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“ज़हर बनती देश की हवा और पानी कभी चुनाव का मुद्दा क्यों नहीं बन पाते हैं?”

जीवन को सुरक्षित तथा सुन्दर बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है संतुलित पर्यावरण। फिर भी बीते वर्षों में पर्यावरण मानव जीवन के साथ-साथ पृथ्वी के अन्य जीवों के लिए भी प्रतिकूल होता जा रहा है। यह स्थिति मानव ने अपने अंधाधुन्द विकास के कार्यों के कारण उत्पन्न की है, जिसका एहसास होने पर मानव ने पर्यावरण सुरक्षा तथा सुधार के नज़रिए से कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं।

इसके लिए पूरे विश्व में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई संस्थाओं तथा संगठन का निर्माण किया गया। इन सबके अलावा लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने के लिए 1974 से ही 5 जून को हर वर्ष पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन विश्वस्तर पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण योजना द्वारा एक कार्यक्रम रखा जाता है। इस कार्यक्रम की मेज़बानी किसी ना किसी हिस्सेदार देश द्वारा की जाती है। हर साल इस कार्यक्रम के लिए एक नए विषय को चुना जाता है, जिसकी सफलता के लिए सभी देश प्रयासरत होते हैं। 2018 में इस कार्यक्रम की मेज़बानी भारत ने की थी, तथा इसका विषय था “प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना”। इस साल 2019 में इस कार्यक्रम की मेज़बानी चीन कर रहा है और इस बार का विषय है “वायु प्रदूषण”।

प्रदूषण फैलाने में विकसित देशों की है अहम भूमिका

पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर कार्यक्रम तथा संस्थाएं बनती हैं लेकिन इनसे पर्यावरण सुरक्षा के कार्य होने के अलावा धन कमाने का कार्य भी होता है। विकसित देश इन संस्थाओं के नियमों का पालन ना करके तीसरी दुनिया के देशों को ही नियमों का पालन करने के लिए मजबूर करते हैं। ये विकसित देश यही नहीं रुकते हैं। ये कार्बन फुटप्रिंट के नाम पर अपने यहां के उद्योग धंधों को उन देशों में स्थापित करते हैं जहां प्रदूषण कम है।

फोटो सोर्स- Getty

इनकी इन्हीं दोहरी नीतियों के कारण सन् 2000 में बनाया गया ‘सहस्त्र शताब्दी लक्ष्य’ सन् 2015 तक पूरा नहीं हो पाया। अगर ऐसा ही चलता रहा तो सन् 2030 तक ‘सतत विकास लक्ष्य’ सफल नहीं हो पाएगा।

क्या इस तरह हम एक बेहतर पर्यावरण की कल्पना कर सकते हैं?

इसका जवाब होगा, नहीं क्योंकि कोई भी देश पर्यावरण सुरक्षा के लिए पहल तो करता है लेकिन उसे पूरा करने में अपनी जागरूकता नहीं दिखाता है।

भारत तो पर्यावरण सुरक्षा के मामले में दिन प्रतिदिन काफी पीछे होता जा रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बन चुकी है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के गाज़ीपुर इलाके का कूड़े का पहाड़ कुछ वर्षों में ताज महल से भी ऊंचा हो जाएगा। भारत का कानपुर शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो चुका है लेकिन इन सबके बावजूद यहां की सरकार पर्यावरण के मुद्दों को नज़रअंदाज़ करती जा रही है।

हाल ही में 17वीं लोकसभा चुनाव पूरा हुआ। फिर से एनडीए सरकार ने बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। इस चुनाव में सभी पार्टियों ने प्रचार के लिए खूब धन खर्च किया। यह चुनाव प्रचार कुछ ही मुद्दों तक सिमट कर रह गया और पर्यावरण सुरक्षा का मुद्दा गायब रहा।

इस चुनाव में भी पर्यावरण नहीं बना मुद्दा

किसी नेता या किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा पर्यावरण के मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ा गया। लगभग सभी पार्टियों ने इससे संबंधित किसी भी मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में कोई स्थान नहीं दिया। 2014 के चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी गंगा सफाई को अपना मुख्य मुद्दा बनाकर सत्ता में आई थी, इस चुनाव में वह मुद्दा भी भाजपा के लिए कोई ज़रूरी विषय नहीं रह गया। इस पर विपक्ष ने भी कोई आवाज़ नहीं उठाई।

हमारे देश का पानी और हवा दिन-प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही है और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव इन मुद्दों के बगैर लड़ लिया गया। यह एक निराशाजनक बात है। भारत की मीडिया भी चुनाव के समय इन मुद्दों को कम तरजीह देती है।

जब भी नई सरकार आती है तो वह अपने अनुसार पर्यावरण सुधार के नज़रिए से कार्य करती है लेकिन उससे कितना फायदा होता है यह तो उस सरकार की नियत पर निर्भर करता है। ठीक उसी तरह जब एनडीए सरकार 2014 में पहली बार सत्ता में आई तो उसने गंगा सफाई के नाम पर ‘नमामि गंगे’ जैसी बड़ी परियोजना चलाई।

इसके नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए लेकिन गंगा साफ होने की बजाए दिन-प्रतिदिन और प्रदूषित होती गई। इस मुद्दे को सरकार ने 2019 के चुनाव में ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस परियोजना के नाम पर सरकार ने कई बड़े सपने दिखाए लेकिन गंगा सफाई एक सपना बनकर ही रह गया। विपक्ष ने भी सरकार की इस विफलता पर कठिन सवाल खड़े नहीं किए।

भारत में पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जागरूकता की कमी का एक मुख्य कारण हमारी शिक्षा प्रणाली की बनावट है। हमारे यहां प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन एक विषय के रूप में तो लागू कर दिया गया है लेकिन उसे समाज तथा व्यवहारिकता से दूर ही रखा गया है।

हम धीरे-धीरे एक ऐसे भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं, जहां पर्यावरण प्रदूषण काफी मात्रा में होगा। अगर हम अभी भी सचेत नहीं हुए तो हम अपना भविष्य अंधकारमय बना देंगे।

इससे बचने के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे-

हमें पर्यावरण के महत्व को समझते हुए उसे बचाने का कार्य करना होगा। हम जो भी कार्य करें उसे करते हुए इतना ध्यान ज़रूर रखे कि हमारी किसी भी गतिविधि से प्रकृति को कुछ नुकसान ना पहुंचे। हमें जितना अधिक-से-अधिक हो सके उतना पर्यावरण सुरक्षा के लक्ष्य की ओर प्रयासरत रहना होगा।

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