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“मोदी जी, आपकी आयुष्मान योजना बच्चों की जान क्यों नहीं बचा पा रही है?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

क्रिकेटर शिखर धवन की चोट पर चिंता जताने वाले प्रधानमंत्री मुज़फ्फरपुर में बच्चों की मौत पर असंवेदनशील दिखाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कई वादें किये, उन्होंने कहा सबका साथ और सबका विकास, उनके एजेंडे में गरीब सर्वोच्च स्थान पर हैं परंतु फिर भी बिहार में हो रही मृत्यु की महाकुंभ पर उनकी चुप्पी बड़ा सवाल खड़ा करती है।

मुज़फ्फरपुर में बीमार बच्चों के परिजन। फोटो सोर्स-Getty

मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि शेखर धवन के चोटिल होने पर आपकी संवेदनशीलता जागृत हो जाती है और आप ट्वीट करते हैं कि हमारे शिखर धवन चोटिल हो गए हैं लेकिन उसी समय बिहार में सैकड़ों बच्चों की मौत दिमागी बुखार के कारण हो जाती है, इस पर आपकी चुप्पी क्या दर्शाती है?

मोदी जी आयुष्मान भारत योजना कहां चली गई?

फोटो सोर्स- Getty

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना जिसको आयुष्मान भारत के नाम से प्रचारित किया गया, जिसके तहत प्रत्येक गरीब को 500000 तक प्रतिवर्ष भारत के किसी भी अस्पताल में इलाज कराने का वादा किया गया था वह योजना कहां है?

जब बिहार में इतनी संख्या में बच्चे मौत के शिकार हो रहे हैं, तो प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत कहां चली गई? लोग ढूंढ रहे हैं कि इस योजना का लाभ देने वाले अस्पताल कहां हैं? तो क्या मोदी सरकार की यह योजना फ्लॉप हो गई है?

एक प्रकार का जुमला है आयुष्मान भारत योजना

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार मुज़फ्फरपुर में आयुष्मान भारत स्कीम के तहत 10 प्राइवेट अस्पताल रजिस्टर्ड हैं लेकिन इनमें से एक भी अस्पताल बच्चों के इलाज नहीं कर रहे हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में ही बताया गया है कि पीड़ित बच्चों के परिजनों में अधिकतर के पास आयुष्मान भारत योजना का कार्ड नहीं है, यदि है भी तो इसकी कोई उपयोगिता प्राइवेट अस्पतालों में नहीं है।

कहा जा सकता है कि आयुष्मान भारत स्कीम पूर्ण रूप से असफल है और यह एक प्रकार का नया जुमला है, जिसके कारण हमारे देश के गरीब लोगों की जान जा रही है।

प्रधानमंत्री जी को जवाब देना होगा कि इस योजना के तहत पीड़ित बच्चों को इलाज की सुविधा क्यों नहीं मिल रही है? बिहार और देश के राजनेताओं से हमारे यह सवाल जारी रहेंगे, क्योंकि इनकी राजनीति कहीं ना कहीं दलितों, पिछड़ों और गरीबों के इर्द-गिर्द घूमती है। वे अपनी राजनीति इनके नाम पर करते हैं और कुर्सी पर बैठकर मलाई खाते हैं।

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