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आर्टिकल 15: यह फिल्म कई सवाल खड़े करेगी, आपको अंदर तक परेशान करेगी

Article 15 review

आप फिल्म हॉल में बैठे हैं और फिल्म की शुरुआत में ही क्रांति गीत सुनने को मिल जाए, “कहब त लग जाये धक से…” और इसके साथ ही बैकग्राउंड में बाबा साहब की मूर्ति दिख जाए, तो उम्मीद वहीं से बनने लगती है। हालांकि यह फिल्म कोई क्रांति वाली फिल्म नहीं है बल्कि एक सामाजिक सच्चाई, जिसे समाज का तथाकथित सवर्ण समाज जानते हुए भी नकारता है, उस सच्चाई का एक बेहतरीन चित्रण है।

कहीं आप फिल्म रिव्यू पढ़ने से पहले ही यह ना समझ बैठे कि मैं इस रिव्यू के ज़रिए सवर्ण विरोधी बातें करने जा रही हूं। तथाकथित सवर्ण से मेरा मतलब पूरे सवर्ण समाज से नहीं है, बल्कि सवर्ण समाज का एक ऐसा हिस्सा, जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति के नाम पर खुद को दलितों से ऊपर समझता है और उनके साथ किए जाने वाले भेदभाव और ज़ुल्मों को अपनी परंपरा के चोले से ढककर उसे वाज़िब करार देता है।

खैर, इधर-उधर की बातें ना करते हुए मैं सीधे फिल्म पर आती हूं। फिल्म में तीन दलित लड़कियां गायब हैं, दो का बलात्कार करके उन्हें पेड़ पर टांग दिया जाता है, वजह आपने ट्रेलर में भी सुनी होगी, अपनी दिहाड़ी में सिर्फ 3 रुपये बढ़ाने की मांग की थी उन लड़कियों ने। तीसरी लड़की गायब है और पूरी फिल्म में उस तीसरी लड़की की तलाश होती है। यहां बता दूं कि तीनों लड़कियां नाबालिग हैं।

फिल्म आर्टिकल 15 का एक दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

यह घटना आपको अखबार में पढ़ी किसी खबर जैसी लग रही होगी, इससे मिलती-जुलती कई खबरें आपने शायद अखबार के पन्नों में पढ़ी होंगी। जी हां, क्योंकि यह तो आम बात है।

इन दलितों का क्या है, इनके साथ तो ऐसा होते रहता है, इनकी औकात ही क्या है और अगर ये अपनी औकात से बाहर आ जाएं, तो इन्हें इसी तरह औकात दिखा दी जाती है।

जी बिलकुल समाज की इसी कड़वी सच्चाई को फिल्म में दिखाया गया है। फिल्म में इन लड़कियों का अपराधी, गर्व से कहता है कि उसने इन लड़कियों के साथ ऐसा करके उन्हें और उनके पूरे समाज को उनकी औकात दिखाई है। फिल्म में आयुष्मान खुराना जो कि सीनियर इंस्पेक्टर की भूमिका में हैं, गुस्से में कहते हैं,

कौन लोग? क्या कब से ये लोग-ये लोग लगाकर रखा है, क्या ये हमारे बीच के लोग नहीं हैं?

फिल्म में एक दलित क्रांतिकारी का डायलॉग जो आपने ट्रेलर में भी सुना होगा,

मैं और तुम इन्हें दिखाई ही नहीं देते, हम कभी हरिजन हो जाते हैं, कभी बहुजन हो जाते हैं, बस जन नहीं बन पा रहे हैं कि जन गण मन में हमारी भी गिनती हो जाए।

फिल्म के ये डायलॉग्स आपको इस सामाजिक व्यवस्था पर सोचने पर मजबूर ज़रूर करेंगे।

खैर, मैं फिल्म की कहानी के बारे में डिटेल में जाकर ना ही आपका मज़ा खराब करूंगी ना ही अपना रिव्यू का स्पेस।

आप परेशान होंगे जब दो लड़कियों के साथ बलात्कार होता है, आप परेशान होंगे जब एक मैला ढोने वाला आदमी नंगे बदन, गंदे नाले में घुसकर उसे साफ करता है।

हालांकि आपने ऐसी कई कहानियां पढ़ी होंगी कई न्यूज़ पढ़ें होंगे, मैला ढोते कई लोगों को देखा होगा लेकिन वह न्यूज़ बस न्यूज़ रह जाती है, नाली साफ करते इंसान को देखकर आप नाक, मुंह दबाकर साइड से निकल जाते होंगे।

लेकिन वहीं दृश्य इस बार आपको बड़े पर्दे पर दिखेगा, जी हां उसी पर्दे पर जिसपर अकसर आप रंग-बिरंगे भरकीले कपड़े पहने हीरो-हीरोइन काे डांस करते देखते हैं, कोई कॉमेडी सीन देखते हैं, कोई भव्य नज़ारा देखते हैं लेकिन इस बार पर्दे पर आप नंगे बदन में गंदी नाली साफ करता आदमी भी देखेंगे।

फिल्म में रोमांस भी है, दलितों की लड़ाई लड़ रहे एक प्रेमी जोड़े की लेकिन उसके लिए ना ही किसी फिल्मी गाने की ज़रूरत पड़ी ना ही एक्स्ट्रा बैकग्रांउड म्यूज़िक की। आपको उनका प्रेम देखकर गॉंव का प्रेम ही याद आएगा। अगर आप कभी एक्टिविस्ट बैकग्राउंड से जुड़े रहे हैं, तो आप शायद इस प्रेम की गहराई को भी समझे और उसके दर्द को भी, जहां बेइंतहा प्यार भी है लेकिन उस प्यार से पहले अपने समुदाय की भलाई।

समाज में घटित घटनाओं का चित्रण है यह फिल्म

फिल्म आर्टिकल 15 का एक दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

आपको फिल्म में कोई कहानी बनावटी नहीं लगेगी बल्कि समाज में घटित घटनाओं का चित्रण है यह फिल्म, जहां अपने फायदे के लिए ब्राह्मण राजनेता दलित के घर खाना खाने जाते हैं, ब्राह्मण-दलित एकता की बात करते हैं और चुनाव जीतने के बाद वापस से ब्राह्मणवादी विचारधारा का चोला ओढ़ लेते हैं। एक ऐसा समाज, जहां दलितों की लड़कियां गायब होने पर बड़ी आसानी से कह दिया जाता है कि इनका क्या है, इनकी लड़कियां तो किसी-ना-किसी के साथ भाग जाती हैं, जहां बलात्कार की घटनाओं को कभी ऑनर किलिंग, तो कभी कोई और रूप देकर दबा दिया जाता है, किसी दलित के मंदिर में घुस जाने पर उसे बीच सड़क पर बांधकर मारा जाता है। इसके साथ ही दलितों में भी आपसी जातिगत भेदभाव की सच्चाई दिखाता है यह फिल्म।

यह फिल्म कोई इतिहास में बीत चुकी घटनाओं की बात नहीं करती है, यह फिल्म आज के समय की बात करती है, 2019 में घट रही घटनाओं की बात करती है। जो जातिगत भेदभाव के अस्तिव को सिरे से नकारते हैं, उनके लिए यह फिल्म एक आईना बन सकती है। या फिर हो सकता है वे इस फिल्म को भी एक कल्पना मात्र मानकर नकार दें।

कई सवाल खड़ा करने वाली है यह फिल्म

कुछ फिल्में होती हैं, जिसे देखकर आप सिनेमा हॉल से रोमांचित होकर निकलते हैं और कुछ आपके सामने कई सवाल खड़ा करती हैं, यह फिल्म सवाल खड़ा करने वाली फिल्म है, आपको अंदर तक परेशान करने वाली फिल्म है।

फिल्म में दलित क्रांतिकारी से एक पुलिस ऑफिसर कहता है,

हर समुदाय की अपनी समस्या होती है,

इसपर उस दलित क्रांतिकारी का जवाब आता है,

हां, लेकिन क्या कभी किसी ने तुम्हारे हाथ से बना खाना खाने से मना किया है? क्या कभी किसी ने तुम्हारे साथ हाथ मिलाकर अपना हाथ धोया है?

मैं यह बिलकुल नहीं कह रही कि फिल्म पूरी तरह से परफेक्ट है, इसमें भी कई कमियां हैं, जैसे अगर किसी पुलिस ऑफिसर की पोस्टिंग यूपी के इंटीरियर इलाके में होती है, तो उसे जातिवाद का थोड़ा तो अंदाज़ा होना चाहिए लेकिन आयुष्मान को इसका थोड़ा भी अंदाज़ा नहीं है। अगर आप जातिगत भेदभाव को नहीं भी मानते हैं, तो भी आपका इस भेदभाव के समाज से परिचित होना सामान्य सी बात है, वह भी पुलिस सर्विस में होते हुए। लेकिन आयुष्मान इन सबसे बिलकुल अपरिचित हैं।

बहरहाल, अगर फिल्म एक अच्छे विषय पर बनी हो तो ऐसी कुछ चीज़ों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, क्योंकि इन विषयों पर फिल्म बनाने के लिए हिम्मत चाहिए, इन विषयों पर बनी फिल्म के लिए हॉल तक ऑडियंस को लाने के लिए सब्र चाहिए, फिल्म की आलोचना, विरोध के लिए तैयार होना चाहिए। वैसे, “मुल्क” के बाद डायेक्टर अनुभव से उम्मीद तो काफी थी और यह फिल्म उस उम्मीद पर काफी हद तक खड़ी भी उतरती हुई दिखी है। सबसे अच्छी बात है कि फिल्म में हीरो को हीरो के रूप में स्टैबलिश करने पर फोकस नहीं किया गया है, जो अकसर हमारी बॉलीवुड फिल्मों में देखने को मिलता है।

आयुष्मान खुराना, अपने किरदार को जीना बखूबी जानते हैं लेकिन इस फिल्म में सिर्फ आयुष्मान खुराना की एक्टिंग की तारीफ करना बाकि कलाकारों के साथ नाइंसाफी होगी। इस फिल्म के मुख्य पात्र सिर्फ आयुष्मान नहीं हैं बल्कि सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा, मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब सभी अपनी एक्टिंग के ज़रिए फिल्म के मुख्य पात्र के रूप में स्पेस बनाते हुए दिखते हैं।

खैर, फिल्म इस शुक्रवार 28 जून को रिलीज़ हो रही है। एक बार इस फिल्म में आप पैसे खर्च करके देखें, क्योंकि यह फिल्म आपको सामाजिक सच्चाई से परिचय करवाएगी।

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