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“क्या मीडिया लोगों के दिमाग में गैर-ज़रूरी सूचनाओं का अंबार डाल रहा है?”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

कोई तलवार लेकर चला आता है, कोई आग के गोले दिखाता है, कोई बिजली चमका रहा होता है, कोई पिच में ही बैटिंग करने लग जाता है, तो कोई फौजी ड्रेस पहनकर इतना चीख रहा होता है जैसे कुछ देर में टीवी से निकलकर आपका कॉलर खींच लेगा। जी हां, भारतीय मीडिया की बात हो रही है। फैशन शो में 50 पत्रकार पहुंच जाते हैं और किसानों के बुलाने पर कई मीडिया समूह न्यूज़ कवर करने के लिए उदासीन हो जाते हैं

मणिपुर में बम्ब विस्फोट होने पर एक नीचे पट्टी चलती है और बॉलीवुड की हीरोइन जब प्रग्नेंट होती  हैं, तो उसे न्यूज़ बनाकर राष्ट्रीय रूप दे दिया जाता है। यह वास्तव में किसी प्रकार का न्यूज़ नहीं है मगर जो न्यूज़ हो सकता है, उसे दर्शकों को खोजना पड़ता है। दर्शकों को लगता है कि वे धीरे-धीरे जागरूक होकर सूचना स्टोर कर रहे हैं मगर ऐसा नहीं है। वर्तमान मीडिया हमारे दिमाग में कचरा और गैर ज़रूरी सूचनाओं को भर रहा है

एंकर राजनीतिक पार्टियों के वक्ताओं को बोलने का मौका नहीं देते हैं

अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर मीडिया को जनमानस की बात कहने का अधिकार मिला है और उसी मीडिया के एंकर राजनीतिक पार्टियों के वक्ताओं को बोलने का मौका नहीं देते हैं संवाद खत्म हो रहा है, विचारधाराओं का दमन हो रहा है, न्यायालय से पहले खुद ही फैसले दे रहा है और अब तो मीडिया, एक माध्यम ना बनकर प्रचारक की भूमिका में आ चुका है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: Fkickr

वह अब आपको न्यूज़ के अलावा सब दिखता है ब्रांडेड कम्पनी के विज्ञापन, अंधविश्वास पर आधारित सीरियल का प्रचार, केवल मध्य भारत को ही भारत देश के तौर पर पेश करना और अन्य घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर देनाइन्हें रणवीर-दीपिका की शादी का मेन्यू पता होता है मगर जनगणना, बेरोज़गारी और गरीबी के आंकड़ों पर शायद ही बात होती होगी।

यह समझना ज़रूरी है कि सूचना क्रांति के दौर में वास्तविक खबर क्या है? कैसे हम पर बेफालतू चीज़ों को थोपा जाता है? सोचिए कहीं मीडिया आपका ब्रेनवॉश तो नहीं  कर रहा है? या किसी विचारधारा को थोपने की कोशिश तो नहीं कर रहा? क्या इनकी खबरें आपको आक्रामक बना रही है? समय बहुत है हम सभी के पास क्योंकि भारत की बेरोज़गारी दर मीडिया बताएगा नहीं और वह कोशिश भी करेगा कि आप इस दिशा में कभी सोच ना पाएं

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