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“अलीगढ़ वाली घटना पर एकजुट क्यों नहीं है यह समाज?”

विरोध प्रदर्शन

विरोध प्रदर्शन

16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ हुई अमानवीय, जघन्य व निर्मम घटना ने पूरे देश व समाज को हिलाकर रख दिया था। निर्भया के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए पूरे देश व समाज के लोग सड़कों पर उतरे, सत्ता व सरकार से सवाल किया।

उस वक्त देश में काँग्रेस की सरकार थी जिनपर लोगों का गुस्सा उबाल पर था। यहां तक कि राष्ट्रपति भवन व पूरे रायसीना हिल्स को जनता ने घेर लिया था। तत्कालीन सरकार ने इस तरह के मामलों में कड़ी सज़ा का प्रावधान करने के लिए जस्टिस जे.एस. वर्मा समिति का गठन किया।

तय समयसीमा के अंदर वर्मा समिति की रिपोर्ट भी आई, एक कड़ा कानून बनकर तैयार हुआ और समय के साथ ही लोगों की मानसिकता में बहुत बदलाव आए।

पितृसत्तात्मक सत्ता वाले समाज महिलाओं और उनके खिलाफ होने वाला अपराध व शोषण को लेकर थोड़ा संवेदनशील हुआ। कुल मिलाकर यह कहा जाए कि हम एक बेहतर देश व समाज की तरफ बढ़ने के लिए दो चार कदम बढ़ा पाएं।

कठुआ की घटना को मज़हबी रंग दिया गया

इसके बाद जम्मू कश्मीर के कठुआ में आसिफा के साथ जघन्य व अमानवीय कृत्य हुआ। वहां एक तबका जो दलीय व मज़हबी आधार पर बजाय आसिफा को न्याय दिलाने के उस घटना व आरोपियों को समर्थन देने में जुट गया। आरोपियों के समर्थन में हुई रैली में बीजेपी के विधायक व नेता शामिल हुए थे। इस घटना को मज़हबी रंग दिया जाने लगा।

सत्ताधारी दल व उसका आईटी सेल तथा उसके ट्रोलर्स न्याय व इंसाफ पसन्द लोगों को सोशल मीडिया में ट्रोल करने लगे। क्या इस घटना पर पूरे देश व समाज को एकजुट नहीं होना चाहिए था जैसे निर्भया की घटना पर एकजुट हुए थे?

उन्नाव की घटना पर भी राजनीति हुई

उन्नाव में हुई घटना में सत्ताधारी दल का विधायक स्वयं आरोपी है। सीबीआई ने भी अपनी चार्जशीट में इस बात के संकेत दिए हैं कि उक्त घटना में बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर की संलिप्तता है। वर्तमान समय में केंद्र व राज्य में बीजेपी की सरकार है। अगर यह सरकार महिलाओं को लेकर संवेदनशील होती, तो सबसे पहले कुलदीप सेंगर को न्यायालय का निर्णय आने तक बीजेपी से निलंबित करती, उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द करती लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

हां, अभी हाल ही में उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज अपनी जीत का धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए उस विधायक से जेल में मिलने ज़रूर चले गए। क्या इस घटना पर बीजेपी सरकार व साक्षी महाराज जैसे निर्लज्ज नुमाइंदों से सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए?

बलात्कार के आरोपी आशाराम को प्रज्ञा सिंह ठाकुर का निर्दोष बताना निंदनीय

आज की तारीख में आशाराम न्यायालय द्वारा सजायाफ्ता बलात्कार का दोषी है। अभी आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता की आरोपी बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने बलात्कारी आशाराम को निर्दोष कहा तथा न्यायालय के फैसले का अपमान भी किया। प्रज्ञा के इस बयान को लेकर कोई हो हल्ला नहीं हुआ और ना ही कोई खबरिया चैनल व उसका पत्रकार इसपर प्रज्ञा से सवाल करने गया।

अलीगढ़ की घटना को भी मज़हबी रंग दिया जा रहा है

अलीगढ़ की मासूम बच्ची के साथ हुई अमानवीय और जघन्य घटना ने पूरे समाज को हिलाकर रख दिया है। हम किस तरह के समाज की तरफ बढ़ रहे हैं? बच्ची के माता-पिता पर क्या गुज़र रही है, यह सोचकर दिल दहल जाता है। इस मामले में अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।

विरोध प्रदर्शन।

यह देश, समाज व सरकार की ज़िम्मेदारी है कि मासूम बच्ची के परिजनों को न्याय दिलाए। इस घटना को भी मज़हबी व फिरकापरस्त रंग देने की पुरज़ोर कोशिश हो रही है।

सोशल मीडिया पर भी आपत्तिजनक शब्दों के ज़रिये एक-दूसरे को ट्रोल करने का सिलसिला जारी रहा। किसी ने कहा, “कहां गया मोमबत्ती गैंग?” तो किसी ने प्रगतिशील कहलाने वाले लोगों पर ही कटाक्ष कर दिया। इस तरीके से नफरत और उन्माद फैलाने के कार्य में तेज़ी आ गई।

चाहे निर्भया के साथ हुई घटना हो, कठुआ कांड या उन्नाव की घटना हो या बलात्कारी आशाराम के किए गए कुकर्म, इन सभी घटनाओं में सबसे कॉमन बात यह है कि यह सभी अपराध महिलाओं के खिलाफ हुए हैं।

महिलाओं के खिलाफ हुआ कोई भी अपराध पूरी सभ्यता के खिलाफ किया गया अपराध है। इसके खिलाफ सभी को एकजुट होना होगा तभी इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकेगी। सभी को एकजुट होकर बीजेपी की केंद्र व यूपी की सरकारों से सवाल पूछना होगा, सभी को सड़कों पर उतरना होगा।

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