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Kasayikhana (Hindi)

किसी गाँव में एक कसाई का देहांत हो गया, चूँकि वो पूरा गाँव ब्राह्मणों का था और वहाँ एकलौता वो कसाई रहता था जो की अपने पुर्खों की पुश्तैनी ज़मीन पर घर बना कर कई वर्षों से रह रहा था और थोड़ी सी ज़मीन पर अपना कसाईखाना चलाता था। उसकी अर्थी को काँधा देने वाला कोई न था सिवाए उसके तीन बेटों के। वो तीनों बेटे जिन्होंने जवानी में कदम रक्खा ही था और अपने बाप का कारोबार आगे बढ़ाने की हद तक पहुँचे ही थे, इससे पहले उनका बाप उन्हें कसाईखाना चलाने की तालीम देता गुज़र चुका था। तीनों बेटे पूरा दिन गाँव के हर एक घर में गिड़गिड़ा कर जब लौटे तब तक दिन ढल चुका था और एक भी व्यक्ति को उनके आँसुओं से लबालब मलूल रुख़सार पर तरस न आया। उन्होंने सोचा कि काश अम्मी ज़िंदा होती तो किसी की ज़रूरत नहीं पड़ती और चौथा कँधा देने के लिए अपने बाप की लाश को यूँ इतनी देर लावारिश न छोड़ना पड़ता, जीते जी क्या कम ग़म झेले थे जो मरने के बाद भी इतनी मिट्टी पलीद हो रही है इस मुर्दे की। इन सब ख़्यालों की उधेड़बुन में जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला अंदर एक आदमी का साया दिखा, काफी अँधेरा था और लालटेन भी तेल की कमी की वजह से बुझ चुकी थी। बेटों ने समझा कि शायद किसी को उनकी बेबसी पर रहम आ गया होगा। तीनों में से सबसे छोटे बेटे ने पूछा कौन है वहाँ? उसके सवाल की अनसुना करते हुए दूसरी तरफ से आवाज आई चलो तुम्हारे वालिद को जल्दी से क़ब्रिस्तान ले जा कर दफ़ना दिया जाए, काफी समय हो गया है और इनमें से बू आने लगी है। उन्होंने सोचा कि इस बात से क्या मतलब कौन है बस क़ब्रिस्तान तक साथ मिल जाए बाकी हम फिर इनको मिलके अकेले दफ़ना देंगे।

कब्रिस्तान यही कोई दो मिल दूर था, उन चारों ने जनाज़े को उठाया और चल दिये क़ब्रिस्तान की तरफ। पूरे गाँव में उस दिन घनघोर अँधेरा छाया हुआ था और क्योंकि वो तीनों भाई वहीं पले बढ़े थे तो वो उस गाँव के चप्पे चप्पे से आगाह थे। क़ब्रिस्तान में घुसने के बाद उन्होंने जनाज़े को ज़मीन पर रख कर कुदाल से क़ब्र खोदना शुरू करने ही वाले थे तभी उन्हें उस चौथे आदमी का ध्यान आया, उन्हें लगा कि पूरे गाँव में किसी ने उनकी मदद नहीं की और ये एक भला इंसान शायद छुप छुपा कर हमारी सहायता करने आया होगा, सुबह होने से पहले क्यों न इसे वापस भेज दें क्योंकि बाकी का काम हम ख़ुद ही कर लेंगे। वो तीनों एक साथ शुक्रिया अदा करने के लिए जैसे ही पीछे मुड़े उन्हें वहाँ कोई नहीं दिखा। उनमें से जो मँझला बेटा था भाग कर वापस क़ब्रिस्तान के दरवाज़े तक गया मगर उसे वहाँ भी कोई नहीं मिला। जब वो लौट कर क़ब्र के पास आया तो सबसे बड़े वाले बेटे ने कहा कि उस शख़्स की आवाज और कद काठी कुछ जानी पहचानी लग रही थी, तीनों ने एक साथ एक दूसरे को देखते हुए हामी भरते हुए अपने अब्बू की लाश की तरफ देखा तो वहाँ कोई न था। अगले दिन गाँव में ख़बर फैल गई कि कसाईखाने में चार क़ब्रें बनी हुई हैं।
~ अंकुश तिवारी( @thetiwariankush)

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