस अफवाह पर हुई क्योंकि वे बीफ खा रहे थे। ऐसी घटनाएं भारत की छवि को धूमिल करती हैं।

सरकार को चाहिए कि इन घटनाओं पर रोक लगाने का काम करे क्योंकि अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले देश के लिए शर्मनाक हैं। यह देश सिर्फ सवर्णों या हिंदुओं का नहीं, बल्कि हर तबके के लोगों का है। यह देश जितना बहुसंख्यक समुदाय का है, उतना ही अल्पसंख्यकों का भी है।

खोखले राष्ट्रवाद, खोखले हिंदुत्व और खोखले सिद्धांतों ने हमें इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि हम सही-गलत में अंतर करना भूल गए हैं। हिंदुत्व यह नहीं कहता कि किसी व्यक्ति को सिर्फ अफवाहों के सहारे ही बर्बरता से मारा जाए। शायद धर्म का झंडा उठाए लोगों को इस बात का इल्म नहीं है कि हिंदुत्व तो सबको बराबर सम्मान देने की बात करता है।

चंद कुंठित लोगों की वजह से विश्व में हमारी जग हंसाई हो रही है। हाल ही में एक खबर आई कि एक विदेशी नागरिक के जय श्री राम ना बोलने पर उसके ऊपर चाकू से हमला कर दिया गया। क्या इतने असंवेदनशील हो गए हैं हम लोग? क्या जय श्री राम का नारा ऐसा है कि ना बोलने पर हमला कर दिया जाए? हम सबको मिलकर यह तस्वीर बदलनी होगी।

दोष किसका है?

ऐसी घटनाओं के लिए किसी एक को ज़िम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। इस प्रकार की अशोभनीय घटनाओं में दोष हम सबका है। सबसे ज़्यादा दोष है राजनीतिक पार्टियों का जो अपने निहित स्वार्थ के लिए लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काते हैं। फिर दोष है हम लोगों का जो ऐसी घटनाओं को देखने के बावजूद चुप रह जाते हैं। हमें चाहिए कि एक-साथ मिलकर इन घटनाओं का विरोध करें, इसी में देश व समाज दोनों की भलाई है।

ममता बनर्जी। फोटो साभार: Getty Images

एक बात और, यहां बंगाल का ज़िक्र करना अतिआवश्यक है जहां सिर्फ जय श्री राम के नारे लगाने पर उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। हमें ऐसा तंत्र भी नहीं चाहिए जो लोगों में समानता लाने में असफल हो। इसके साथ ही इसमें अल्पसंख्यकों का भी दोष है कि वे मौका देखते ही अपना दांव पूरा करने की कोशिश करते हैं, जो कि प्रतिशोध की भावना है और इतिहास गवाह है कि प्रतिशोध की भावना ने कभी सामाजिक संतुलन को विकसित नहीं होने दिया है। इसलिए अल्पसंख्यक समुदाय को भी अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाना पड़ेगा।

सरकार की भूमिका व इसका समाधान

इन सब घटनाओं में सरकार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। इतनी कि वह इनको रोक भी सकती है और इसे बढ़ावा भी दे सकती है। सरकारों को चाहिए कि वे ऐसे छ्द्म फर्ज़ी हिंदुत्ववादी लोगों के लिए दंड का प्रावधान करे और समाज मे सभी धर्मों के प्रति एक समानता लाने का प्रयत्न करें जिससे ऐसी घटनाओं को बढ़ावा ना मिले।

सतयुग से भारत सनातन धर्मी देश है लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि वहां रहने वाले लोगों की स्वायत्तता व उनके अधिकारों पर यूं हमला किया जाए। यह सिर्फ इक्कीसवीं सदी में हुआ है। वास्तव में हम बहुत पिछड़े हुए हैं, हमने सनातन धर्म की परंपरा का उल्लंघन किया है।

हमें इस परंपरा को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए ताकि देश में ज़मीनी स्तर पर एकता कायम हो सके। कृपया आप सभी अपने-अपने स्तर से ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रयास कीजिए।

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