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NEET परिणाम: “गरीब बच्चों के साथ धोखा है परसेंटाइल सिस्टम”

नीट 2019 का परिणाम आते ही स्टूडेंट्स और कोचिंग संस्थानों में खुशियों का दौर शुरू हो गया है। अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर कोचिंग संस्थानों के बड़े-बड़े विज्ञापन छप गएं। ऐसा माहौल बनाया गया, जैसे पूरा देश ही अब डॉक्टर बन गया है। जबकि हकीकत इन सबसे कोसों दूर है।

इस बार नीट परीक्षा देने के लिए 15,19,375 स्टूडेंट्स ने रजिस्ट्रेशन करवाया था, जिनमें से 14,10,754 स्टूडेंट्स परीक्षा में बैठे। इनमें से 7,97,000 स्टूडेंट्स पास हुए हैं।

2016 से पहले न्यूनतम क्वालीफाइंग अंक सामान्य वर्ग के लिए 50% और आरक्षित वर्ग के लिए 40% होता था। इसके हिसाब से सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी को 720 में से 360 अंक और आरक्षित वर्ग को 288 अंक हासिल करने होते थे मगर अब परसेंटाइल सिस्टम के कारण जितने स्टूडेंट्स परीक्षा में बैठे हैं, उनमें से 50% स्टूडेंट्स को पास कर दिया जाता है। सामान्य श्रेणी से 134 नंबर वाले और आरक्षित श्रेणी से 107 नंबर वाले अभ्यर्थी क्वालीफाई मान लिए गए हैं।

ज़्यादातर बच्चों को नहीं मिलने वाली हैं सीटें

फोटो सोर्स- Getty

गरीब बच्चों के साथ धोखा है परसेंटाइल सिस्टम

यहां ज़रूरी बात यह है कि ये स्टूडेंट्स सिर्फ क्वालीफाई माने गए हैं। इन स्टूडेंट्स को सीट नहीं मिली है और ना ही ज़्यादातर को सीट मिलने वाली है। मेरिट का सिस्टम 30 हज़ार सरकारी सीटों तक ही सीमित है। निजी मेडिकल कॉलेजों में बाकी 40 हज़ार सीटों में मेरिट ध्वस्त हो जाएगी। निजी कॉलेजों की सालाना 15-20 लाख रुपए की फीस योग्य व गरीब बच्चे नहीं भर पाएंगे। जिन्होंने न्यूनतम अंक से क्वालीफाई किया है और जिनके माँ-बाप के पास पैसे हैं, उनको दाखिला मिलेगा। कुल मिलाकर देश में उपलब्ध मेडिकल की कुल 70 हज़ार सीटों में से 40 हज़ार सीटें अमीरों के बच्चों के लिए आरक्षित करने के लिए यह परसेंटाइल सिस्टम लाया गया है।

50% व 40% अंकों के आधार पर अगर क्वालीफाई किया जाता तो 8 लाख की बजाए 2 लाख अभ्यर्थी पास होते। तब निजी मेडिकल कॉलेज वालों को इन्हीं स्टूडेंट्स को लेने के लिए बाध्य होना पड़ता और फीस की दरों में गिरावट करनी पड़ती। अभी के हिसाब से 560 अंक या उससे ऊपर लाने वाले बच्चे सरकारी कॉलेज में जाएंगे अर्थात 7,97,000 में से सिर्फ 30 हज़ार। बाकी 107 से लेकर 559 अंक तक लाने वाले 7,67,000 बच्चों के लिए निजी कॉलेज 40 हज़ार सीटों की बोली लगाएंगे। 70 लाख रुपए जिसकी जेब में होंगे उनको दाखिला मिल जाएगा। फिर चाहे नंबर 559 आए या 107, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

ऑल इंडिया परीक्षा मात्र एक ढकोसला है। सही मायनों में यह सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया है। निजी मेडिकल कॉलेजों को मात्र दिखावे के लिए इसके साथ जोड़ा गया है, जबकि बाध्यताओं की सारी सीमाएं खत्म की गई हैं। अगर गरीब स्टू़डेंट्स को डॉक्टर बनना है तो वे 30 हज़ार सरकारी सीटों यानी कि 560 से अधिक अंक लाने पर ध्यान केंद्रित करें। उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

जिन बच्चों का सपना डॉक्टर बनने का है और जो माँ-बाप अपने बच्चों को डॉक्टर बनाना चाहते हैं, वे कृपया करके अखबारों के विज्ञापन, कोचिंग संस्थानों के जलसों-दावों में ना उलझें। हर कोचिंग संस्थान दावा करती है कि उसके यहां से सबसे ज़्यादा बच्चों का चयन हुआ है।

कोचिंग संस्थानों की लूट को निजी मेडिकल कॉलेज बनाए रखने में मदद करते हैं। गरीब किसी भी तरह से कोचिंग के लिए 2 लाख रुपए खर्च कर भी दें, तो आगे 70 लाख रुपए कहां से खर्च करेंगे? जो अभ्यर्थी लगभग एक करोड़ रुपए में मेडिकल की डिग्री खरीदेगा क्या वह सेवा भाव से इस देश के करोड़ों गरीबों का इलाज करेगा? 70 हज़ार में से चिकित्सा के नाम पर हर साल 40 हज़ार व्यापारी तैयार होंगे और अपना निवेश-वसूली का धंधा करेंगे। नीट से ना ही स्वच्छ प्रतियोगिता होती है और ना ही इससे चिकित्सा के क्षेत्र में सुधार आने वाला है।

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