हाल ही में एक परियोजना की समीक्षा बैठक के दौरान मेरे एक सहयोगी, राहुल ने हमारे साथ विभिन्न एसएचजी (स्वयं सहायता समूह) द्वारा अर्जित लाभ को साझा किया, जिन्होंने कृषि के मौसम में आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में सब्ज़ियां उगाई थी। राहुल ने बताया कि प्रत्येक परिवार ने छत्तीस हज़ार रुपए की कमाई की है।
यह अच्छा पैसा था और हम सभी यह खबर सुन कर खुश थे। मैंने तुरंत उस राशि को और कम कर दिया, यह अनुमान लगाते हुए कि छह महीने के कृषि ऑफ सीजन में 6000 रुपए प्रति माह एक अच्छी आय थी। बैठक में उपस्थित केंद्र प्रमुखों और फील्ड एनिमेटरों के साथ गणना साझा करने पर वहां मौजूद एक अन्य स्टाफ सदस्य मंजू चाची ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह राशि उनके स्वयं के वेतन से भी अधिक थी।
उनकी इस टिप्पणी ने सभी को चौंका दिया और मैं इस जानकारी से दंग रह गया कि गरीब आदिवासी हमारे सामाजिक कार्यकर्ताओं से अधिक कमाते हैं। फिर, वे अभी भी गरीबी से संघर्ष क्यों कर रहे हैं? बाकी बैठक में मैं यह सोचकर चुप रहा कि इसका क्या कारण हो सकता है। मेरे दिमाग में कई तरह के विचार आए और मैंने महसूस किया कि दैनिक मज़दूरी के रूप में काम करने वाले अधिकांश आदिवासी श्रमिक एक दिन के काम के लिए 250 से 300 रुपए के बीच कमाते हैं। यह भी मोटे तौर पर प्रति माह 6000 रुपये की मासिक आय को जोड़ देगा।
खर्च करने की आदतें
केंद्र प्रमुखों के साथ मेरी लगभग सभी शुरुआती बातचीत विभिन्न सामाजिक मुद्दों के बारे में थी, जो क्षेत्र में कटकरी जनजाति को परेशान कर रहे थे। इन परेशानियों का आम कारण उनकी खर्च करने की आदत थी। कटकरी गणपति और शिमगा (होली) जैसे त्यौहारों में अनौपचारिक रूप से खर्च करते हैं और साथ ही शादी समारोह के दौरान भी।
उत्सव और समारोहों पर पैसे खर्च करने के लिए वे हर वर्ष निजी ऋणदाताओं से ऋण लेते हैं। उस पैसे का 5% भी शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा पर खर्च नहीं किया जाता है क्योंकि वे इसे प्राथमिकता के रूप में नहीं देखते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि वे शराब और जुए पर काफी मात्रा में ऋण राशि खर्च कर देते हैं।
धन की अवधारणा
मेरे अवलोकन में मैंने पाया है कि जिस प्रकार हम पैसे को सभी संसाधनों के स्रोत के रूप में देखते हैं, कटकरी समुदाय उसे इस रूप में नहीं देखता। पैसा उनके लिए ‘मदर नेचर’ द्वारा प्रदान नहीं करने वाली चीज़ों की खरीद का एक मात्र साधन है। वे परंपरागत रूप से जंगलों में रहते हैं और मानते हैं कि ‘मदर नेचर’ उनकी देखभाल करना जारी रखेगी।
बेशक, यह समग्र पूंजीवादी समाज के विपरीत है जहां हम रहते हैं, जहां हमारे पास कोई डेमोग्राफिकल अपवाद नहीं है। इस प्रकार यह उनको हाशिए पर ले जाता है। एक मुख्य उदाहरण कटकरियों की मासिक वेतन चक्र की नियमित नौकरी लेने में विफलता है क्योंकि वे प्रत्येक दिन के अंत में भुगतान करने की उम्मीद करते हैं।
भौतिकवादी आकांक्षाओं का अभाव
हमारे एक केंद्र प्रमुख ने एक चर्चा में बताया कि जिस दिन कटकरियों के पास अतिरिक्त पैसा होता है, उस दिन वे काम पर नहीं जाते हैं। अगर किसी को ध्यान से तौलना और सभी कारकों को ध्यान में रखना पड़े तो हमारे जैसे विकासशील और विविधतापूर्ण देश में निर्णय लेना एक लंबी और श्रमसाध्य प्रक्रिया बन जाती है।
इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि कुछ लोग जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों का खामियाज़ा भुगतते हैं। विडंबना यह है कि कभी-कभी ऐसा उनके साथ होता है जिन्हें शायद उन निर्णयों से सबसे अधिक लाभ उठाने की आवश्यकता होती है। किसी ने कभी भी आदिवासी लोगों से यह नहीं पूछा कि क्या वे अपने सामूहिक समुदाय को छोड़ कर पूंजीवादी समाज में जाने के लिए तैयार हैं।
एसएचजी के माध्यम से बचत
आर्थिक रूप से साक्षरता कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों को सशक्त बनाने का प्रयास किया गया है, विशेष रूप से महिला एसएचजी में, ताकि आय सृजन करने वाली आजीविका पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। हालांकि, मैंने यह पाया कि कई एसएचजी आम तौर पर एक वर्ष के भीतर निष्क्रिय या समाप्त हो गए। प्रवृत्ति यह है कि गणपति के दौरान विशेष रूप से सभी बचत को वापस ले लिया जाए, जब सभी पैसे अंततः खर्च किए जाते हैं।
मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कई एसएचजी का मासिक योगदान केवल पचास रुपए था। बढ़े हुए योगदान की आवश्यकता पर ज़ोर देने पर एसएचजी के सदस्यों ने मेरा माखौल उड़ाया। उनमें से कुछ सदस्य योगदान को बढ़ाकर 300-500 रुपए प्रति माह करने के सुझाव पर ज़ोर से हंसे।
मुझे बताया गया था कि कटकरी समुदाय के लोग अपना पैसा अपने पास रखना चाहते हैं और किसी वित्तीय साधन पर भरोसा नहीं करते हैं। इसे लेकर स्वयं एसएचजी सदस्यों के बीच अविश्वास था, जिसमें वे सामूहिक बचत के विचार पर दुविधा में थे। इन विचारों में खोए हुए मुझे महसूस ही नहीं हुआ कि हमारी समीक्षा बैठक समाप्त हो गई है।
जब अंतिम टिप्पणियों को पारित करने का अवसर मिला तब मैंने मेरे सभी विचारों को साझा किया। मैंने डिफॉल्ट के लिए कोई गुंजाईश नहीं होने के साथ सभी एसएचजी में मासिक योगदान बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए अपनी टिप्पणी समाप्त की।
जब तक राहुल बात कर रहा था तब तक मेरे सुझाव पर सोचने के लिए लोगों को समय मिला। राहुल ने कहा, “यह एक स्वागत योग्य सुझाव है। हालांकि, मुझे आपके साथ कुछ साझा करने दें। हमारे अपने एसएचजी में हमारे लिए मासिक योगदान 100 रुपए प्रति माह है। क्या आप जानते हैं कि हम अपने योगदानों में भी चूक करते हैं?”
यह कहते हुए वह दूसरों के साथ-साथ हंसने लगा। मैंने व्यवहार परिवर्तन के लिए आवश्यक जटिलता और दृढ़ संकल्प पर एक बार फिर से अपने विचार साझा किए।