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जाति रूपी बेड़ियों में आखिर कब तक हम जकड़े रहेंगे?

दलितों की प्रतीकात्मक तस्वीर

दलितों की प्रतीकात्मक तस्वीर

देश फिलहाल बहुत ही बुरे दौर से गुज़र रहा है। आज विश्व में भारत की साख गिर रही है। कारण भी ऐसा है जिससे सुनने भर से दिल में हज़ार कीलों के एक साथ चुभने जैसा दर्द शुरू हो जाए। जब भी अकेला होता हूं तो बस उस नन्हीं सी बच्ची का मासूम चेहरा आंखों में उतर आता है। दिल चाहता है कि उन दरिंदों को खुद अपने हाथों से सजा दूं मगर मजबूर हूं।

उस बच्ची के साथ गलत हुआ जो बहुत ही ज्यादा भयावह भी है। हम उसे न्याय दिलवाने हेतु हर संभव कोशिश करेंगे। आज हर इंसान का दिल उसके बारे में सुनकर व्यथित है मगर आखिर यह सब रुकेगा कब?

अत्याचार को भी जाति वर्ग में बांट देते हैं

कुछ दिन पहले ही पायल तड़वी नाम की एक लड़की को मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह मृत्यु को गले लगाने पर मजबूर हो जाती है। आखिर ऐसा क्यों? हम अगर किसी अच्छी चीज़ का समर्थन करते हैं तो बुरी चीज़ का विरोध भी होना चाहिए लेकिन नहीं यही इस देश की तल्ख हकीकत है कि हम अत्याचार को भी जाति वर्ग में बांट देते हैं। ध्यान रखिये अत्याचारी की कभी कोई जाति नहीं होती। उसके लिए सभी एक शिकार की तरह ही होते हैं।

जाति देश को अंधकार में ले जा रही है

आज पूरा देश उस मासूम के साथ खड़ा है। उसे न्याय दिलाने हेतु तत्पर है तो पायल तड़वी के लिए पूरा देश संगठित क्यों नहीं हुआ? क्यों हम सब अपराधियों की जाति देखकर ठहर जाते हैं?

आखिर कब तक यह सब चलेगा हम अगर अब भी नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ियों के लिए हम छोड़ जाएंगे तो बस वैमनस्य और एक-दूसरे के लिए नफरत, जो इस देश को उस अंधकार में ले जाएगी।

जहां से बचकर निकलना शायद किसी के लिए भी संभव नहीं। आजकल हर कोई अपनी जाति पर गर्व करता है। हर किसी को किसी ना किसी तरह से अपनी जाति की श्रेष्ठता सिद्ध करनी है और वह करके भी हम पाएंगे तो आखिर क्या, इस देश का टुकड़ों-टुकड़ों में विघटन।

हम जाति रूपी बेड़ियों में बंधे हैं

समानता इस संविधान ने सभी को दी है वह हकीकत में है ही कहां? आज भी किसी ना किसी तरह से एक जाति दूसरी जाति के लोगों को नीच अछूत और भी ना जाने क्या क्या मानती ही है। यह सिलसिला शायद कभी खत्म होगा भी नहीं क्योंकि हम बंधे हैं इन जाति रूपी बेड़ियों में जिससे निकलना शायद किसी एक के बस का है ही नहीं  क्योंकि एक निकलना चाहे भी तो उसे 10 लोग वापस धकेल देते हैं।

जब तक यह जाति का मोहपाश हमारे पैरो में पड़ा है तब तक इस देश में अनगिनत ट्विंकल, संजली, आसिफा, निर्भया, पायल, रोहित वेमुला, अलवर, न्नाव, मन्दसौर और भी ना जाने कितने लोग इस घृणित मानसिकता के शिकार बनते रहेंगे।

अब आप सभी पर ही यह बदलाव निर्भर है कि आप किसे चुनते हैं। अपनी जाति की श्रेष्ठता को या फिर मानवता को। आपका फैसला ही देश को नई दिशा दे सकता है, या जातिगत विनाश का गर्त या फिर सर्व बन्धुत्व, मानव धर्म सर्वोपरि वाला देश।

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