लप्रेक #Section377
‘इश्क़ तो इश्क़ होता है ना प्रणय?
लेकिन सिर्फ लड़के और लड़की के बीच का प्रेम ही क्यूँ इश्क़ कहलाता है?’ सारिका ने कुछ निराश भाव से कहा।
‘ये तुमसे किसने कहा सारिका?’
‘किसी ने कहा नहीं प्रणय लेकिन मुझे आसपास देखकर हमेशा से यह महसूस होता रहा है।
‘नहीं, यह तुम्हारा भ्रम है सारिका। जानती हो, हम लोकतंत्र में रहते हैं, जहाँ सबको समान अधिकार हैं।’
‘नहीं प्रणय, शायद तुम्हें भ्रम है। मुझे लगा रहा कि इस लोकतंत्र में प्रेम घुट रहा है, प्रेम की भी एक निश्चित परिभाषा तय करने की कोशिश की जा रही है बिल्कुल वैसे ही जैसे कुछ दिन पहले राष्ट्रवाद और देशभक्ति की निश्चित परिभाषा तय कर दी गई है। मुझे डर लगता है प्रणय की अगर प्रेम की परिभाषा निश्चित कर दी गयी तो हमारा प्रेम “इश्क़” कहलायेगा क्या?’
‘ अरे इतनी परेशान क्यूँ हो सारिका? ‘
‘ सर आपका बिल’, वेटर ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘ देखो बिल कितने का है सारिका’
‘ 377 का प्रणय’ सारिका ने जवाब में कहा।
प्रणय ने 380 रुपये रखे और सारिका की बाहों में बाहें डालकर चल दिया।
‘सर चेंज’ वेटर ने प्रणय और सारिका को रोकते हुए कहा। दोनो ने मुस्कुराते हुए वेटर से कहा “इन 3 रुपए से कल का अखबार ख़रीदकर ज़रूर पढ़ना “प्रेम की परिभाषा रोज़ बढ़ रही है“।
– गोपाल सुखदेव चतुर्वेदी