ट्विंकल के साथ हुई घटना को ना तो हम महज़ अपराध, त्रासदी, कांड या हत्या कह सके हैं और ना ही इसे प्रताड़ना का नाम दिया जा सकता है, बल्कि यह एक प्रलय है। यह मानुषिक सभ्यता पर सबसे भीषण आघात है। बर्बरता के चरम पर चढ़कर ढाई वर्ष की बच्ची की हत्या की गई।
सोशल मीडिया पर यह भी कहा जा रहा है कि ट्विंकल की आंखें निकाली गई। उस मासूम को शायद पीटा भी गया होगा। सीने के बायीं तरफ चोट के निशान, बायां पैर फ्रैक्चर, सर में चोट, हाथ कंधे की तरफ से कटा हुआ था। शव को बोरे में भरकर रख दिया गया और तीन दिन बाद कचरे के ढेर में फेंक दिया।
शव में कीड़े पड चुके थे। शव की हालत इतनी बुरी थी कि पोस्टमार्टम भी सही से नहीं हो पाया और पता नहीं चल पाया कि मासूम का रेप भी हुआ या नहीं। ऐसा विनाश करते वक्त उन लोगों में रत्ती भी भर करुणा नहीं जागी। एक रौंगटा तक खड़ा नहीं हुआ?
इस विनाश को अंजाम देने वाले लोगों का नाम ज़ाहिद और असलम है। ज़ाहिद के खिलाफ एक नाबालिग पर हमला करने का केस दर्ज़ है और असलम के खिलाफ अपनी ही बेटी से रेप करने का केस दर्ज़ है।
असभ्यता की सारी हदें पार
मनुष्य ने स्वयं को सुशील और सभ्य प्राणी कहने का हक खो दिया है। प्रतिशोध असभ्य प्राणियों का नैसर्गिक अवगुण है। असभ्य प्राणी खुद से समान, कमतर या अधिक सामर्थ्य वाले प्राणी से प्रतिशोध लेते हैं लेकिन ज़ाहिद और असलम ने असभ्यता की सारी सीमाएं पार कर ली। बेइज्ज़ती का प्रतिशोध वीभत्स हत्या करके लिया और हत्या भी बेकसूर और असहाय मासूम की।
सनातन संस्कृति को बदनाम करने की कोशिश हुई
साल भर पहले एक और मासूम आसिफा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। पोलिटिकल नैरेटिव सेट करते हुए देवी-स्थान, मंदिर और सनातन संस्कृति को बलात्कार के साथ जोड़कर बदनाम करने की कोशिश हुई। त्रिशूल तथा शिवलिंग की अभद्र कलाकृतियां बनाकर सनातन संस्कृति को बदनाम करने की कोशिश हुई।
इस बार भी कमोबेश ऐसा ही कुछ हो रहा है। कुछ लोगों द्वारा ज़ाहिद और असलम की विनाश लीला को अली स्थान और इस्लाम से जोड़कर पूरे मज़हब को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
ऐसे लोग विनाश लीलाओं को तभी देख पाते हैं, जब उस विनाश लीला से इनका राजनीतिक हित सधता हो। यह विनाशों पर नृत्य करते, मानुषिक असभ्यता के महामानव हैं और जब तक ऐसे लोग हैं, तब तक दुनिया में अमन कायम नहीं हो सकता है।
अगली बार मोमबत्ती किसके लिए जलाई जाएगी?
मोमबत्ती निर्भया के लिए जली थी, आसिफा के लिए जली थी और ट्विंकल के लिए भी जल रही है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगली बार किसके लिए जलेगी?
क्या हम वाकई विवश हैं इस दुखान्त प्रश्न के लिए? ऐसी हज़ारों ट्विंकल हैं जिनके लिए मोमबत्ती नहीं जल पाती लेकिन उनका दर्द तो उतना ही असहाय होता है फिर कहां हैं सरकारें? कहां है समाज शास्त्री? कहां हैं आदर्श मानव? कहां हैं नैतिक शिक्षक? कहां हैं बुद्धिजीवी? कहां हैं नौकरशाह? और कहां है हमारा सभ्य मानव समाज?
सिर्फ मोमबत्ती के जुलुस में और जुलुस तक!